तेरापंथ भवन में पर्यूषण के दूसरे दिन स्वाध्याय पर किया मनन
उदयपुर। शासन श्री साध्वी गुणमाला ने कहा कि निमित्त से कर्मों का बंधन नही होता। श्रावक के पंच महाव्रत बताए गए हैं। उनका सभी को पालन करना चाहिए। स्वाध्याय में एक विशिष्टता है। स्वाध्यायी व्यक्ति दूसरों की आलोचना से, बुरे विचारों से खुद को बचा सकता है। स्वाध्याय करते -करते व्यक्ति ध्यान की सिद्धि में प्रवेश कर जाता है जिससे आत्मा निर्मल हो जाती है।
वे शनिवार को अणुव्रत चैक स्थित तेरापंथ भवन में पर्युषण के दूसरे दिन स्वाध्याय दिवस पर धर्मसभा को संबोधित कर रही थी।
उन्होंने कहा कि जहां संयम, अहिंसा का विकास हो, वहां धर्म होता है। सीता ने लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन किया तो परेशानी हुई। इसी तरह पांच महाव्रतों का उल्लंघन करेंगे तो परेशानी होगी। आचार्य तुलसी ने स्वाध्याय की प्रेरणा दी। स्वाध्याय से बुद्धि की धार पैनी होती है। अगर आपके पास धार्मिक सम्पदा नहीं है तो आप सदैव गरीब ही रहेंगे। जैन धर्म का सिद्धान्त है कि प्रत्येक आत्मा अपूर्ण से पूर्ण, असत्य से सत्य होकर आत्मा से परमात्मा बन सकती है। साध्वीश्री ने श्रावक-श्राविकाओं को भगवान महावीर के जन्म लेने के पश्चात् आध्यात्मिक विकास, चेतना विकास, सम्यकत्व का प्रकाश और भगवान महावीर के परमात्मा को प्राप्त करने सम्बन्धी प्रसंगों की जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि मनोरंजन और आत्मरंजन। पहले में मन और दूसरे में आत्मा खुश होती है लेकिन भूख रोटी से मिटती है। हमें पूर्णता की ओर जाना है। स्थूल से सूक्ष्म की ओर जाना है। यह स्वाध्याय से होगा। आत्मज्ञान हो जाएगा तो सब कुछ सही हो जाएगा।
साध्वी श्री लक्ष्यप्रभा, साध्वी प्रेक्षाप्रभा और साध्वी नव्यप्रभा ने भी स्वाध्याय का महत्व बताया। महिला मंडल की सदस्याओं ने मंगलाचरण किया।
सभाध्यक्ष सूर्यप्रकाश मेहता ने बताया कि सभा के वरिष्ठ श्रावक रूपलाल डागलिया न सिर्फ स्वयं स्वाध्याय करते हैं बल्कि सभा भवन में लाइब्रेरी के लिए साहित्य मद में आर्थिक सहयोग देकर स्वाध्याय की प्रेरणा देते हैं। प्रतिदिन सुबह 9.30 से 11 बजे तक प्रवचन, तीन सामायिक, दो घंटे मौन, स्वाध्याय आदि की नियमित साधना जारी है।