उदयपुर। विजय सोमसुन्दर सुरीश्वर महाराज ने कहा कि श्रावक श्रद्धा, विवेक, क्रिया की त्रिवेणी संगम से बना है। ऐसे श्रावक के 21 गुण बताये गये है। जो श्रावक 21 गुणों से सम्पन्न होता है सही मायनों में उसे ही श्रावक कहते है। पूर्व मुनि सुन्दरजी महाराज रचित प्राचीन ग्रन्थ श्रीधर्म रत्न प्रकरण ग्रन्थ पर आज से वाचन प्रारम्भ हुआ।
वे आज श्री जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक जिनालय (संघ) द्वारा हिरणमगरी से. 4 स्थित श्री शान्तिनाथ जिनालय में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने सर्वप्रथम सर्व कर्म को तोलने वाले अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर भगवान को नमस्कार किया। 21 गुणों के विषय का निरूपण किया गया। उन्होंने कहा कि सभी व्यक्ति धर्म करें, और इस चातुर्मास में इस धर्माराधना से जुड़़ जाए। महाराज ने कहा कि सभी मंत्रों में नवकार महामंत्र सर्वश्रेष्ठ है। प्रतिदिन जो 108 नवकार मंत्र का पाठ करता है, जीवन में उसके सभी दुख दूर हो जाते है। बुरे कर्मों का नाश होता है और आत्मा परमात्मा बन जाती है।
संघ अध्यक्ष सुशील बांठिया ने बताया कि आज दोपहर में 1 बजे 161 श्रावक-श्राविकाओं ने दीपक ज्योत एकासणा प्रारम्भ किया। तत्पश्चात सामूहिक रूप से 12501 नवकार महामंत्र का अनुष्ठान करवाया गया। जिसमें नवकार मंत्र के बारें में समझाकर उसकी महत्ता बतायी गयी।
संघ के महामंत्री प्रभाषचन्द्र नागौरी ने बताया कि आज शाम को साढ़़े 6 बजे शान्तिनाथ युवा मण्डल द्वारा भक्ति संध्या का आयोजन किया गया। धर्मरत्न ग्रन्थ प्रकरण को बोहराने का लाभ सुशील-सरला बांठिया ने लिया। इसके अलावा 5 प्रकार की वाक्षेप पूजा हुई। प्रथम वाक्षेप पूजा सुरेश-रमेश मारू परिवार ने,दूसरी अशोक-मंजू नागौरी, तीसरी डॉ. महेन्द्र-आशा पोरवाल, चौथी चतरलाल-चन्द्रमणी दोशी, पंाचवी वाक्षेप पूजा ईश्वरलाल-चन्द्रमणी सेठ ने की। ग्रन्थ की अष्ठप्रकारी पूजा मनोहर-सुनीता बांठिया ने की। गुरूपूजन सुरेश-रमेश-चन्दा मारू ने किया। ग्रन्थ को सोना रूपा के फलों से डॉ. महेन्द्र-आशा पोरवाल ने बधाया।
देश में संस्कार पतन का दौर जारी
साध्वी श्रद्धांजनाश्री ने कहा कि आज हमारे देश में संस्कार पतन का दौर चल रहा है। हम अपनी पारंपारिक श्रेष्ठ पद्धतियो को विस्मृत कर रहे है और भोगवाद की अंधी दौड़ में दौड़ते जा रहे है त्याग और सेवा के संस्कार समाप्त होते जा रहे है तो इसके कटु परिणाम भी सामने आते जा रहे है।
वे आज सुरजपोल दादाबाड़ी स्थित वासुपूज्य मन्दिर में आयोजित धर्मसभा में बोल रही थी। उन्होनें कहा कि भोगवादी संस्कृति का जहां विस्तार है वहां अत्यन्त समृद्धि होने पर भी सुख, शान्ति और आनन्द नही है। परिवार वहंा टूट चुका है। कोई किसी कि चिन्ता नहीं करता है। सभी अपने भोगोपभोग में मग्न है। सहृदयता और सहानुभुति का वहां मानो निशान भी नही है। पिता या माता जो वृद्ध है अपाहिज है उन्हें वृद्धा श्रम में लगा देते है। महिनो बीत जाते है। माता पिता अपनी संतानो का मुह तक नही देख पाते है। तडपते रहते है अतिंम समय तक यह भोगवाद की देन है भारत में अभी तक भी परिवारवाद जिन्दा है माता पिता को पूज्य मानकर सेवा करने कि परंपरा है किन्तु निपट भोगवाद की आंधी ने इस परंपरा को हिला कर रख दिया है। यह परंपरा यत्र तत्र टूटती जा रही है यहा भोगवाद देशो कि तरह हृदयहीन संस्कृति का विकास होने ही वाला है चारों ओर महान भारतीय आर्य संस्कृति पर प्रहार हो रहा है। चातुर्मास संयोजक प्रतापसिंह चेलावत ने बताया कि आज प्रवचन पश्चात साध्वी श्रद्धांजनाश्री एवं ससंघ की निश्रा में समाज को संदेश देने वाले एक नाटक का मंचन किया किया।