उदयपुर। विज्ञान समिति, उदयपुर की ओर से मेवाड़ गौरव पद्मविभूषण डाॅ डी एस कोठारी के जन्म दिवस पर ‘‘गीता, आध्यात्म एवं विज्ञान’’ पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
संगोष्ठी में बोलते हुए पेसिफिक विश्वविद्यालय के प्रो प्रेसिडेंट प्रो बीपी शर्मा ने कहा कि सभी ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियां शरीर के अनुसार काम करें तो जीवन सफल हो जाता है। भारत में धर्म की मर्यादा का वर्णन करने वाला मैगस्थनीज यूनान का राजदूत था। जब तक युवा पीढ़ी के सामने 1930 में अनुसंधान पर मिले नोबल के बाद किसी को नही मिलने की बात रखेंगे तभी वे इस दिशा में आएंगे। आतताइयों का विनाश करना धर्म है। चेतना के स्पंदन का घनीभूत है यह जगत। चेतना से पदार्थ निर्माण संभव है। संपूर्ण वांग्मय को युवा पीढ़ी ढंग से पढ़े। हर व्यक्ति के मन में अर्जुन को जागृत करना आवश्यक है। सड़क पर झगड़ा हो रहा हो तो एलपीजी समझाने के बजाय वीडियो बनाते हैं। हमारा इतिहास बहुत समृद्ध है।डाॅ. बी.पी. शर्मा प्रेसीडेन्ट पेसीफिक विष्वविद्यालय ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि गीता का उपदेष सर्वजन में व्याप्त है। डाॅ. दौलतसिंह कोठारी का जीवन युवा पीढ़ी के लिए रोल माॅडल है। आपने बताया कि समस्त सृष्टि का उद्भव चेतना के स्पन्दन से होता है।
कोटा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो पीके दशोरा ने कहा कि शिक्षा की बात जब भी आती है तो कोठारी कमीशन को कोई भुला नही सकता। मन का जुड़ाव गीता से होना चाहिए। भगवान के मुख से निकली गीता वेद से भी ऊपर है। लोगों के लिए गीता एक साधन भी हैं और साध्य भी। महाभारत में दो ही सारथी थे श्रीकृष्ण और शल्य,दोनों ने अपना निष्काम कर्म किया। गीता का ज्ञान डॉ. डीएस कोठारी के जीवन में कितना महत्वपूर्ण रहा होगा, इसका उनके विचारों से अंदाजा लगाया जा सकता है। गंगापुत्र भीष्म को शर शैया पर सुलाने वाले भी श्रीकृष्ण हैं।
भौतिकी के प्रॉफेसर डॉ. पारसमल अग्रवाल ने कहा कि गीता तो कर्मयोगी, तत्वज्ञानी सम्राट बनने का उपदेश देने वाला है। गीता के माइलस्टोन, साइंटिफिक सिगनीफिकेन्स, तत्व ज्ञान युद्ध के समर्थन के लिए तत्व ज्ञान के वर्णन की क्या जरूरत है! गीता में अर्जुन को श्रीकृष्ण कहते हैं कि तेरे युद्ध न करने से भी विरोधी योद्धा मारे जाएंगे। प्रकृति के तहत श्रीष्ण समझते हैं कि व्यक्ति और आत्म अकर्ता हैं।युद्ध में भी शत्रु भाव नहीं रखना चाहिए। आपने तत्व ज्ञान की चर्चा करते हुए बताया कि शरीर से परे मन, मन से परे बुद्धि तथा बुद्धि से परे आत्मा है। आपने अभ्यास, ज्ञान और ध्यान का महत्व बताया और इस प्रष्न की चर्चा की कि युद्ध की प्रेरणा हेतु तत्व ज्ञान क्यों आवष्यक है।
विज्ञान आत्मा को मानता है या नहीं, इस पर जॉर्ज वेद 1967 मेडिसिन नोबल कहते हैं कि आत्मा अजर अमर है। आत्मा है, इसको सिद्ध करने के डाक्यूमेंट्री प्रूफ हैं। डिब्बा प्लास्टिक का है या घी का, इस उदाहरण से समझा जा सकता है। शत्रुता भाव के बिना युद्ध लड़ा गया तो विजय की संभावना बढ़ेगी या घटेगी? जीवन जीने में शत्रुता के भाव रखना हानिकारक है या लाभकारक। राजनीति में भी ऐसा ही है कि आपकी विचार धारा का समर्थन नही करने वाले देशद्रोही हैं, ये गलत है। आम धारणा है कि मैं व्यक्ति हूँ। धन, संपदा, यश चाहिए। आत्मा बताने वाले व्यक्ति को लोग उल्लू मानते हैं। तत्व ज्ञान और परमात्मा का ज्ञान आज के इस युग में अत्यंत आवश्यक है। नकारात्मक विचार और कुंठा दिमाग से निकालकर काम करें।
सुविवि हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. नीरज शर्मा ने कहा कि संसार के सामान को साथ नही ले जा सकते। यहीं पर छोड़कर जाना होगा। सिर्फ आनंद लें और यहीं छोड़कर जाएं। हम कामनाओं की पूर्ति में लगे हैं। इस संसार को जीने लायक नहीं छोड़ेंगे, ऐसा कर दिया है। शिक्षा हमें क्या सीखा रही है। शिक्षा का ध्येय सेवा सिखाना है। इसी का नाम भक्ति है। बुद्धि का प्रयोजन विवेक है। शरीर का प्रयोजन कर्मयोग है। संसार की सेवा करें। अपने लिए कुछ नही चाहिए। मेरा कुछ है नहीं। इस प्रकार का विचार होगा तो अध्यात्म और वैराग्य की स्थिति में जाएंगे।
अध्यात्म, विज्ञान दोनों सत्य की खोज करते हैं और चेतन और जड़ का अध्ययन करते हैं। आपने विचार और व्यवहार, कर्म का महत्व बताकर निष्काम कर्म की महत्ता बताई। आपने कहा कि ज्ञान से पवित्र कुछ नहीं है। गीता कहती है कि शरीर और आत्मा भिन्न है और यह संसार मेरा नहीं है। आपने ध्यान योग, कर्म योग और भक्ति योग की व्याख्या करते हुए कहा कि अपरा और परा प्रकृति पुरुष में रहती है। ज्ञान और विज्ञान से ही समग्रता की प्राप्ति होती है।
संगोष्ठी के प्रारम्भ में विज्ञान समिति के संस्थापक डाॅ के एल कोठारी ने डाॅ डी एस कोठारी का संपूर्ण जीवन परिचय देते हुए कहा कि वे एक महान् वैज्ञानिक थे। उपनिषद्, गीता, जैन आगम का आपने गहन अध्ययन ही नहीं किया अपनी जीवनचर्या में सरलता और सादगी के साथ उतारा भी। आपने जवाहर लाल नेहरु विवि, नई दिल्ली के कुलाधिपती, भारत सरकार के रक्षा सलाहकार के पद को सुसज्जित किया। आपको भारत सरकार ने पद्म भूषण 1962 और पद्मविभूषण से 1973 में सम्मानित किया। डाॅ डी.एस. कोठारी ने परमाणु विभिषिका को महसूस किया था। उन्होंने इस सम्बन्ध में एक पुस्तक न्यूक्लियर एक्सप्लोजन एण्ड देयर इफेक्टस नामक पुस्तक लिखी जिसेे विश्व स्तरीय सराहना मिली। अनेक भाषाओं में उसे रुपान्तिरित किया गया। 4 फरवरी 1993 में आपका देवलोकगमन हुआ।
अंत में आभार एनएल कच्छारा ने व्यक्त किया।
डाॅ. एन.एल. कच्छारा संयोजक-संगोष्ठी ने समापन वक्तव्य में कहा कि गीता एक दर्पण के समान है जिसमें व्यक्ति अपनी छवि देखता है। आपने गीता के मूल ग्रंथ महाभारत का इतिहास बताते हुए कहा कि महर्षि व्यास ने आठ हजार आठ सौ श्लोक वाली ‘जय’ पुस्तक की रचना की थी जिसे बाद में ऋषि वैषम्पायन ने भारत नाम का एक ग्रंथ लिखा जिसमें 24 हजार श्लोक थे। महर्षि उग्रश्रवा ने महाकाव्य ‘महाभारत’ लिखा जिसमें ष्लोकों की संख्या 1 लाख से भी अधिक है। अभी तक विष्व की 40 से अधिक भाषाओं में गीता का अनुवाद हो चुका है जिसमें 16 भारतीय भाषाएं भी हैं। विष्व के बड़े बड़े विद्वानों जैसे टी.एस. इलियट, हेनरी थोरो, इमरसन आदि की लेखनी को भी प्रभावित किया है। इसके अतिरिक्त बड़े वैज्ञानिकों जैसे जे.आर. ओपनहीमर और आइंसटाइन ने गीता का गहन अध्ययन किया। अन्त में उन्होंने कहा कि किसी न किसी अर्थ में हम सब अर्जुन है और अनिष्चितता की स्थिति में गीता हमारा मार्गदर्षन करती है।
विज्ञान समिति के कार्यकारी अध्यक्ष डाॅ. के पी तलसेरा ने मुख्य अतिथि एवं संगोष्ठी मुख्य वक्ता के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहा कि डाॅ. डी एस कोठारी के जन्म दिवस पर उनके व्यक्तित्व एंव कृतित्व को याद करते हुए ‘‘गीता, अध्यात्म, विज्ञान’’ पर आयोजित एक दिवसीय गोष्ठी उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है। कार्यक्रम का सफल संचालन प्रकाश तातेड़ ने किया।