उदयपुर। वर्तमान ग्रामीण विकास की अवधारणा के संदर्भों को समझते हुये पुनर्परिभाषित करने की जरूरत है। आज़ादी के बाद का परंपरागत ग्रामीण विकास शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी उन्मूलन की बात करता था। वैश्वीकरण व भू मंडलीकरण के दौर में यह चिंतन और विमर्श का विषय है कि किस तरह का आधारभूत संरचनात्मक विकास करना है।
ये विचार डॉ. मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा युवाओं की ग्रामीण विकास में भूमिका विषयक संगोष्ठी में ट्रस्ट सचिव नन्द किशोर शर्मा ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में गांधीवादी मूल्यों पर विकास करने की आवश्यक बढ़ गई है, यही एक मात्र विकास है जो टिकाऊ या सतत विकास का मार्ग है। समाज को मूल्यों पर आगे ले जाने से ही सामाजिक न्याय और आर्थिक विकास में सामंजस्य बनेगा। उन्होंने आगे कहा कि समाज विकास के लिए युवाओ में स्वेच्छिक नागरिक भाव पैदा करना होगा। युवाओं में नागरिकता का सच्चा ज़ज्बा ही प्रजातंत्र को मज़बूती देगा और विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा।
संगोष्ठी में समाज विज्ञानी डॉ. श्रीराम आर्य ने कहा कि वैचारिक रिश्ते खून के रिश्तों से ज्यादा मज़बूत होते है। वर्तमान में जरूरत इस बात की है कि युवा सकारात्मक, रचनात्मक तथा समाज विकास के अपने दृष्टिकोण को विकसित करे। विकास के कई पहलू और परिकल्पनाएं हैं किन्तु उन्हें देश काल और परिस्थितिनुकूल समझने की जरूरत है। युवा देश का भविष्य है। भारत दुनिया में युवा देशो की तरफ तेजी से बढ़ रहा है ऐसी स्थिति में युवा ऊर्जा को ग्रामीण समाज कि बेहतरी की तरफ मोड़ना चाहिये।
संगोष्ठी में मनीष निमावत ने कहा कि समाज सेवा के पुरोधाओ की जीवनियां व उनके द्वारा किये गए समर्पण की बेहतर समझ युवाओ का मार्ग दर्शन कर सकती है। विद्या भवन रूरल इंस्टीट्यूट के ग्रामीण विकास के अण्डर ग्रेजुएट विद्यार्थियों निखिल राव, पूजा वैष्णव, सोनी कुमारी, माया रावत, मीरा टांक, गौरव श्रीमाली, दिनेश डांगी, बाबूलाल गमेती ने भी अपने विचार व्यक्त किये। धन्यवाद नितेश सिंह ने दिया।