मेले की बिक्री 65 लाख पंहुची
उदयपुर। घर में पत्नी एवं बहिन को कॉटन कपड़े पर हाथ से कढ़ाई करते हुए अनेकों बार देखा है लेकिन उसी कला को जब आज जनता ने दस्तकार के पास विस्तृत एवं साफ सुथरे रूप में काठियावाड़ी कला को टाऊनहॉल में रूडा (रूरल नॉन फार्म डवलपमेंट एजेंसी) द्वारा आयोजित राष्ट्रीय दस दिवसीय क्राफ्ट मेला-2015 में देखा तो वह अचम्भित हो कर उसे प्रभावित हुई।
दिल्ली से आये दस्तकार संजय कुमार ने बताया कि सिर्फ कॉटन कपड़े पर हाथ से की जाने वाली काठियावाड़ी कढ़ाई से कूशन, बेडशीट, वॉलपीस, दीवान सेट, बेग आदि तैयार किये जाते है। पिछले 20 वर्षो से अपने पिता एवं परिवार के अन्य सदस्यों के साथ इस काठियावाड़ी कला को आगे बढ़ा रहे है। इस कला से दिल्ली में वे 30 लोगों को रोजगार उपलब्ध करा रहे है। पिछले कुछ वर्षो में पब्लिसिटी के अभाव एवं उत्पादों के अधिक नहीं चल पाने के कारण में इस कला के कारीगर कम हुए है। जनता इस कला की मुरीद है। वह इसके उत्पादों को पसन्द भी करती है। दिल्ली में इस कला को आगे बढ़ाने वाले करीब 25 कारीगर काम कर रहे है। गुजरात में इस कला को बेहद पसन्द किया जाता है। मेले में इस स्टॉल पर कम से कम 100 रूपयें में बेग एंव करीब 1200 रूपयें में बेडशीट उपलब्ध है। रूडा के महाप्रबन्धक दिनेश सेठी ने बताया कि मेले में अब तक 65 लाख रूपयें की बिक्री हो चुकी है।