उदयपुर। गणिनी आर्यिका साध्वी सुप्रकाशमति ने कहा कि संस्कार दर्पण की तरह जीवन को झलकाते हैं। हमारा देश संस्कारों की खातिर त्याग पर चलने वाला देश है। त्याग पर चलने वाले हमारे देशवासी निश्चय ही भाग्यशाली हैं। हमारे यहां संस्कारों को महत्व दिया जाता है। मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे-मोती के साथ आत्मा को परमात्मा बनाने वाली हमारे देश की संस्कृति है।
वे बुधवार को हिरणमगरी सेक्टर 11 स्थित आदिनाथ दिगमबर जैन चेरिटेबल ट्रस्ट की ओर से आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रही थीं। श्रावक ओमप्रकाश गोदावत ने बताया कि गुरु मां के अनुसार वर्तमान की सबसे बड़ी समस्या समय की है जो आदमी को धर्म से दूर कर रही है। कोई कहता है कि टाइम नहीं है और कोई कहता है कि टाइम पास नहीं हो रहा है। समय की कीमत तो अखबार से पूछो जो सुबह ताजगी के साथ चाय के साथ आता है और शाम होते होते रद्दी में चला जाता है। इसलिए कहते हैं कि कोई भी कार्य करो, समय पर करो। जिंदगी मौके कम और धोखे अधिक देती है। गुरु मां ने कहा कि ध्यान और धन दोनों उपयोगी है। ध्यान सर्वोपरि उपयोगी है और धन कार्य होने तक उपयोगी है। दान देने से मन हर्षित होता है, कीर्ति ख्याति प्राप्त होती है। संत कभी धनवान को नहीं पूछता बल्कि वह तो त्यागी को पूछता है जिसने अपने धन का सदुपयोग धर्म में किया है। इसलिए हर कार्य को समय पर करना चाहिए। समय समय पर अपने धन का सदुपयोग करके पुण्यार्जन करना चाहिए।
संस्कार रथ यात्रा : ध्यानोदय क्षेत्र का प्रचार-प्रसार रथ विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों झाड़ोल, खाखड़, मगवास, कोल्यारी, पानरवा, बिछीवाड़ा, बावलवाड़ा होते हुए खेरवाड़ा पहुंचा। रथ के माध्यम से बलीचा स्थित सुप्रकाशमति ध्यान केन्द्र में 29 मार्च को होने वाले कामधेनु शांतिनाथ जिन मंदिर अष्टद्वार स्थापना समारोह की जानकारी दी गई। गांवों में रथ की अगवानी की गई जहां आमंत्रण पत्रिका का अनावरण किया गया। ध्यानोदय रथ को लेकर प्रवक्ता पारस कोठारी व उदयपुर शाखा के महामंत्री सुनील गोदावत ने संचालन किया।