आज संथारे पर कहीं कल दीक्षा पर रोक न लगा दें : मोहनभाई
उदयपुर। रविवार का दिन वासुपूज्य मंदिर में श्रावक-श्राविकाओं के लिए भक्ति भाव भरा रहा। चेन्नई से आए मोहन एवं मनोज भाई ने नियमित व्याख्यान के बाद संगीत की भक्ति सरिता बहाकर चारित्र वंदनावली प्रस्तुत की। श्रावक-श्राविकाएं भाव विभोर हो गए।
पूजनीया साध्वी हेमप्रभा श्रीजी के जन्मोत्सव कार्यक्रम में आयड़ तीर्थ से साध्वी ऋतुप्रियाश्री, मालदास स्ट्रीट आराधना भवन सहित आदि मूर्तिपूजक संघों के साध्वीवृंदों ने भी हिस्सा लिया। दोपहर में जैन धर्म दर्शन पर विशेषज्ञ वार्ता हुई तथा शाम को भक्ति संध्या का आयोजन हुआ। मोहन भाई ने कहा कि यदि दीक्षा नहीं हुई जो आने वाले समय में जैन धर्म समाप्त हो जाएगा। आज संथारे पर रोक लगी है, कल दीक्षा पर भी रोक लगा देंगे जो बिल्कुल उचित नहीं है। उन्होंने संगीतमय भजनों के माध्यम से श्रावकों को संदेश दिया कि अगर साधु-साध्वी भगवंतों के आदेश का पालन करेंगे तो जीवन में क्या नहीं हो सकता? गुरु की आज्ञा ही धर्म है। जवानी जब मचलती है तो विनाश की ओर ले जाती है वहीं जवानी जब महकती है तो साध्वी भगवंत बनाती है। उन्होंने कहा कि भले ही ब्रह्मचारी न बनो लेकिन सदाचारी तो बनो। प्रभु से इतनी कामना करो कि हम में कम से कम सदाचार आ जाए, ऐसा आशीर्वाद तो दो।
उन्होंने कहा कि कुछ दिन पूर्व ही हमने स्वतंत्रता दिवस मनाया। हमारे गणतंत्र दिवस को 65 साल से अधिक हो गए। संविधान लागू हुआ और उसके बाद अब तक करीब 116 बार उसमे संशोधन हो चुके हैं। यह ठीक नहीं, ऐसा नहीं, ऐसा करो लेकिन 2570 वर्ष पूर्व भगवान महावीर ने संविधान दिया। उसमें न तो कोई संशोधन हुआ और न ही किसी संशोधन की आवश्यकता महसूस हुई। आज भी उसी अनुरूप सब कुछ चल रहा है। उन्होंने जिस तरह रहने, एकासन, उपवास करने, वेशभूषा निर्धारित की, आज तक सब कुछ वैसा ही चल रहा है। ऐसे अनेक उदाहरण हमारे सामने हैं जिसमें मासखमण के तहत 29 उपवास पूरे होने पर गुरु भगवंत ने नवकारसी कहा और शिष्य ने किए। संयम जीवन की बातें सुनने में ही जब इतना आनंद आता है तो सोचो कि जब अपने जीवन में उतारोगे तो कितना आनंद आ जाएगा?
इससे पूर्व साध्वी श्रद्धांजना श्रीजी ने सुबह व्याख्यान में कहा कि अंधानुकरण की प्रवृति हमें डूबा रही है। जैन कुल में कहा गया है कि जीव दया करो। जितना सुलभ उपयोग होगा, उतनी ही सुलभता से अगले जन्म में वह मिलेगी। हमारे यहां रात्रि भोजन निषेध है इसीलिए कि जीव हिंसा न हो। हमेशा देने का भाव रखो। पुण्य से मिला है तो उसे गंवाओ मत। जो है, उस पर सांप की तरह कुण्डली मारकर मत बैठो।