ई-शिक्षा पद्धति की नवीनतम तकनीक एवं आयामों पर शिक्षक विकास कार्यक्रम शुरू
उदयपुर। आज लैपटॉप, मोबाइल, कंप्यूटर पर बात करते हुए सामने वाले व्यक्ति का वीडियो देख पाना, किसी भी विषय की गहन जानकारी लेना प्रारंभ करना क्षणों में संभव है| इन्टरनेट उपयोग बढ़ना, बैंकों से लेन-देन, ऑनलाइन होना, यह युग ई-शिक्षा (मोबिलिटी) का युग है।
यह बात महर्षि दयानंद सरस्वती विवि के कुलपति प्रो. कैलाश सोडानी ने कही।
वे जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विवि के डिपार्टमेंट ऑफ़ कंप्यूटर साइंस एवं ए.आई.सी.टी.ई. द्वारा प्रायोजित दो सप्ताह के शिक्षक विकास कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में बोल रहे थे| उन्होंने कहा कि इन्टरनेट ने जहाँ विश्व को एक सूत्र में बाँध लिया है वहीं विश्व के सभी शिक्षकों को एक समुदाय में एकत्रित भी कर लिया है। विशेष बात यह है कि हर रोज़ नयी तकनीक ईजाद कर भारत आई.टी. के द्वारा ई-शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहा है। स्वागत उद्बोधन डॉ. मनीष श्रीमाली ने दिया|
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी वर्तमान में तेजी से उभरता हुआ क्षेत्र है| आज जहाँ विदेशी तकनीकों को स्थानीय तौर पर विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है वहीं शिक्षा क्षेत्र में भी इन तकनीकों का इस्तेमाल सुनिश्चित किया जा रहा है| स्मार्ट क्लास आई.टी. की ही देन है| छात्रों को उनके विषय के बारे में अधिकाधिक रूचि पैदा करने, उन्हें अधिक से अधिक जोड़ने के लिए ज़रूरी हो गया है कि अब भारत के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में इन्टरनेट के द्वारा ई-शिक्षा के द्वारा विभिन्न विषयों का ज्ञान दिया जाए| विशिष्ट अतिथि मगध विवि के पूर्व कुलपति प्रो. बीएन पांडे ने कहा कि आज भी आईटी क्षेत्र में मैनपावर की कमी काफी चिंताजनक है| शिक्षा क्षेत्र में इन्टरनेट की उपयोगिता को नाकारा नहीं जा सकता| शिक्षा के आधुनिक जगत में शिक्षण केवल शिक्षक की भौतिक उपस्थिति तक ही सीमित नहीं है वरन यह फैल कर टेक्स्ट, साउंड और वीडियो के रूप में भी संभव है| इन्टरनेट पर कई तरह की पुस्तकें, विडियो आदि उपलब्ध हैं, जिनके द्वारा उचित शिक्षण संभव है| जयनारायण व्यास विवि के पूर्व कुलपति प्रो. लोकेश शेखावत ने कहा कि वीडियो एवं मल्टीमीडिया आधारित शिक्षा द्वारा किसी भी विषय को समझना अधिक आसान हो गया है| ई-शिक्षा के कई सारे लाभों में से एक महत्वपूर्ण लाभ यह भी है कि शिक्षा का विस्तार घर घर में हो गया है| विद्यार्थियों को किसी बड़े विश्वविद्यालय के शिक्षाविदों की शिक्षा का लाभ उस विश्वविद्यालय में जाए बिना भी हो सकता है| इस अवसर पर निदेशक मनीष श्रीमाल, डॉ. भारत सिंह देवड़ा, चंद्रेश छतलानी, गौरव गर्ग, प्रदीप सिंह शक्तावत ने भी विचार व्यक्त किए| संचालन नेहा सिंघवी ने किया।