समर्पण ध्यान योग के प्रणेता सद्गुरु शिवकृपानंद स्वामी की उदयपुर में लाइव प्रश्नोत्तरी
उदयपुर। सदगुरु शिव कृपानंद स्वामी ने कहा कि सत्य की अनुभूति का सबसे सरल मार्ग समर्पण ध्यानयोग है। इसमें किसी भी तरह के योगासन, प्राणायाम, क्रियायोग का समावेश नहीं है। इसके लिए किसी तरह के खान-पान का बंधन भी नहीं है।
स्वामी शिवकृपानंद स्वामी शनिवार को सेक्टर 11 के ऑडिटोरियम में आयोजित समर्पण ध्यान लाइव एवं प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि नियमित रूप से समर्पण ध्यान योग करने पर रोग-व्याधियों से मुक्ति, तनावमुक्त जीवन, व्यसनमुक्त, जीवन में एकाग्रता बढ़ना, सकारात्मक सोच बढ़ना, आत्मजागृति से धीरे धीरे आत्माभिमुख होना प्रमुख है। नियमित ध्यान करने से बच्चों व युवाओं में एकाग्रता, स्थिरता और आत्मविश्वास का विकास होता है जिससे उनके शिक्षा जीवन में सर्वांगीण विकास होता है।
उन्होंने समर्पण ध्यान के दौरान मानव शरीर में स्थित सात उर्जा केन्द्रों, तीन नाड़ियों (चन्द्र नाड़ी), सूर्यनाड़ी एवं मध्य नाड़ी की जानकारी देते हुए ध्यान योग कराया। साथ ही जीवन में मानसिक, शारीरिक, भौतिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक स्तर पर होने वाले लाभों की भी जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि भगवान कहीं बाहर नहीं है। अपने अंदर ही है। भगवान, खुदा, वाहेगुरु सभी एक ही हैं। शरीरी रूप में कोई भी नहीं है। आत्मा ही आपको गलत काम करने से रोकती है। यह ध्यान से आता है। ध्यान के माध्यम से परमात्मा तक पहुंचा जा सकता है। एक परिवार में अलग अलग भगवान को मानने वाले पति-पत्नी जब जिंदगी साथ में निकाल सकते हैं। परमात्मा अविनाशी है। यह कोई शरीर नहीं हो सकता। शरीर ऐसा कोई भी नहीं है जो पहले भी था, अब भी है और बाद में भी रहेगा। भगवान तो एक विश्वत चेतना है। जिस माध्यम से आपका काम हुआ, वह आपके लिए भगवान है। परमात्मा की जब बाहर से खोज बंद होगी, अंदर से चालू होगी उसी दिन से आपका काम होना शुरू हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि बड़े समंदर, नदियों, नालों, तालाबों से पानी आप नहीं पी सकते लेकिन यदि आपके घर में लगे हुए नल से आपको पीने का पानी मिल रहा है तो समंदर और नदी आपके किसी काम के नहीं। बिल्कुल इसी तरह आपका काम जिस माध्यम से हो रहा है, वह आपके लिए भगवान है। भगवान किसी भी रूप में आपके सामने आ सकता है, यह जरूरी नहीं कि वह शरीरी रूप् में हो अथवा अशरीरी रूप में हो।
स्वामीजी ने कहा कि समर्पण यानी देह का अपनी आत्मा के प्रति समर्पण है। ध्यान यानी नियमित 30 मिनट के लिए देहभाव से मुक्त होकर आत्मभाव में रहना अथवा योग यानी जोड़ना, ध्यान को जीवन से जोड़ें। यह एक सरल ध्यान पद्धति है जिसे किसी भी देश, जाति, धर्म, भाषा का कोई भी व्यक्ति आसानी से अपना सकता है। नियमित ध्यान करने से आप स्वयं के मार्गदर्शक बन सकते हैं। अच्छे बुरे का ज्ञान स्वयं होने लग जाता है। इससे निर्विचारिता की स्थिति प्राप्त होती है जिससे मानसिक क्षमता का विकास होता है, एकाग्रता बढ़ती है और ताजगी बनी रहती है। इस अवसर पर उदयपुर समर्पण सेंटर के साधक महेश टांक, रवि टांक, बालकिशन जागेटिया सहित अन्य कई साधकों ने सेवाएं दी।