चिन्तक एवं वैज्ञानिक डॉ डी़एस़ कोठारी की स्मृति में विज्ञान दिवस समारोह
उदयपुर। पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक इसरो अहमदाबाद के डॉ सुरेन्द्रसिंह पोखरना ने कहा कि खोज में पता चलता है कि वर्ष 2050 तक पृथ्वी का तापमान 2 डिग्री बढ़ जाएगा। इसके लिए जिम्मेदार कौन है। विकास और तकनीकी बनाने से पहले यह चेतना जरूरी है कि इसका पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा। पृथ्वी से अब तक 5 बार प्रलय आ चुका है, सभी जीव नष्ट हो चुके थे लेकिन यह सब प्रकृति के कारण हुआ।
वे आज अशोक नगर स्थित विज्ञान समिति में बुधवार को प्रसिद्ध अध्यात्म चिन्तक एवं वैज्ञानिक डॉ डी़एस़ कोठारी की स्मृति में आयोजित विज्ञान दिवस समारोह में चेतना, अध्यात्म और विज्ञान विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि अब यह कहा जा रहा है कि अब छठी बार जो प्रलय या विनाश होगा उसका सीधा जिम्मेदार विज्ञान होगा, इसके आविष्कार होंगे। इसके बारे में चेतना बहुत जरूरी है। हमें यह चेतना में लाना होगा कि पानी में जो गुण है वह ऑक्सीजन में नहीं और ऑक्सीजन में जो गुण है वह पानी में नहीं। इसलिए हमें चेतना, अध्यात्म और विज्ञान तीनों को साथ मिल कर काम करना होगा।
इसरो अहमदाबाद के पूर्व विभागाध्यक्ष, रिमोट सेंसिंग डॉ रमेश पंड्या ने कहा कि शांति अन्तरिक्ष में, शांति पृथ्वी में, शांति वनस्पति में, शांति औषधि में होती है। विज्ञान विशिष्ठ ज्ञान है। जब तक जिज्ञासा नहीं होगी, उत्कंठा नहीं होगी, ज्ञान नहीं मिलेगा। उन्होंने विज्ञान और अध्यात्म को जोड़ते हुए कहा कि जो अध्यात्म कहता है विज्ञान भी वहीं करता है लेकिन विज्ञान पहले उसे सिद्ध करता है। ब्रह्माण्ड की बात अध्यात्म भी करता है, सभी चीजें ब्रह्माण्ड में है विज्ञान मानता है लेकिन ब्रह्माण्ड क्या है, वह किस तत्व से बना है यह विज्ञान के लिए चुनौति है, खोज का विषय है।
साध्वी कीर्तिलता ने कहा कि जिस प्रकार का अन्धा देख नहीं सकता ठीक उसी प्रकार पंगु चल नहीं सकता और जब दोनों साथ मिल जाते है तो हर बाधा आसानी से पार कर जाते है। ठीक ऐसा ही रिश्ता आध्यात्म एवं विज्ञान के बीच है। दोनों अपने आप में अकेले है लेककन जब दोनेां साथ मिल जाते है तो नया रिश्ता सामनें आता है।
कुलपति एमपीयूटी उमाशंकर शर्मा ने कहा कि डॉ कोठारी ज्ञान के भण्डार थे और वह आज की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं। उन्होंने देश की सुरक्षा और शिक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय की जरूरत बताई।
प्रथम सत्र में डॉ. केएल कोठारी ने सर्वप्रथम अतिथि सत्कार किया। उन्होंने डॉ. डीएस कोठारी के जीवन के बारे में बताते हुए कहा कि वह अध्यात्म और विज्ञान दोनों को साथ लेकर चलते थे। वह अहिंसावदी थे। किसी भीा अन्धविश्वास के वह घोर विरोधी थे। जब हिरोशिमा पर बम गिरे थे उस समय उन्होंने दो लेवचर दिये पहला साधारण व्यक्ति के लिए दूसरा मिलिट्री पर्सन के लिए। उनके दोनों लेक्चर्स से तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहलाल नेहरू काफी प्रभावित हुए थे। उनके तकनीकी ज्ञान से हमारे देश को काफी लाभ हुआ और हमने उनके बनाये तंत्र से कई युद्ध भी जीते।
संयोजक संगोष्ठी एवं मोतीलाल नेहरू रीजनल कॉलेज अहमदाबाद के पूर्व प्राचार्य नारयणलाल कच्छारा ने चेतना, अध्यात्म और विज्ञान के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि चेतना आत्मा का ही मुद्गल है। शरीर आत्मा से अलग है। आत्मा चेतना है। चेतना का उपयोग होता है। चेतना और उपयोग आत्मा के दो गुण है। भारतीय दर्शन मानता है कि पुनर्जन्म होता है लेकिन अन्य धर्मों में यह मान्यता नहीं देखी जाती। मन और मस्तिष्क दोनों में भेद है क्योंकि आत्मा स्थाई है और मन अस्थाई होती है। अध्यात्म का दर्शन आत्मा है लेकिन विज्ञान आत्मा को नहीं मानता है। विज्ञान उन्हीं चीजों को मानता है जो लेबोरेट्री में सिद्ध हो सके, लेकिन आत्मा न दिखती है और न ही उसे सिद्ध किया जा सकता है।
पूर्व अघिष्ठाता सुखाड़िया विवि उदयपुर डॉ. प्रेमसुमन जैन ने प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन का उदहारण देते हुए कहा कि एक बार वह सफर कर रहे थे लेकिन टिकिट चैक करने के दौरान उनका टिकिट नहीं मिला। दूसरे यात्री ने कहा अरे कोई बात नहीं यह तो बहोत बड़े वैज्ञानिक हैं, टिकिट का क्या करना है, लेकिन आइंस्टीन ने कहा कि टिकिट की इन्हें नहीं मुझे जरूरत है ताकि मुझे पता चले कि मुझे उतरना कहां है। चेतना, अध्यात्म और विज्ञान का भी यही सिद्धान्त है। हम कौन हैं, कहां से आये हैं और हमें जाना कहां है। यही तो हमें जानना है। दर्शन आध्यात्मिक, विज्ञान भौतिक क्षेत्र है जबकि जागरण ही चेतना है। उन्होंने कहा कि चेतना और आध्यात्मिकता का गहरा सम्बन्ध है।
अहमदाबाद के कन्सल्टिंग मनोरोग चिकित्सक डॉ. विश्वमोहन ठाकुर ने मन, मष्तिष्क, अध्यात्म, विज्ञान और चेतना के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि आंखों में एक छवि पाने के लिए मस्तिष्क का एक तिहाई भाग लग जाता है। दरअसल हम जो देखते हैं वह सत्य नहीं होता है। यह तो दिमाग तय करता है कि जो हम देख रहे हैं वह चीज है क्या। उन्होंने कहा कि यह मिथ्या है कि जो हम देखते हैं वह सही है। सत्य को जानने के लिए न मन काम करता है न ही दृष्टि। दरअसल हम सत्य वहां ढूंढ रहे हैं जहां पर सत्य है ही नहीं। जब हमें देखने से ही सब कुछ आभास हो जाता है तो दीमाग में चेतना कहां से आती है। यही खोज का विषय है।
पूर्व कुलपति सिंघानिया विवि झुंझुनू डॉ सोहनराज तातेड़ ने चेतना की साक्षी में अध्यात्म का भेद बताते हुए कहा कि अध्यात्म की खोज भीतर जाती है जबकि विज्ञान बाहर की खोज करता है तो दिखाई पड़ता है। भीतर व साधारण जगत की एक बात साधारण है वह है चेतना। विज्ञान जो सत्य खोजता है वह बाहरी लेबोरेट्री में जबकि अध्यात्म जिसे खोजता है वह भीतर की लेबोरेट्री में। संचालन डॉ. एलएल धाकड़ ने किया। और धन्यवाद की रस्म डॉ. आरएल जैन ने निभाई और कहा कि वैज्ञानिकों को अध्यात्मिक कैसे बनाया जाए इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक कमेटी बनानी चाहिये। साध्वीश्री के मंगलाचरण के साथ संगोष्ठी का आरंभ हुआ।