उदयपुर। आदिवासियों के आडम्बरहीन दर्शन से समाज की मुख्यधारा भी बहुत सी बातें सीख सकती है। वर्तमान सामाजिक जीवन को समस्याओं से बचाने के लिए आदिवासियों की जीवनशैली से सीखने की जरुरत है।
ये विचार पूर्व सांसद रघुवीर मीणा ने मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग एवं मेवाड़-वागड़-मालवा जनजाति विकास संस्थान उदयपुर के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित समकालीन आदिवासी विमर्श : सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह में व्यक्त किए। उन्होंने सामाजिक उत्सवों के अनेक उदाहरण देते हुए जनजातियों में प्रचलित सहकारी और सहयोगी परम्पराओं की चर्चा की ।
मुख्य वक्ता डॉ. आर. बी. कुमार ने कहा कि देश के आदिवासियों की समस्याओं को सामान्य नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए। देश के हर क्षेत्र के आदिवासी की समस्या अलग है और उसके लिए नीति निर्माताओं को विशेष दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। विस्थापन, पुनर्वास और नियोजन के प्रश्नों पर सम्यक विचार-विमर्श की आवश्यकता है। आदिवासी समूह विकास के विविध चरण पार कर चुका है। इनमें अंतर्विरोधों को दूर करने और समेकित विकास को हासिल करने के सम्यक प्रयत्न किए जाने चाहिए।
सत्र में राजीव गांधी जनजातीय विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति टीसी डामोर ने आदिवासी जनजीवन के विभिन्न संदर्भों पर अधिकाधिक और तथ्यपरक लेखन के लिए युवाओं का आह्वान किया। मेवाड़-वागड़ मालवा जनजाति विकास संस्थान के अध्यक्ष प्रभुलाल डैंडोर ने कहा कि मेवाड़, वागड़ और मालवा क्षेत्र की आदिवासी संस्कृति को विश्वस्तरीय पहचान दिलाने के लिए हमें निरंतर आयोजन करने चाहिए।
अध्यक्षता करते हुए प्रो. सीमा मलिक ने कहा कि हमारा आज का जीवन विविधताओं का उत्सव है। अपने सामाजिक जीवन की सभी विविधताओं को स्वीकारते हुए हम व्यापक स्तर समायोजन और पारस्परिक संवाद को बनाए रखने का प्रयत्न कर रहे है और साहित्य इन प्रयत्नों का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है।
संगोष्ठी संयोजक मन्नालाल रावत ने संगोष्ठी का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. माधव हाड़ा ने अपने स्वागत कथन में आदिवासी बहुल क्षेत्र में स्थित विश्वविद्यालय में संगोष्ठी के आयोजन की महत्ता प्रतिपदित की।
इन्होंने पत्र पढ़े : संगोष्ठी में मणिपुर से शोधार्थी के.एच. अरूणादेवी एवं वाईखोम, केरल से मुमताज बीएम, गोवा से डॉ. रूपा च्यारी, गुजरात से डॉ. भानू चौधरी, हरियाणा से डॉ. अमित मनोज, जामिया मिलिया विवि से शोधार्थी जरीना दीवान और अलीगढ़ मुस्लिम विवि उ.प्र. से डॉ. अशोक द्विवेदी आदि ने आदिवासी समाज संस्कृति और उस पर पड़े वैश्वीकरण के प्रभाव को अपने शोध पत्रों के माध्यम से व्यक्त किया। संचालन डॉ. राजकुमार व्यास ने किया।