गन्दे पानी (वेस्ट वाटर) के सुरक्षित उपयोग पर अन्तर्राष्ट्रीय कार्यशाला
उदयपुर में सेप्टिक टैंक निर्माण एवं संधारण उपनियम लागू करने सम्बंधी प्रस्ताव प्रस्तुत
उदयपुर। देश में एक समग्र वेस्ट वाटर पॉलिसी की जरूरत है। उदयपुर सहित देश का एक बड़ा हिस्सा सेप्टिक टैंक का उपयोग कर रहा है, लेकिन सेप्टिक टैंक के मलबे व निकलने वाले पानी (सेप्टज) के प्रबंधन पर फोकस नहीं है। गन्दे पानी में उपस्थित जीवाणु सब्जियों के माध्यम से मानव स्वास्थ्य को गंभीर संकट पहुंचा रहे हैं। शहरीकरण ने खेती योग्य जमीन को नष्ट किया है, जबकि शहर के आस-पास खेती शहर को वास्तविक मायनों में स्मार्ट बनाते है।
इन्हीं सब चर्चाओं के साथ सोमवार को विद्या भवन पॉलिटेक्निक में चार दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय कार्यशाला प्रारंभ हुई। कार्यशाला महाराणा प्रताप कृषि विष्वविद्यालय, वोलकेम इण्डिया लिमिटेड, वेस्टर्न सिडनी यूनिवरसिटी, सी.एस.आई.आर.ओ. आस्ट्रेलिया द्वारा क्रोफर्ड फण्ड के सहयोग से हो रही है। उद्घाटन करते हुए मेयर चन्द्रसिंह कोठारी ने विश्वास व्यक्त किया कि कार्यशाला के उदयपुर में आयोजन से शहर को स्मार्ट सिटी बनाने में मदद मिलेगी। मेयर ने कहा कि स्मार्ट सिटी के प्रयासों में उदयपुर के नागरिकों की भागीदारी अभूतपूर्व है। अध्यक्षता विद्या भवन के अध्यक्ष अजय मेहता ने की।
कार्यशाला में सेन्टर फॉर पॉलिसी रिसर्च, नई दिल्ली के अमनदीप सिंह ने विद्या भवन एवं वोलकेम इण्डिया लिमिटेड के सहयोग से हुए अनुसंधान का हवाला देते हुए कहा कि उदयपुर में सेप्टिक टैंक ठीक से नहीं बनाये जा रहे हैं। साथ ही उनकी नियमित अंतराल पर सफाई की व्यवस्था भी नहीं है। ऐसे में सेप्टिक टैंक डिजाइन एवं कन्स्ट्रक्शन का मेन्यूअल बनाया गया है। आरपीएससी के पूर्व अध्यक्ष जीएस टांक ने मेयर से आग्रह किया कि सेप्टिक टैंक डिजाइन निर्माण व संधारण सम्बंधी उपनियमों को भवन निर्माण अनुमति का हिस्सा बनायें।
सीपीआर की ही किम्बरली नोरहना ने कहा कि वेस्ट वाटर को मात्र गंदा बहाव नहीं मान एक संसाधन के रूप में लेना होगा। बड़े शहरों के बजाय मझले व छोटे शहरों की ठोस कचरे व सिवरेज की समस्याओं को नीतियों का आधार बनाना चाहिये। राजस्थान की प्रस्तावित सिवरेज एवं वेस्ट वाटर पॉलिसी, 2015 का विश्लेषण करते हुए किम्बरली ने कहा कि नीति में स्पष्ट कार्य योजना तथा वित्तीय आवंटन का प्रावधान होना चाहिये। सेप्टिक टैंक मलबे व निकलने वाले गंदे पानी के उपचार को प्राथमिकता देते हुए केवल सौ प्रतिषत सिवरेज लाइन बिछाने की महत्वाकांक्षा पर ही निर्भर नहीं रहना चाहिये। स्पष्ट नीति के अभाव में सेप्टिक टेंक मलबे को बिना उपचार के विसर्जित किया जा रहा है। जो बहुत खतरनाक है।
इन्स्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज, अहमदाबाद के निदेशक प्रोफेसर ऋषिशंकर ने कहा कि सब्जियों को साफ पानी में 15 मिनिट भिगोने व फिर कम से कम दस बार धोने से जीवाणु खतरे को कम किया जा सकता है। ऋषिशंकर ने कहा कि धनिया, मेथी, पालक सहित अन्य सब्जियों की जब गन्दे पानी से सिंचाई की जाती है, तो उन सब्जियों पर गम्भीर बीमारियां पैदा करने वाले जीवाणु चिपके रहते हैं। झीलों में भी जलकुम्भी सहित सभी खरपतवारों पर बड़ी भारी मात्रा में बीमारियां पैदा करने वाले जीवाणु चिपके होते हैं। ऐसे में प्रदूषित झीलों में नहाना खतरनाक है। ऋषिशंकर ने कहा कि जल परिशोधन तथा सिवरेज परिशोधन संयत्रों की डिजाइन में एन्टिबायोटिक रेजिस्टेन्ट तथा क्लोरीन रेजिस्टेन्ट जीवाणुओं पर ध्यान देना जरूरी है।
कार्यशाला में वेस्टर्न सिडनी युनिवर्सिटी के डा. बसन्त माहेश्वरी तथा सी. एस. आई. आर. ओ. ऑस्ट्रेलिया के डा. राय कूकणा ने कहा कि उदयपुर सहित सभी शहरों में खेती योग्य जमीन तथा पहाड़ियों का भू उपयोग बदल कर कोन्क्रीट जंगल बनाना पर्यावरण एवं सामाजिक, आर्थिक दृष्टि से नुकसानदायक है। शहरों के आस-पास साफ व सुरक्षित खेती स्मार्ट शहर बनने के लिए बहुत जरूरी है। प्रसिद्ध भू-जल वैज्ञानिक क्रिस डेरी तथा फ्लिन्डर यूनिवर्सिटी के डा. पीटर ढिलन ने भी विचार व्यक्त किये। महाराष्ट्र के डा. उपेन्द्र कुलकर्णी ने देश की विविध वाटर तथा वेस्ट वाटर परियोजनाओं की समीक्षा प्रस्तुत की।
मंगलवार का कार्यक्रम : नागरिकों के द्वारा उपयोग में ली जा रही विभिन्न दवाइयां, शैम्पू, साबुन तथा अन्य सौन्दर्य प्रसाधनों में आयड़ नदी में बढ़ रहे विषैले तत्वों की उपस्थिति पर मंगलवार को विशेष सत्र होगा। उल्लेखनीय है कि भारत में पहली बार किसी शहर की नदी पर ऐसा विस्तृत अध्ययन किया गया।