परम्परागत पद्धतियां आज भी कारगर
विद्यापीठ में राष्ट्रीय सेमिनार का समापन
Udaipur. हमारी धरोहर व इतिहास में व्याप्त हमारी परम्पराओं एवं तकनीकों को आप के परिप्रेक्ष्य में पुर्नजीवित करें, परिवर्तित नहीं क्योंकि हमारा इतिहास के अध्ययन से यह तो साफ है कि हमारे पूर्वज अनादिकाल से ही पूर्ण विकसित जीवनयापन कर रहे थे चाहे विकसित ग्राम्य एवं शहरी जीवन हो चाहे भण्डारण की परम्परा हो चाहे वैज्ञानिक विधियां हो सभी के उपयोग के प्रमाण इतिहास के झरोखे में दिखते हैं।
ये विचार मुख्य अतिथि राजस्था न विद्यापीठ के कुलाधिपति प्रो. भवानीशंकर गर्ग ने इंस्टीट्यूट ऑफ राजस्थान स्टडीज साहित्य संस्थान में आयोजित संग्रहण की परम्परागत की तकनीक एवं कृषि पद्धतियों का विकास विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार के समापन समारोह में व्यक्त किए।
मानव संसाधन एवं प्रकृति शोध संस्थान क्योटो, जापान के निदेशक मियाजाकी ने बताया कि दक्षिणी एशिया व अफ्रीका में मुख्यतः राजस्थान के जल प्रबन्धन एवं मृदा व सामाजिक संरचना की तरीकों का परस्पर सम्पूर्ण वैश्विक शुष्क प्रदेशीय इलाकों में मुख्यतः जापान इण्डोनशिया आदि प्रदेशों में अपनाया गया एवं तकनीकी परिवर्तन के साथ आज भी समान रूप से कार्य हो रहा है।
आयोजन सचिव डॉ. जीवनसिंह खरकवाल ने बताया कि अध्यक्षता कुलपति प्रो. एस. एस. सांरगदेवोत, विशिष्टा अतिथि प्रो. मनोहरसिंह राणावत, डॉ. लक्ष्मी नारायण नंदवाना, डॉ. प्रकाश शर्मा, डॉ. ललित पाण्डेय ने भी विचार व्यक्त किए। खरकवाल ने बताया कि सेमिनार में कुल 77 शोध-पत्रों का वाचन किया गया। कार्यक्रम में डॉ. कुलशेखर व्यास, डॉ. प्रियदर्शी ओझा, डॉ. महेश आमेटा, डॉ. नीता कोठारी, तृप्ता जैन, अनिता पंचोली, रमेश प्रजापत भी उपस्थित थे।
पृथ्वीराज रासो भाग 1 का लोकार्पण
सेमिनार में वृहद हिन्द-राजस्थानी महाकवि चन्दरवरदाई द्वारा रचित एवं डॉ. मनोहरसिंह राणावत एवं कवि राव मोहन सिंह द्वारा संपादित पृथ्वीराज रासो भाग 1 का लोकार्पण कुलाधिपति प्रो. गर्ग तथा प्रो. सांरगदेवोत ने किया।