शिल्प उत्पादों की सेल में इजाफा
उदयपुर। शिल्पग्राम उत्सव में रविवार को मेलार्थियों का रेला उमड़ पड़ा तथा समूचा हाट बाजार लोगों की आवाजाही से अटा नजर आया वहीं दूसरी आरे हाट बाजार में शिल्पकारों के सृजित उत्पादों की बिक्री में अशातीत इजाफा हुआ। उत्सव के आठवें दिन मेला शुरू होने के साथ ही शहर व आसपास के शहरों से लोगों का मानो रेला सा शिल्पग्राम में उमड़ पड़ा।
मुख्य द्वार पर लोगों की भीड़ रही, वहीं दर्पण द्वार पर भी लोगों का हुजूम सा नजर आया। रविवारीय अवकाश के कारण शहर तथा चित्तौाड़, नाथद्वारा, राजसमन्द से बड़ी संख्या में शिल्पग्राम उत्सव में पहुंचे। लोगों की चाह का आलम यह रहा कि दोपहर में दर्पण बाजार, वस्त्र संसार, जूट बाजार, अलंकरण, उत्तर पूर्वी क्षेत्र, हाट बाजार, अलंकरण, उत्कृष्ट, जूट बाजार में लोगों का तांता सा ललगा रहा। मेले में कोई शिल्प कला की वस्तुओं को देखने व खरीदने में व्यस्त था तो कोई मित्रों परिजनों के साथ खान-पान व मौज मस्ती में लीन नजर आये।
भपंग वादक उमर फारूख ने लोगों को शेरो शायरी सुना कर रिझाया वहीं भपंग वादन के अपने फन से दर्शकों का मनोरंजन भी किया। मुख्य द्वार के समीप चकरी कलाकारों ने अपने नर्तन से रंग जमाया तो राठवा आदिवासियों ने गुर्जरी पर गुजरात की जनजातीय संस्कृति से रूबरू करवाया। मेले में ही लोगों ने खान-पान की विभिन्न वस्तुओं का स्वाद चखा। सम झोंपड़ी में बालकों ने जादू कला, मुखौटा कला व खिलौने बनाने के काम में अपना मन लगाया। मेले में छोटे बच्चे साबुन के पानी से बबुलिये उड़ाते व मटरगश्ती करते देखे गये। मेले में ही कुछ बच्चे अपने अभिभावकों से बिछड़े किन्तुु सजगता के चलते वापस मिल भी गये।
रायबेन्शे व सिद्दि नर्तकों ने किया आल्हादित
मुक्ताकाशी रंगमंच कलांगन पर कलाओं को देखने वालों के लिये गुजरात के सिद्दि कलाकारों व पश्चिम बंगाल रायबेन्शे नृत्य आल्हादकारी कलाए रही वहीं बिहू व भपंग ने अपना जादू सा कर दिया। उत्सव की आठवी शाम का आगाज मांगणियार लोक गायकों के गायन से हुआ इसके बाद कावड़ी कड़गम में नर्तकियों ने अपना करिश्माई नृत्य दिखाया। कार्यक्रम में पश्चिम बंगाल का रायबेन्शे में नृत्य व संगीत के जिम्नास्टिक का प्रयोग दर्शकों को खूब रास आया। कलाकारों के हर एक करतब पर दर्शकों ने करतल ध्वनि से कलाकारों का अभिवादन किया। कार्यक्रम मंक गुजरात से आये सिद्दि कलाकारों ने अपने अपनी अफ्रीकन नृत्य शैली से दर्शकों में रोमांच का संचार करते हुए मुगरवान, ढोल की लय पर थिरकते हुए विभिन्न प्रकार की मुद्राएं दिखाई तथा नृत्य के अंतिम चरण में कलाकारों ने आसमान में काफी ऊँचाई तक नारियल उछाल कर सिर से फोड़ कर दर्शकों को आल्हादित कर दिया। कार्यक्रम में ही गुजरात के राठवा आदिवासियों ने नृत्य करते हुए पिरामिड की संरचना बनाई वहीं ढोलक पुंग चोलम नृत्य में ढोल वादकों ने अनूठे अंदाज में ढोल वादन कर कला प्रेमियों का मन मोह लिया। कार्यक्रम में इसके अलावा सिंगी छम, थांग-ता, संबलपुरी नृत्य भी पेश किए गए।