उदयपुर। प्रसिद्घ साहित्यकार एवं कवि प्रो. नंद चतुर्वेदी ’नंद बाबू’ का गुरूवार शाम असामयिक निधन हो गया। वे 91 वर्ष के थे। चतुर्वेदी का शुक्रवार को अंतिम अहिंसापुरी स्थित मोक्षधाम पर अंतिम संस्कार होगा। प्रसिद्घ साहित्यकार प्रो. नंद चतुर्वेदी गुरूवार शाम रोज की भांति फतहसागर भ्रमण के लिए निकले।
शाम करीब 7.30 बजे घर लौटे और चाय पी रहे थे। इसी दौरान उन्हें दिल का दौरा पडा और प्राण त्याग दिए। परिजन उन्हें चिकित्सालय लेकर गए जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। नंद चतुर्वेदी की अंतिम यात्रा शुक्रवार दोपहर २ बजे उनके अहिंसापुरी स्थित निवास से रवाना होगी एवं अहिंसापुरी मोक्षधाम पर ही उनका अंतिम संस्कार होगा। चतुर्वेदी अपने पीछे चार पुत्रों एवं दो पुत्रियों से भरा परिवार छो$डकर गए है। उनकी एक पुत्री का निधन हो चुका है। साहित्य जगत में ’नंद बाबू’ के नाम से प्रसिद्घ चतुर्वेदीजी ने गत वर्ष अपने काव्य संग्रह ’गा जिंदगी गा’ लिखा। वे लंबे समय समाजवादी आंदोलन से जुडे रहे। 1942 के स्वतंत्रता आंदोलन में बढ चढकर हिस्सा लिया। अपनी कविताओं से अंग्रेज हुकुमत को ललकारा। उन्होंने वर्ष 2003 में विश्व हिन्दी सम्मेलन लंदन में राजस्थान
द्वारा भेजे गए प्रतिनिधि मण्डल में सदस्य के रूप में हिस्सा लिया। उनकी शब्द संसार की प्रसिद्घ कविता ’यायावरी’ को राजस्थान साहित्य अकादमी का सर्वोच्च पुरस्कार मीरां पुरस्कार मिला। इसके अलावा के.के. बिडला फाउण्डेशन द्वारा बिहारी पुरस्कार, लोकमंगल मुंबई पुरस्कार, अखिल भारतीय आकाशवाणी सम्मान (श्रेष्ठ वार्ताकार) से भी नवाजा गया। चतुर्वेदी का जन्म 21 अप्रेल 1923 को रावजी का पीपत्या (पहले राजस्थान में अब मध्यप्रदेश में) हुआ था।उन्होंने हिन्दी में एम.ए. एवं बी.टी. की उच्च शिक्षा प्राप्त की। वे 1950 से 1955 तक गोविंराम सेक्रिया टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज में प्राध्यापक रहे इसके बाद 1956 से 1981 तक विद्याभवन रूरल इंस्टीटयूट में हिन्दी के प्राध्यापक के रूप में कार्य किया। उन्होंने अपना लेखनी में सर्वप्रथम ब्रजभाषा में कविता लिखना प्रारंभ किया। उन्होंने 12 वर्ष की आयु में ही कविता का पहला पुरस्कार प्राप्त हुआ। राष्ट्र की स्वाधीनता और सामाजिक आर्थिक गैर- बराबरियों को रेखांकित करते हुए घनाक्षरी, सवैया, पद, दोहा पदों में रचनाएं लिखी। हिन्दी में चतुष्पदियों, गीत से लगाकर अतुकांत-आधुनिक कविताओं का सृजन किया। उन्होंने ’सम्प्रति’ के नाम से स्वतंत्र लेखन किया।
उन्होंने माध्यमिक शिक्षा की बोर्ड की उच्च कक्षाओं के लिए कहानी तथा गद्य की अन्य विधाओं का संग्रह संपादन का कार्य भी किया। उन्होंने राजस्थान साहित्यक अकादमी के लिए प्रांत के प्रख्यात रचनाकारों पर ’मनोग्राप*’ का लेखन भी किया। प्रकाशित कृतियां: उत्सव का निर्मम समय, शब्द संसार की यायावरी (गद्य), यह समय मामूली नहीं, ईमानदार दुनिया के लिए, वे सोये तो नहीं होंगे (कविता संग्रह), सुधीन्द्र (व्यत्ति* और कविता) राजस्थान साहित्य अकादमी के पुरोधा शृंखला के अंतर्गत प्रकाशित।