सुविवि की तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेन्स का दूसरा दिन
Udaipur. 12 वीं अंतराष्ट्रीय रोगवाहक तथा रोगवाहक जनित बीमारियों की वर्तमान स्थिति के दूसरे दिन छह तकनीकी सत्रों का आयोजन हुआ। इन सत्रों में मुख्य रूप से मच्छरों में दवा प्रतिरोधकता उत्पन्न होने व नई दवाओं के खोज पर बल दिया गया।
होटल इंदर रेसिडेन्सी में रोगवाहक बीमारियां नई सदी की बडी़ चुनौती विषय पर आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्री्य कांफ्रेन्स मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय के प्राणीशास्त्र विभाग के तत्वावधान में नेशनल एकेडमी आफ वेक्टहर बोर्न डिजिज के सहयोग से आयोजित की जा रही है। दूसरे दिन कान्फ्रेंस में वाहकों को नियंत्रित करने के लिए नई तकनीकों की खोज पर भी बल दिया गया। मच्छर जनित बीमारियों जैसे डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया तथा फिलेरिया की रोकथाम में नए अनुसंधानों की आवश्यकता पर भी बल दिया गया।
दूसरे दिन पहले मुख्य व्याख्यान में सीआरएमई मदुरैई के निदेशक डॉ. बी. एल. त्यागी ने डेंगू तथा अन्य मच्छर जनित रोगों का विस्तार से विवेचन किया। छह तकनीकी सत्रों में 18 आमंत्रित व्यख्यान व 17 मौखिक प्रस्तुतिकरण हुए। यूएसए के डॉ0 विलियम जेनी ने एक ऐसे उत्पाद पर चर्चा की जो न केवल मनुष्य व अन्य स्तनियों के लिए हानिरहित है बल्कि मच्छरों के लिए 100 प्रतिशत घातक है। सिंगापुर की डॉ. सेलेना बेन्जामिन ने ऐसे जीवाणु के जीनों पर चर्चा की जो मच्छरों के लारवा के लिए अति घातक है। डॉ. त्यागी ने दक्षिण भारत, मुख्यतः केरल में बढ़ते डेंगू रोग के कारणों का विस्तृसत विवरण दिया व उनसे बचने के उपाए सुझाये। राजस्थान विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. एन.पी. सिंह ने मच्छरों व रोग जनित वाहकों के जैव नियन्त्रण पर बल देते हुए बताया कि यह रोग जनित वाहकों को नियन्त्रण करने का सबसे सुरक्षित उपाय है। आयोजन सचिव डॉ0 आरती प्रसाद ने विश्व भर से आये वैज्ञानिकों को संगोष्ठी में सारगर्भित जानकारियों को आदान-प्रदान के लिए आभार जताया।
संगोष्ठी के उदघाटन सत्र में केन्द्री य स्वालस्य््व सचिव तथा इंडियन काउंसिल फोर मेडिकल रिसर्च के महानिदेशक डॉ. वी. एम. कटोच ने कहा कि डेंगू जैसी बीमारी से निपटने के लिए क्लिनिकल चिकित्साॉ को प्रभावी बनाने की जरुरत है। साथ ही शोध के जरिए नए टूल्सव ईजाद करने होंगे जो डेंगू के साथ ही मलेरिया को रोकने में भी प्रमुख भूमिका निभा सके।
डॉ. कटोच ने कहा कि हर वर्ष कई शोध होते है प्रोजेक्ट् होते है लेकिन इनका लाभ आम जनता तक नहीं पहुंच पाता। शोध निष्क र्षों की क्रियान्विति बहुत जरुरी है और इसके लिए युवा शोध कर्ताओं को आगे आना चाहिए। उन्हों ने कहा कि जब 1997 में पहली बार चिकनगुनिया रिपोर्ट हुआ तो हमने उसको बहुत हल्केह से लिया इसी कारण वह पूरे देश में फैल गया। यदि समय रहते उसका टीका बनाया जाता और रोकने के लिए कारगर कदम उठाए जाते तो आज जैसी चिंताजनक स्थिति नहीं होती। उन्हों ने मलेरिया, डेंगू ओर चिकनगुनिया से बचाव के तरीकों को पाठ्यक्रमों में शामिल करने की वकालत की।
मुख्यठ अतिथि विश्वक स्वा स्य्र संगठन के क्षेत्रीय सलाहकार डॉ. लियोनार्ड ओरटेगा ने कहा कि रोगवाहक बीमारियों को रोकना पूरी दुनिया के लिए चुनौती है इसके लिए हमें जागरुक बनना होगा। कोटा विश्वोविद्यालय के कुलपति प्रो मधुसूदन शर्मा ने कहा कि ये रोग हमारी प्रगति के मार्ग में अवरोध पैदा कर रहे है। इनसे बचाव के लिए उन्होंुने सुझाव दिया कि प्राथमिक कक्षाओं के पाठ्यक्रमों में इनसे बचने के पाठ शामिल किए जाएं। साथ ही आंगनवाडी़ शिक्षिकाओं को भी इसके लिए प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। इस अवसर पर नेशनल एकडमी फोर विक्टंर बोर्न डिजिज के अध्य्क्ष प्रो डी देवभगकर और महासचिव डा एम आर रणजीत ने रोग वाहक जनित बीमारियों को लेकर हो रहे शोध कार्यों की जानकारी दी। कार्यक्रम के अध्यरक्ष सुविवि के कुलपति प्रो. आई. वी. त्रिवेदी ने आशा जताई कि कांफ्रेन्सय के जरिए निकलने वाले शोध निष्क र्षों से दक्षिण राजस्था.न में इन रोगों की रोकथाम के लिए एक दिशा मिलेगी। कार्यक्रम के प्रारम्भं में प्रो महीप भटनागर ने सभी का स्वाकगत किया जबकि आयोजन सचिव डॉ. आरती प्रसाद ने धन्य्वाद ज्ञापित किया। प्रमुख शोधकर्ताओं तथा चिकित्साा वैज्ञानिकों को पुरस्कृरत भी किया गया। अतिथियों ने कांफ्रेन्सन की स्मा रिका का भी विमोचन किया।