दो दिवसीय वरिष्ठ नागरिक की जीवन शैलीः विकल्प एवं चुनौतियां विषयक संगोष्ठी प्रारम्भ
उदयपुर। गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि वरिष्ठजनों की बुद्धि का उपयोग समाज रचना में कैसे हो सकता है, इसका कोई व्यवस्थित प्रारूप नहीं है। मैं पहले भी यूआईटी और नगर निगम से कह चुका हूं कि इनकी कर्मशक्ति का उपयोग किया जाना चाहिए ताकि हमारे लिए भी आगे का रास्ता खुलेगा। हम अच्छे कर्म करेंगे तो कई क्षेत्र खुले हुए हैं। ऐसे कई तबके हैं जिन्हें हमारी सोच की गहन जरूरत है।
वे रविवार को आरसीए सभागार में वरिष्ठ नागरिक सेवा समिति और पेंशनर्स सोसायटी, एमपीयूएटी के साझे में अंतरराष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक दिवस पर वरिष्ठ नागरिकों की जीवन शैली: विकल्प एवं चुनौतियां विषयक आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि काम करने की क्षमता है, समझ है तब तक लगन लगाकर काम करना चाहिए। घर में टीवी से बाहर निकलें। मन को प्रसन्न रखें। इतनी उम्मीद किसी से नहीं रखें कि निराशा का भाव आए। आप संख्या बल में इतने वरिष्ठ नागरिक हैं। आप आपस में भी संपर्क रखेंगे तो किसी को कोई समस्या नहीं आएगी। अगर आपने माता-पिता को सम्मान दिया है तो आपके बच्चे आपको भी सम्मान देंगे। उदयपुर शहर के विकास के लिए मिलकर काम करें। शिक्षा की दृष्टि से काफी अनुभव है और गरीब बच्चों को इसकी जरूरत भी। आप यदि इस पर कुछ काम कर पाएं तो अच्छा रहेगा।
अध्यक्षता करते हुए एमपीयूएटी के कुलपति प्रो. उमाशंकर शर्मा ने कहा कि वरिष्ठ यानी श्रेष्ठ, उच्च, ये परिवार-समाज की अमूल्य निधि हैं। उनमें अनुभव का सागर है। मानव मूल्य, नैतिकता अब बदल गए हैं। संयुक्त का स्थान एकल परिवारों ने ले लिया है। बुजुर्गों की देखभाल संयुक्त परिवारों में अच्छे से होती थी। नई पीढ़ी के निर्माण में उनका योगदान रहता था। आज भी 75 वर्ष की अवस्था में युवा हैं, ऐसे भी नागरिक काम करते हैं। स्वयं पर उम्र कभी हावी न होने दें।
विशिष्ट अतिथि कोटा यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. पीके दशोरा ने कहा कि वर्णाश्रम में पहले 25-25 वर्ष बंटे रहते थे लेकिन अब अगले क्षण का भरोसा नहीं कि कब, क्या हो जाए, ऐसे में प्रतिदिन, प्रतिक्षण चारों वर्णों का अनुभव करते रहें और समय, काल, परिस्थिति अनुसार काम करते रहें। समय के साथ डिसीजन मेकर की भूमिका से सलाहकार और मार्गदर्शक की भूमिका में कब आ जाते हैं, पता नहीं चलता। खुद को समय के साथ एडजस्ट करें।
मुख्य वक्ता सेवानिवृत्त आईएएस राजेन्द्र भानावत ने कहा कि अब लाइफ में लाइफ नहीं रही। अब लाइफ फाइल में बदल गई है। चार शब्दों की लाइफ शब्दों के हेरफेर से फाइल में बदल गई। सरकार की योजनाएं भी काफी प्रभावित करती हैं। हम क्या कर सकते हैं, इस पर अवश्य विचार करें। आज कानून सख्त हो गए हैं फिर भी कोई माता-पिता अपने बच्चों के खिलाफ एफआईआर या अदालती कार्रवाई नहीं करते क्योंकि भारतीय संस्कृति उन्हें इसकी इजाजत नहीं देती। हमारे सुख-दुखों का कोई और कारण नहीं हो सकता। हम स्वयं ही हैं।
समारोह में उल्लेखनीय योगदान देने पर डॉ. यशवंतसिंह कोठारी और वास्तुविद बीएल मंत्री का सम्मान किया गया। विषय सम्बन्धी आए पत्रों पर प्रकाशित पुस्तिका का विमोचन भी किया गया। अतिथियों का माल्यार्पण, शॉल ओढ़ाकर सम्मान किया गया। आभार दिव्यप्रभा नागर ने व्यक्त किया। संचालन एलएल धाकड़ ने किया। आरंभ में समिति अध्यक्ष बीएस कोठारी, सोसायटी के सुरेन्द्र भटनागर आदि ने भी विचार व्यक्त किए। ईश वंदना प्रेमप्यारी भटनागर ने प्रस्तुत की।
राजस्थान संस्कृत अकादमी की पूर्व अध्यक्ष सुषमा सिंघवी ने कहा कि वरिष्ठ नागरिकों के लिये उनकी शारीरिक,मानसिक, आर्थिक,आध्यात्मिक यात्रा सुखद,सरस एवं संयममय हो तथापि यर्थाथ के धरातल पर अनेक कारणों से कई चुनौतियां भी है। वरिष्ठ नागरिकों के आग्रह ,दुराग्रह,पूर्वाग्रह से भी कई समस्याएं आती है, जो चुनौतियंा बन जाती है। उनमें अकेलापन,अनादर,असुरक्षा,अक्षमता,असफलता आदि अनेक प्रकार के भय मन में स्थान बनाने लगते है।
जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ वि.वि. की पूर्व कुलपति डॉ. दिव्यप्रभा नागर ने वरिष्ठ नागरिकों के लिये आध्यात्मिक मार्ग पर बोलते हुए कहा कि धर्म में सिद्धान्तों एवं नियमों को मानना होता है,आध्यात्मिकता में व्यक्ति स्वतंत्र होता है। धर्म में भय उत्पन्न किया जाता है जबकि आध्यात्मिकता मनुष्य को निर्भिक बनाती है। धर्म मनुष्य को सत्य के बारें में जानकारी देता है जबकि आध्यात्मिकता में मनुष्य सत्य की खोज करता है।
मोतीलाल नेहरू रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज इलाहाबाद के पूर्व आचार्य डॉ. नारायणलाल कछारा ने कहा कि शरीर, आत्मा और मन का संतुलन ही जीवन का मूल आधार है। मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन की समस्याओं को पंाच वर्गो शारीरिक, मानसिक, आत्मिक,आर्थिक एवं पारिवारिक में बांट सकते है। वर्तमान में हम शारीरिक रोगों को ही रोग मान रहे है। मन तो आत्मा के हाथों का एक यंत्र है। जिसके द्वारा आत्मा बाह्य जगत का अनुभव और ग्रहण करता है।
सामाजिक एवं मानविकी महाविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग के पूर्व प्रोफेसर एंव विभागाध्यक्ष व अधिष्ठाता प्रो. सी.एन.माथुर ने कहा कि वरिष्ठ नागरिकों की पारिवारिक एवं वैवाहिक जीवन में समायोजन की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। यदि व्यक्ति परिवार में एवं वैवाहिक जीवन में प्रसन्नता महसूस नहीं करते तो उनको कहंी प्रसन्नता नहीं मिल सकती है। सुखी वैवाहिक एवं पारिवारिक जीवन प्रसन्नता का सागर है।
इससे प्रसार शिक्षा निदेशालय के पूर्व निदेशक संगोष्ठी के निदेशक डॉ. एल.एल.धाकड़ ने संगोष्ठी की संक्षिप्त जानकारी दे कर इसके महत्व के बारंे में बताया। इस अवसर पर सामाजिक विकास संस्थान के निदेशक डॉ. टी.एम.दक ने संगोष्ठी की अनुशसंाएं प्रस्तुत की। इस अवसर पर वरिष्ठ नागरिक परिषद के संस्थापक संरक्षक किरणमल सावनसुखा, संरक्षक प्रो. के.एन.नाग, वरिष्ठ नगारिक परिषद के अध्यक्ष भूपालसिंहं कोठारी, पेन्शनर्स वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष डॉ. एस.के.भटनागर सहित अनेक अतिथि मौजूद थे।