उदयपुर। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से दस दिवसीय शिल्पग्राम उत्सव में शनिवार को हाट बाजार में कलात्मक वस्तुओं के खरीददारों का जमावड़ा रहा। हाट बाजार में भ्रमण करते हर एक जना अपने घर को सजाने की आस में कलात्मक चीजों को खरीद रहा है।
उत्सव के सातवें दिन मेला प्रारम्भ होते ही लोगों की भीड़ शिल्पग्राम की ओर मुखातिब हुई तथा लोगों का रेला सा हाट बाजार में नजर आया। हाट बाजार में लोगों को ध्यान घरेलू व सजावटी वस्तुओं पर ज्यादा देखने को मिला। कोई बांस बेंत से घर के ड्राइंग रूम को सजाना चाहता है तो कोई फूलों से कोई मिट्टी की कला कृतियों से। मिट्टी के बने गणेश जी प्रतिमा, मिट्टी काम से बने व रंगों से सजे बड़े पात्र, बांस की बनी कृतियाँ, लैम्प शेड, बैठक, लकड़ी के सोफे, पीतल के बने दीपक, फ्लॉवर पॉट, सूती दरी, सोफा कवर, जूट हैंगिंग्स, मेटल के सजावटी आइटम आदि की दूकानों पर खरीददारों का खासा जमावड़ा रहा।
हाट बजार के वस्त्र संसार में बेड शीट, बेड कवर, विभिन्न परिधान, ऊनी वस्त्र, नमदा के बने कारपेट, वूलन कारपेट, लैदर जैकेट, लेदर पर्स आदि की दूकानों पर युवाओं की रौनक रही। हाट बाजार में विभिन्न थेड़ों पर राठवा कलाकारों, कच्छी घोड़ी नर्तकों व गुदुमबाजा नर्तकों ने दर्शकों का मनोरंजन किया। खान पान के मामले में उत्सव में मक्का का प्रचलन बहुतायत मं देखने को मिला। सर्दी के मौसम के चलते मेले में एक ओर जहां अमरीकन भुटटे खूब चल रहे हैं वहीं दूसरी ओर मक्का की पापड़ी व फल्लिये लोगों को भरपूर पसंद आ रहे है। फूड स्टाल पर मक्का के ढोकले व रोटी, दाल व गुड़ में मचून्द कर खाना लोगों को काफी पसंद आ रहा है। उत्सव में ही लोगों ने ऊँट की सवारी, घुड़ सवारी का आनन्द उठाया।
मीनाकारी की कला कृतियाँ व धातु के वृक्ष
मुरादाबाद के शिल्पकार की बनाई कला कृतियाँ शिल्प कला का अनुपम नमूना है। शिल्पग्राम के दर्पण बाजार में मुरादाबाद से आये शिल्पकार ज़ैद व रेशमा की बनाई कला कृतियाँ आकर्षण का केन्द्र बनी हुई हैं। ज़ैद व रेशमा एल्यूमिनियम धातु को ढाल कर इससे बाउल, ट्रे, डिश का आकर दे कर उस पर मीनाकारी करते हैं। रेशमा ने बताया िकइस मर मीना कारी करते समय उसे अंगुलियों से चमकाया जाता है व काफी मेहनत वाला काम है। इनकी स्टॉल पर फ्रूट प्लेट, तश्तरी, ट्र, टी पॉट, बाउल आदि विभिन्न रंगों में उपलब्ध हैं। ज़ेद ने बताया कि काम के दौरान ही अपनी कला को नया रंग देने के लिये उन्होंने एल्युमिनियम से वृक्ष बनाना शुरू किया जिसका उपयोग वॉल पीस के रूप में होता है। इनके उत्पादों की कीमत इतनी वाजिब है कि इसे खरीद कर आसानी से अपने घर ले जाया जा सकता है।
लावणी ने रिझाया
कलांगन पर तमिलनाडु का कावड़ी कड़गम तथा महाराष्ट्र की लावाणी ने दर्शकों पर अपना जादू सा कर दिया। वहीं सहरिया आदिवासियों का स्वांग व मणिपुर की युद्ध कला थांग-ता दर्शकों को भरपूर रास आई। शनिवार शाम का आगाज मांगणियार लोक गायकों के गायन से हुआ। इसके बाद तमिलनाडु की वीर बालाओं ने सिर पर कावड़ी रख कर अपने संतुलन और एकाग्रता का अद्भुत परिचय दिया। सिर पर कावड़ी के संतुलन के साथ नृत्य करते हुए इन नर्तकियों ने विभिन्न करतब दिखाये। कार्यक्रम में ही महाराष्ट्र लोकप्रिय नृत्य लावणी दर्शकों द्वारा बेहद सराहा गया। लावणी नर्तकियों ने इस अवसर पर मुजरा प्रस्तुत कर अपनी अदाकारियों से दर्शकों को रोमांचित सा कर दिया।
कार्यक्रम में असमी बालाओं का बिहू नृत्य देख की एक बारगी दर्शक झूम उठे वहीं राजस्थान के कोटा अंचल के सहरिया आदिवासियों के स्वांग को देख कर लोग अभिभूत हो गये। स्वांग में कलाकारों ने रंगबिरंगा मेक अप अपने शरीर को सजाया तथा मोर पंख धारण कर नृत्य किया। रंगमंच पर ही मणिपुर की युद्ध कला थांग-ता ने दर्शकों में जोश का संचरण किया। मणिपुर से आई योद्धाओं ने एकल व समूह में अपने युद्ध कौशल को दर्शाया। मणिपुर का ही ढोल ढोलक चोलम पर ढोल वादकों ने अपने ढोल वादन की स्टाइल से दर्शकों का मन मोह लिया। हवा में उछल कर ढोल वादन एक रोमांचकारी अनुभव रहा। गुजरात से आये सिदि कलाकारों ने धमाल में अपने नृत्य से समां सा बांध दिया। कार्यक्रम में इसके अलावा पश्चिम बंगाल का रायबेन्शे, राजस्थान का भपंग, ओडीसा का संबलपुरी नृत्य भी प्रदर्शित किए गए।