जनमेदिनी डूबी भक्ति रस में
सातवें दिन उमड़ा जनसैलाब
चित्तौड़गढ़। मीरा के धाम चित्तौड में आयोजित मुरारी बापू की रामकथा के सातवें दिन कथा में सर्वाधिक हुजूम देखने को मिला। कथा प्रारंभ होने से पूर्व ही चित्रकूट धाम का पाण्डाल श्रोताओं से खचाखच भर चुका था। व्यासपीठ से चित्रकूट धाम का नजारा ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों कोई जन ज्वार सा उमड़ पडा हो। हर एक निगाह मुरारी बापू के दर्शन को आतुर थी और हर हाथ बापू के अभिनन्दन को लालायित था।
राम कथा के सातवें दिन रविवार को व्यासपीठ से मानस मीरा के प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए मुरारी बापू ने गुरू चरण की महत्ता बताते हुए कहा कि गुरू के चरणों में आश्रित होने पर इस लोक के साथ ही परलोक भी सुधर जाता है। गुरू चरण की सेवा में तनख्वाह भी मिलती है और तन्हाई भी। गुरु ज्ञान के रंग के आगे सभी रंग फीके है। बापू ने कहा कि मेरे गुरू हनुमान कलियुग में ध्वजा में नहीं, धरा पर बैठे हुए है और जब तक राम कथा का गायन होगा तब तक वे धरा पर ही रहेंगे। व्यासपीठ सम्पदावान है। संसार में आने और जाने वाले प्रत्येक प्राणी व्यासपीठ से रामकथा को सुनते हैं।
मीरा और मानस एक ही
बापू ने कहा कि मानस और मीरा एक ही है। मीरा एक अवस्था का नाम है, वह स्वयं गाती और सुनती है। मीरा हर युग में रहेगी, मीरा थी नहीं मीरा है। जब तक कृष्णत रहेंगे, मीरा रहेगी क्योंकि वह श्रीकृष्णे की तीसरी आंख है। मीरा कभी स्वप्न है, कभी सुश्रुप्ति है तो कभी जागृति है। उसके पास हरि की पाती है। वह अस्तित्व की खुषबू है, पामद है, साध है, मुमुक्षु है, मोक्ष है। मीरा साथ मांगती है सम्बन्ध नहीं, क्योंकि सम्बन्ध तो छूट जाता है लेकिन साथ कभी नहीं छूटता है। मीरा ने विचार को गाया और विचार को ही सुना है। वह मैदान की भी हवा है और इसे व्याख्याओं में कैद नहीं किया जा सकता है। उसको समझने के लिए इतिहास के तथ्य के साथ ही आध्यात्मिक सत्य की भी जरूरत है।
बापू ने कहा कि प्रभु भोजन के नहीं भजन के भूखे होते है। भजन या तो दूसरों को सुनाकर खुद को सुनायें या फिर खुदाई के लिए सुनायें। भक्त सुमिरन करने में इतना लीन हो जाता है कि जिस प्रभु के लिए वह सुमिरन करता है वह सामने भी आ जाते है तो उसे ध्यान नहीं होता है।
भक्ति ही प्रेम है : मानस मीरा में गंगासती को भक्ति का नवां अवतार बताया गया है। भक्ति का दसवां अवतार दिल की प्रीति है। सभी की अपनी विषिश्ट प्रीति होती है। मोहब्बत सदैव मुक्त होती है और जिस पर होती है उसे भी मुक्त रखती है। प्रेम में कोई ना आये तो यह तो सहा जा सकता है लेकिन यदि आकर फिर जाये तो यह सहा नहीं जा सकता है। प्रेम निगरानी नहीं रखता हैं और ना ही दूसरों की स्वतंत्रता पर हमला करता है। प्रेम की सर्वोच्य निषानी मुद्रिका (अंगूठी) है और मीरा भक्तिमार्गी है इसलिए वह कहती है कि मैं मन को ही मुद्रिका बनाऊंगी। मुद्रिका भक्ति की प्रतीक है। परमात्मा जिसे प्रेम करें उसे नही छोडना क्योंकि वह तो साधक है। बापू ने कहा कि सांसारिक जीवन में धर्म मुद्रा, अर्थ मुद्रा, काम मुद्रा, मोक्ष मुद्रा होती है। हमारे शरीर की प्रत्येक इन्द्री एक ही काम करती है लेकिन हमारी जुबान ऐसी इन्द्री है जो दो काम करती है। वह भोजन और भजन दोनों करती है।
बापू ने रामकथा के दौरान गुरू विश्वा मित्र और प्रभु राम, अहिल्या उद्दार, केवट प्रसंग, जनक राम मिलन के प्रसंगों को दर्षाया। बापू ने कहा कि भगवान को भक्ति के भवन में ठहराया जा सकता है। जहां भक्ति होती है वह भवन ही सुन्दर होता है।
रामकथा का विराम कल : मीरा की नगरी चित्तौड में 31 अप्रैल से चल रही नौ दिवसीय अभूतपूर्व रामकथा का विराम मंगलवार को होगा। चैत्री नवरात्री के एकम से षुरू हुई रामकथा राम नवमी को पूर्ण होगी। कथा के साथ ही सांध्यकालीन कार्यक्रमों का भी भव्यता से आयोजन किया जा रहा है।