वर्तमान संदर्भ में भगवान महावीर के सिद्धांतों की प्रासंगिकता विषयक सेमिनार
उदयपुर। आज के युग में जैन दर्शन की काफी प्रासंगिकता है। जैन एक धर्म है जाति नहीं। जैन दर्षन जातिवाद में विष्वास नहीं करता। अनेकांत सभी का सम्मान करता है। ही और भी में से यह ही को मानता है। यह विष्व को एक साथ रहना सिखाता है।
ये विचार जोधपुर से आए जैन विद्वत जैनोलोजी में पीएचडी सोहनलाल तातेड़ ने मंगलवार को महावीर जयंती के उपलक्ष्य में महावीर जैन परिषद के बैनर तले अषोक नगर स्थित विज्ञान समिति में वर्तमान संदर्भ में भगवान महावीर के सिद्धांतों की प्रासंगिकता विषयक सेमिनार में मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि भगवान महावीर ने ढाई हजार वर्ष पूर्व ही बता दिया था कि यह पर्यावरण पांच चीजों आग, पानी म्टिटी आदि से बना है। विज्ञान मानता है कि हिमालय प्रतिवर्ष बढ़ता है। राग द्वेष विजेता ही तीर्थंकर कहलाते हैं जो प्रमाणित हैं। अनेकांत बताता है कि जब शरीर की छह अरब कोषिकाएं होते हुए पूरे सिस्टम को बनाए रखती हैं तो फिर विष्व की सात अरब जनता एक साथ क्यों नहीं रह सकती। प्राणी मात्र के प्रति संयम ही अहिंसा है। संयम साधना है। जो पूर्ण संयमी होते हैं, वे महाव्रती बनते हैं जबकि आंषिक रूप से संयमी अणुव्रती बनते हैं। महापुरुष परमात्मा होते हैं। चेतना स्वार्थ की होती है। स्वार्थ के बिना गृहस्थ नहीं चल सकता। पड़ोसी की ध्यान रखना परार्थ की चेतना है।
हमारा साध्य मोक्ष ही है। जैन धर्म एक सिस्टम में विष्वास करता है। सभी दर्षन किसी न किसी बिंदु पर चुप हो जाते हैं लेकिन सिर्फ जैन दर्षन के पास हर बात का जवाब है। जैन धर्म की धुरी है कर्मवाद। जो आत्मा में विष्वास करते हैं, वो कर्मवाद में भी विष्वास करते हैं। कर्म आत्मा के साथ चिपके हैं। 84 लाख योनियों में यही कर्म घुमाते हैं। सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव की रक्षा करना जैन दर्षन ही सिखाता है। जैन धर्म भी यही सिखाता है कि मानव धर्म सबसे बड़ा धर्म है। मानव जाति की रक्षा करें, सभी का सम्मान करें। अच्छे इंसान बनें। यह संकल्प करें।
विभिन्न विष्वविद्यालयों में करीब 55 तरह के दर्षन पढ़ाए जाते हैं लेकिन जो जैन दर्षन मंे दिया गया है, वह चीज किसी भी दर्षन में नहीं है। विष्व भर में छोटे मोटे 300 दर्षन पढ़ाए जाते हैं। सूक्ष्मता की बात करते हैं तो जैन धर्म की बात बताते हुए विष्व कहता है कि इतनी पालना करना बहुत मुष्किल है। अहिंसा की सूक्ष्मतम व्याख्या यही है। हवा में थेसेक्स नामक वायरस घूमता है जिसमें भी जीव है, इसलिए साधु-साध्वी मुंह पर हाथ रखकर बात करते हैं या कपड़ा बांधे रखते हैं।
इससे पूर्व परिषद के संयोजक राजकुमार फत्तावत ने परिषद की गतिविधियां बताते हुए महावीर जयंती पर होने वाले आयोजनों की जानकारी दी। अगला कार्यक्रम 29 जनवरी को सुबह शहर के 25 क्षेत्रों में एक साथ स्वच्छ भारत-स्वस्थ भारत के तहत सफाई अभियान चलाया जाएगा। मुख्य वक्ता का मेवाड़ी पगड़ी, माल्यार्पण, उपरणा ओढ़ा स्मृति चिन्ह भेंटकर अभिनंदन किया गया। मंगलाचरण सोनल सिंघवी, शषि चव्हाण आदि ने किया। विज्ञान समिति के अध्यक्ष केएल कोठारी ने भगवान महावीर पर कविता वाचन किया। संचालन डॉ. सुभाष कोठारी ने किया। आभार परिषद के कोषाध्यक्ष कुलदीप नाहर ने व्यक्त किया।