उदयपुर। आवासीय बस्तियों एवम सड़को पर बढ़ते पैंथरों के हमले का मुख्य कारण जंगलो का सिकुड़ना व वाइल्ड लाइफ में मानवीय हस्तक्षेप का बढ़ना है। यह स्थिति सोचनीय इसलिए भी है कि हमारा पेंथर वर्तमान में 90 प्रतिशत चूहों पर जिन्दा है। जरूरत इस समय पेंथर के हेबिटात के साथ ही चूहों को भी बचने की जरुरत हैं।
ये विचार पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ सतीश शर्मा ने डॉ. मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा आयोजित मनुष्य और वाइल्ड लाइफ विषयक सम्वाद में व्यक्त किये।डॉ शर्मा ने कहा कि जंगल में चिंकारा, खरगोश व सूअर के प्रजनन को बढ़ा कर ही वाइल्ड लाइफ को बचाया जा सकता है।
पर्यावरणविद डॉ. तेज राजदान ने कहा कि जंगली जानवरो के आवास को विकास के नाम पर जो खुर्द बोर्ड किया गया है उसे दुरस्त करने की जरूरत है। जंगलों को बचाने के लिए पानी को बचाना होगा। अच्छी वाइल्ड लाइफ व जंगलो से ही ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को रोका जा सकता है। प्रकृति साधना केंद्र के डॉ आर एल श्रीमाली ने कहा कि भीलों का बेदला में पेंथर आते हैं शिकार करते हैं किन्तु ये मेन ईटर नहीं हुए है। जरूरत ये है कि जंगल को बचाएं और वाइल्ड लाइफ की फ़ूड चेन बनी रहने दें। विद्या भवन रूरल इंस्टिट्यूट के डॉ. श्रीराम आर्य ने कहा प्रकृति और मनुष्य के मध्य एक सामन्जस्य बनाने की महती जरूरत है। मावली के कृषक एकलिंगनाथ पालीवाल ने कहा कि वाइल्ड लाइफ का पलायन जंगलों से ग्रास ईटर जानवरो की कमी व पानी की कमी से हुआ है।जरूरत है कि जंगलों को सरसब्ज किया जाये। समाज सेवी उद्योगपति अजय टाया व शिक्षाविद् डॉ. रघुनाथ शर्मा ने जंगल व वन्यजीवों को बचाने के लिए लोक शिक्षण की आवश्यकता पर बल दिया। संवाद का संयोजन करते हुए ट्रस्ट सचिव नन्दकिशोर शर्मा ने कहा कि पर्यावरण व प्रकृति संरक्षण में जन भागीदारी की महती भूमिका है। संवाद में अरविन्द भावसार, नितेश सिंह व बंशीलाल ने भी भाग लिया।