रामकथा के पांचवे दिन गुंजे बधाईगान
वाराणसी। विश्वास रूपी राम का प्राकृटय हो इसके लिए हद्य रूपी अयोध्या में भाव जगाने होंगे। प्रभु राम जन्म के प्रसंग से अलौकिक बाबा विश्वनाथ की नगरी वाराणसी में मोरारी बापू की रामकथा के पांचवे दिन बुधवार को चहुंओर बधाई गान गूंजे।
कथा पाण्डाल में भजन और चौपाइयों के साथ जब बापू ने जगतनाथ प्रभु राम के जन्म का ऐलान किया तो पाण्डाल खुषी से भाव विभोर हो गया। कथा प्रसंग का ऐसा अनूठा नजारा बन पडा मानों बाबा विष्वनाथ की धरती पर राम ने फिर से जन्म ले लिया हो। पूरा परिवेष राममय हो गया। पाण्डाल में प्रकट कृपाला दिन दयाला…, चौपाई के साथ हजारों की संख्या में कथा पाण्डाल में मौजूद भक्तजन एक साथ खडे होकर बधाईयां गाने लगे।
संत कृपा सनातन संस्थान की ओर से मणिकर्णिका घाट के सामने गंगा पार सतुआ बाबा की गोशाला परिसर में आयोजित मोरारी बापू की 800वीं रामकथा मानस मसान के पांचवे दिन बुधवार को बापू ने व्यासपीठ से हजारों जनमैदिनी को आषीर्वचन प्रदान करते हुए मानस तथा मनुश्य के जीवन महिमा का व्याख्यान किया।
मसान हमारा यजमान : उज्यैनी और बनारस परम्परा में मसान सिद्धपीठ और यजमान हैं। व्यासपीठ पर बैठकर बोलना मानों चिता पर बैठकर बोलने के समान है। मसान हमारी प्रतिक्षा करता है। यजमान कोई पंक्ति भेद नही करता है। चिता की अग्नि बिलख बिलख होती है। मसान ऐसा यजमान है कि एक बार मेहमान आ जाये तो सदा के लिए रख लेता है। मेहमान का भी कर्तव्य होता है कि जो मिले उसका षुक्रिया अदा करे। मृत्यु वाले घर में बैठकर उत्तरकाण्ड का पाठ करे। मसान में रामतत्व में बैठकर एक बार सुन्दरकाण्ड का पाठ कर लिया जाये तो संसार की सभी क्रियायें पूर्ण हो जाती है। जब तक राम है तब तक पुत्र पुत्र है, हितेशी हितेशी है और मित्र मित्र है। जब राम तत्व चला जाता है तब पुत्र, मित्र और हितेशी यमदूत लगने लग जाते है। मानस हद्य जब मसान बन जाता है तब मुक्ति मुट्ठी में हो जाती है। मृत्यु सत्य है और वो प्रेम को प्रकट करती है। कई सत्यवादी प्रेम को प्रकट ही नही कर पाये। मृत्यु परम ध्रुव है और हरेक काल व हर समय में रहती है।
मर्दनम गुण वर्द्धनम : बापू ने कहा कि बिना मथ्थे किसी का परिणाम नही आता है। उन्होने बताया कि संसार में नौ वस्तुओं को मथना ही पडता है। गन्ने को, तिल को, मातृषक्ति को, दही को, ताम्बुल को तथा चन्दन को हमेषा ही मथना पडता है। नासमझ और अभिमानी आदमी आदि को मथना पडता है। विवेक एवं षुभ वचनों को द्वैश युक्त चित्रों से मथों तो पाप नही है। आजकल कर्मयोग कम हो गया है और कर्मकाण्ड बढ गया है। अतिष्योक्ति डरपोक मानसिकता का प्रतीक है।
भजन निडरता का परिचायक : रामकथा सुनने और गाने से प्रेम बढता है। यह भक्ति वर्धन करती है। रामकथा, रामनाम और मानस पाठ मसान का भय निकाल देते है। कथा सुनकर हमारा हद्य परिवर्तन हो तो हमारे जीवन में राम प्राक्टय हो सकता है। भजन को किसी अवस्था या भूमि से कोई लेना देना नही होता है। भजन का रिहर्सल नही होता है। भूमि इतनी महत्वपूर्ण नही होती है जितनी महत्वपूर्ण इंसान की भूमिका होती है। भजन निडरता का परिचायक है। डरपोक आदमी कभी भजन नही कर सकता है। हम जिससे प्रीत करते है उसका पूरा ध्यान रखते है। भजनानन्दी केवल ईश्ट का ध्यान रखते है और उसी से प्रीत रखते है और उसका ख्याल रखते है। सत्य का एकमात्र दायित्व है कि विष्व में प्रेम का सर्जन करे। सत्संग के लिए जो भी किया जाए कम है।
कुछ क्षण परमात्मा के लिए रखो : मनुष्य के पुरूषार्थ की एक सीमा होती है। पुरूशार्थ पूरा करने के बाद ही प्रार्थना की भूमि शुरू होती है। प्रार्थना करने के बाद जो बोल मिले उस पर भरोसा कर प्रतीक्षा करोगे तो प्रभु अवश्य आयेंगे। नियत समय में प्रार्थना में कभी देर मत करो। प्रत्येक युवाओं को कुछ क्षण परमात्मा के लिए रखना ही चाहिए। ईष्वर साधन नही कृपा साध्य है। प्रतीक्षा मूल्यवान है और जिन लोगों ने प्रतिक्षा की उनके पास भगवान स्वयं चलकर आये है। गुरू का द्वार श्रेष्ठ द्वार होता है। संसार में पूर्णता की कोई व्यवस्था नही है और सब अधूरा ही मिलता है लेकिन परमात्मा हमेशा पूर्ण ही मिलता है।
कमजोर ही सहारा तलाशते हैं। बापू ने कहा कि ज्यादा जवाब वो देता है जो झूठा हो सकता है। सत्य को किसी सपोर्ट की जरूरत नही होती हैं। सहारे की जरूरत कमजोर को होती है और यह जीवन का सीधा गणित है। अन्ध श्रद्धा और झूठी मान्यता के लिए भी स्वच्छता अभियान की जरूरत है।
मुख से निकले वचन नहीं आते : 21वी सदी है इसलिए किसी को श्राप मत दो बल्कि उसे सावधान करो। श्राप देने जैसा तप हमारे अन्दर है ही नही। इसके लिए तपस्या चाहिए। श्राप क्रोध के बिना नही आता है। मुख से निकले वचन को कोई भी वापस नही ला सकता है और वे हमेषा ब्रह्माण्ड में घुमते रहते है। मानस कहता है कि रामराज के लिए चार मत साधु मत, लोक मत, राजनीतिक मत और सनातन मत आवश्यपक है।
श्रीराम के बिना भारत की कल्पना नहीं : योगी
कथा हर देश और हर काल में तथा हर परिस्थिति में होती है और मार्गदर्शन करती हुई दिखती है। व्यासपीठ के निर्देश हमारे जीवन व समाज को बदलने वाले होते है। काषी की धरती आध्यात्मिक, अद्भुत, सांस्कृतिक और पावन धरा है और इसी धरती ने प्रधानमंत्री को नेतृत्व सौंपा है। उक्त विचार उत्तर प्रदेष सूबे के मुख्यमंत्री व गौरक्ष पीठाधीष्वर योगी आदित्यनाथ ने व्यक्त करते हुए कहा कि यह उत्तरप्रदेष का सौभाग्य है कि श्रीराम की पावन कथा के अद्भुत व्याख्याता के रूप में राश्ट संत मोरारी बापू के श्रीमुख से कथा सुनने का अवसर मिल रहा है। उन्होेने कहा कि भगवान पुरूशोत्तम श्रीराम के बिना भारत की कल्पना भी नही की जा सकती है। अयोध्या ने ही दीपावली का पर्व देष और दुनिया को दिया है। जब हम किसी से मिलते है या बिछुडते है तो राम राम बोलते है। हम किसी अभियान पर निकलते है तो जय श्रीराम बोलते है और अंतिम यात्रा में भी राम नाम सत्य ही बोला जाता है। महर्शि वाल्मीकी से लेकर गोस्वामी तुलसीदास तक ने मानस की पावन यात्रा में लेखनी को पवित्र करने का कार्य किया है। अयोध्या में इस वर्श आयोजित दीपावली महोत्सव में इण्डोनेषिया और श्रीलंका से भी रामलीला मण्डली को बुलाया गया था। रामलीला इण्डोनेषिया का राश्टीय पर्व बन चुका है। अगले महिने आयोजित रामायण मेले में 6 देषों की रामलीला मण्डली को आमन्त्रण दिया गया है।
संत कृपा सनातन संस्थान की ओर से आयोजित रामकथा के दौरान बुधवार को व्यासपीठ पर काशी नरेश कुंवर अनंत नारायणसिंह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और गोरक्ष पीठाधीश योगी आदित्यनाथ, मुख्य आयोजनकर्ता मदन पालीवाल, ट्रस्टी प्रकाश पुरोहित, भाजपा के राष्ट्री्य प्रवक्ता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन, भाजपा के उत्तरप्रदेश के अध्यक्ष डॉ. महेन्द्र पाण्डे के साथ ही रवीन्द्र जोशी, रूपेश व्यास, विकास पुरोहित, मंत्रराज पालीवाल, सतुआ बाबा सहित कई गणमान्य अतिथियों ने व्यासपीठ पर पुष्पा अर्पित किये तथा कथा श्रवण का लाभ लिया।