‘जनजाति संस्कृति’ होगी उत्सव की थीम, कई नवाचार होंगे
उदयपुर। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी राष्ट्रीय स्तर का लोक कला एवं शिल्प उत्सव ‘‘शिल्पग्राम उत्सव’’ 21 दिसम्बर से 30 दिसम्बर तक हवाला गांव स्थित ग्रामीण कला परिसर शिल्पग्राम में होगा। उत्सव में करीब 1500 कलाकार व शिल्पकार भाग लेकर अपनी कलाओं का प्रदर्शन करेंगे। इस वर्ष उत्सव की मुख्य थीम ‘‘जनजाति संस्कृति’’ पर केन्द्रित होगी।
केन्द्र निदेशक शैलेन्द्र दशोरा ने शिल्पग्राम के कला विहार में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में बताया कि कला एवं शिल्प के प्रोत्साहन तथा शिल्पकारों तथा शिल्प प्रेमियों के मध्य संवाद स्थापित करने के ध्येय से आयोजित इस उत्सव में देश के 17 राज्यों के कलाकार व शिल्पकार भाग लेंगे। उत्सव में विकास आयुक्त हस्तशिल्प नई दिल्ली, विकास आयुक्त हथकरघा, नेशनल वूल डेवलपमेन्ट बोर्ड, राष्ट्रीय पटसन बोर्ड के शिल्पकारों के साथ-साथ पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के सदस्य राज्य राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा के शिल्पकार तथा देश के अन्य क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्रों के शिल्पकार अपनी कला का प्रदर्शन व उत्पाद विक्रय के लिये उपलब्ध रहेंगे। इसके अलावा उत्सव में विभिन्न प्रकार के पारंपरिक खाद्य पदार्थों के शिल्पकार भी भाग लेंगे जिसमें गुजराती, राजस्थानी, मराठी व हैदराबादी सम्मिलित हैं।
दस दिवसीय उत्सव में रोजाना दोपहर 12.00 से हाट बाजार की गतिविधियाँ प्रारम्भ होगी जिसमें शिल्प प्रदर्शन के साथ-साथ विभिन्न थड़ों आंगन, चौपाल, गुर्जरी आदि पर लोक कलाकारों द्वारा नृत्य व गायन के कार्यक्रम प्रस्तुत किये जायेंगे। उत्सव के दौरान रोजाना शाम 6.00 बजे से मुक्ताकाशी रंगमंच ‘‘कलांगन’’ पर विभिन्न राज्यों के लोक कलाकार अपनी प्रस्तुतियाँ देंगे।
उत्सव में कला प्रस्तुतियों के लिये कला दलों को दो चरणों में बुलाया गया है। इनमें 21 से 25 दिसम्बर तक कला प्रेमियों को गोवा का घोड़े मोडनी, सिक्किम का सिंगी छम, उत्तराखण्ड का छपेली, थडिया चौफला, गुजरात का डांगी नृत्य, ऑडीशा का गोटीपुवा, हिमाचल प्रदेश का नाटी, पश्चिम बंगाल का पुरूलिया छाऊ, छत्तीसगढ़ का गौंड मारिया, अरूणाचल प्रदेश का ब्रोजाई व जू-जू झा-झा, कनाटक का करघा कोलट्टा व मेवाती ध्वनि जैसी कला शैलियों के रसास्वादन का अवसर मिल सकेगा। जबकि 26 से 30 दिसम्बर तक शिल्पग्राम उत्सव में राजस्थान से कालबेलिया, लंगा व मांगणियार लोक गायक, भपंग, तमिलनाडु का कावड़ी कडग़म, सिक्किम का तमांग सेलोव व घंटू, मणिपुर का पुंग चोलम, पंजाब का भांगड़ा, लुड्डी, महाराष्ट्र का लावणी, असम का बिहू, गुजरात का सिदी धमाल तथा केन्द्र शासित प्रदेश सिलवासा से तारपा व ढोल आदि कलाओं को आमंत्रित किया गया है। इसके अलावा मेला प्रांगण के लिये कच्छी घोड़ी, तेजाजी, जादूगर, नट आदि कलाओं को शामिल किया गया है।
शिल्प कला में नवाचारों के तहत शिल्पकारों की कलात्मक वस्तुओं के विपणन के लिये उत्सव में पहली बार एक डिजिटल हट लगाई गई है जो से जानकारी लेगी कि किस तरह से वे पूरे संसार से लिंक स्थापित कर सकते हैं और अपने उत्पादों को उचित कीमत पर विक्रय कर सकते हैं। शिल्पकारों को ऑन लाइन बाजार व्यवस्था से जोडऩे व एक डाटाबेस तैयार करने हेतु एक विशेष प्रयास के अंतर्गत एक डिजिटल हट अपना कार्य करेगी। जिससे शिल्प-शिल्पी व ग्राहक की बीच की दूरी समाप्त करने में उपयोगी होगी।
दक्षिण भारत के मृण शिल्पियों द्वारा मिट्टी से शिल्प सृजन का सजीव प्रदर्शन उत्सव के दौरान किया जायेगा। वहीं लोक व जनजीतीय चित्रकारी का सजीव प्रदर्शन संगम हॉल में देखने को मिलेगा। यहीं पर ये कलाकार बालकों को लोक चितराम बनाने की कला भी सिखाएंगे। उत्सव में बालक-बालिकाओं के लिये ‘‘बाल संसार’’ में मिट्टी, कागज़ व मुखौटा शिल्प, मूकाभिनय कला सीखने की व्यवस्था की गई है। शिल्पग्राम में आने वाले कला रसिकों को स्कल्पचर पार्क एक नये कलेवर के साथ देखने को मिलेगा। इसमें राष्ट्रीय तथा अंतर राष्ट्रीय स्तर के मूर्ति शिल्पकारों की कृतियों को प्रदर्शित किया गया है। शिल्पग्राम उत्सव में आने वाले लोगों को ऑडीशा के सुबल महाराणा की रेत की बनाई कला कृतियाँ देखने को मिल सकेंगी। उत्सव में आगंतुकों को पहली बार मध्यप्रदेश की शिल्प खजूर पट्टी, हैदराबाद बैंगल्स, मणिपुर का कोना शिल्प, सिक्किम का बेम्बू थाका चित्रकारी, लकड़ी पर लाख की कारीगरी के खिलौने, असम का कांथा बुनाई, गोवा का सी शैल व कोकोनट शैल, आदि कलाएं देखने व खरीदने को मिल सकेंगी। हाट बाजार में आगंतुकों की सुविधा के लिये शिल्पवार क्षेत्र बनााये गये हैं। इनमें मृण कुंज, काष्ठ शिल्प, धातू धाम, उत्कृष्ट, वस्त्र संसार आदि उल्लेखनीय हैं। पारंपरिक खान-पान तथा पाक कला में उत्सव में इस बार राजस्थानी, गुजराती, मराठी तथा हैदराबादी व्यंजन मुख्य आकर्षण होंगे।