उदयपुर। कल्पना के बिना कुछ भी रचनात्मक नहीं होता, लेकिन कथेतर गद्य में कल्पना का न्यूनतम इस्तेमाल होता है। ये विचार केन्द्रीय साहित्य अकादमी के अध्यक्ष प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने व्यक्त किए।
तिवारी मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग और केन्द्रीय साहित्य अकादमी के तत्वावधान में आयोजित ’हिन्दी का कथेतर गद्य’ विषयक संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रकाशन उद्योग के आंकड़ों के मुताबिक कविता, कहानी और उपन्यास आदि विधाओं की अपेक्षा कथेतर गद्य के पाठकों के संख्या सर्वाधिक है। चित्तौड़गढ़ में रानी पद्मिनी के उत्सर्ग के संदर्भ में उन्होंने ‘अगिनस्नान’ शब्द का उल्लेख करते हुए कहा कि भाषा की रचनात्मकता लेखक और पाठक दोनों के लिए नये शब्दों का परिचय उपलब्ध कराती है। आरंभिक वक्तव्य देते हुए प्रो. सूर्यप्रकाश दीक्षित ने कहा कि अकादमी का उद्देश्य नई-नई प्रतिभाओं को उजागर करना एवं साहित्य को सामने लाना है। कथेतर गद्य आधुनिक युग की अनेक विधाओं का आधार है। उन्होंने बताया कि हमारे समय में शिक्षा, व्यापार-व्यवसाय, विज्ञापन-प्रचार, जनसंपर्क आदि में गद्य के विविध आयाम देखने को मिलते हैं। उन्होंने जीवनी साहित्य के प्रति अरुचि को चिंताजनक बताया। जब समाज अपने रोल मॉडल के प्रति उदासीन हो जाएगा तो उसका भ्रष्ट होना अवश्यसंभावी है। उन्होंने डायरी लेखन, पत्र लेखन, समीक्षा साहित्य, नाटक, लोक नाट्य आदि अनेक विधाओं के संदर्भ में रचनात्मक लेखन की प्रासंगिकता का उल्लेख किया।
अकादमी के उपसचिव ब्रजेन्द्र त्रिपाठी ने स्वागत वक्तव्य में अकादमी की कार्यप्रणाली और योजनाओं के विषय में बताया। उन्होंने कहा कि बडे़ महानगरों की अपेक्षा बड़े गांवों, छोटे कस्बों और शहरों में साहित्यिक आयोजनों के प्रति अधिक रुचि और समकालीन प्रश्नो के प्रति त्वरित और तीव्र प्रतिक्रिया मिलती है। अकादमी भारतीय भाषाओं के साहित्य को अनुवाद के माध्यम से सर्वसुलभ करने का प्रयत्न कर रही है। अकादेमी 24 भाषाओं में साहित्य के प्रकाशन को प्रोत्साहित करती है। अकादमी मौलिक लेखन, अनुदित साहित्य, युवा रचनाकार और बाल साहित्यकारों को पुरस्कृत करती है।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. आईवी त्रिवेदी ने साहित्यकारों के इस सम्मेलन को नासिक के कंुभ के समान लघु कंुभ की संज्ञा दी। उन्होंने अकादेमी के इस आयोजन को दक्षिण राजस्थान के रचनाकारों, शोधार्थियों और साहित्यप्रेमियों के लिए अत्यंत लाभदायक बताया। उन्होंने कथेतर गद्य के विकास के लिए विस्तृत कार्ययोजना बनाए जाने की आवश्यकता जताई।
सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय की अधिष्ठाता प्रो. फरीदाशाह विशिष्ट अतिथि के रूप में अपने उद्बोधन में विश्व अर्थव्यवस्था में रचनात्मक के प्रभावी पक्षों चर्चा की। उन्होंने कहा कि सम्प्रेषण की विधाएँ समय के साथ बदलती हैं। इस अवसर पर प्रो. माधव हाड़ा ने कहा कि कथेतर गद्य में मनुष्य अपने मन का रचनात्मक उपयोग करता है। उन्होंने कथेतर गद्य की रचना प्रक्रिया के संदर्भ में कहा कि स्वतंत्रता का हमारा अनुभव कविता की अपेक्षा गद्य में अधिक व्यस्क होता है। संगोष्ठी के प्रथम सत्र में ललित निबंध को केन्द्र में रखकर विचार विमर्श किया गया। इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार और आलोचक नवलकिशोर ने कहा कि समय के साथ विधाएँ रूपांतरित होती रहती हैं। आज के समाज में विमर्श और रचनात्मकता का स्थान कम होता जा रहा है। हमार समाज बहुत असहिष्णु हो गया है। असहिष्णुता की संस्कृति रचनात्मकता के लिए संकटपूर्ण स्थिति है। इस सत्र में श्यामसंुदर दूबे और अरुणेश नीरन ने अपने शोधपत्रों का वाचन किया। प्रो. माधव हाड़ा ने बताया कि संगोष्ठी के दूसरे दिन शनिवार को यात्रा वृतांत, रिपोर्ताज, आत्मकथा, जीवनी, संस्मरण, डायरी, साक्षात्कार,रेखाचित्र और पत्रलेखन के साथ ही हिंदी मीडिया के गद्य पर चर्चा की जाएगी। संगोष्ठी के विभिन्न सत्रों में अमृतलाल वेगड़, गोविंद मिश्र, रंजना अरगडे़, प्रदीप सौरभ, सतीश जायसवाल,शाजी जमा हेतु भारद्वाज, हनुमानप्रसाद शुक्ल, रामशंकर द्विवेदी, महावीर अग्रवाल और राहुलदेव में अपने विचार व्यक्त करेंगे।