उदयपुर। उदयपुर की झीलों की मूल सीमाओं को पुनर्स्थापित करने से ही उदयपुर झील पर्यावरण तंत्र बचेगा। जिला कलेक्टर से अपेक्षा है कि वो सीमाओं का पुनर्निरीक्षण करवाते हुए वर्ष 1998 पूर्व की स्थिति को कायम करवाएं। यह मांग रविवार को आयोजित झील संवाद में व्यक्त की गई।
संवाद में झील संरक्षण समिति के डॉ तेज राजदान एवं डॉ अनिल मेहता ने कहा कि पिछोला झील का जल फैलाव क्षेत्र लगभग सात वर्ग किलोमीटर एवं फतेहसागर का जल भराव क्षेत्र साढ़े चार वर्ग किलोमीटर था। वर्ष 2010 में इन झीलों के जल भराव क्षेत्र को घटाकर क्रमशः चालीस व् तीस प्रतिशत कम कर दिया गया है।
राजदान तथा मेहता ने कहा कि झीलों को उनके मूल स्वरुप में लाने व् भविष्य के लिए उन्हें बचाने के लिए इनकी अधिकतम भराव तल तक की सीमा को सुरक्षित करना अत्यंत जरुरी है ।
झील विकास प्राधिकरण के सदस्य तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि झीलों के किनारों को इस प्रकार नष्ट कर देने से देशी प्रवासी पक्षियों के आवास व् प्रजनन के क्षेत्र कम हो गए है एवं झीलों के पारिस्थितिक तंत्र को गंभीर क्षति पंहुची है ।
गाँधी मानव कल्याण समिती के निदेशक नन्द किशोर शर्मा ने कहा कि जिस प्रकार किसी पेड़ के लिए उसकी छाल जरुरी है उसी प्रकार झील के लिए उसकी किनारे की पट्टी – शोरलाइन जरुरी है इसके अभाव में झील की उम्र कम हो जाती है ।
संवाद पश्चात पूर्व फतेहसागर झील के अलकापुरी छोर पर श्रमदान कर कचरे व् गंदगी को हटाया गया ।श्रमदान में दिगंबर सिंह , द्रुपद सिंह , मोहन सिंह चौहान , राम लाल गहलोत , तेज शंकर पालीवाल , नन्द किशोर शर्मा ने भाग लिया