महावीर युवा मंच संस्थान का सकल जैन समाज का सामूहिक क्षमापना समारोह
आठ से अधिक उपवास करने वाले 24 युवाओं का अभिनंदन, युवा विंग का शपथ ग्रहण 6 अप्रेल को 21 वां सामूहिक विवाह समारोह, एक लाख लोगों का स्वामी वात्सल्य, विराट महिला अधिवेशन 27 को
उदयपुर। श्री महावीर युवा मंच संस्थान के तत्वावधान में रविवार को अणुव्रत चैक स्थित तेरापंथ भवन में सकल जैन समाज का सामूहिक क्षमापना समारोह आयोजित हुआ। इसमें शहर में चातुर्मास के लिए विराजित चारित्रात्माओं के व्याख्यान हुए।
संस्थान के मुख्य संरक्षक राजकुमार फत्तावत ने बताया कि कार्यक्रम में उदयपुर में लगातार 32 वीं बार क्षमापना समारोह किसी भी स्वयंसेवी संगठन द्वारा पहली बार है। चार दशक से जैन समाज एक होने को लेकर प्रतिबद्ध है। आगामी 6 अप्रेल 2020 को 21वां सामूहिक विवाह समारोह होगा। संस्थान के तत्वावधान में एक लाख लोगों का महाकुंभ स्वामी वात्सल्य होगा। संस्थान का विराट महिला अधिवेशन 27 सितम्बर को होगा। अपने स्तर पर महिलाओं ने अधिवेशन की तैयारी आरंभ कर दी है। अब तक 1500 महिलाओं के कूपन वितरित किए जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि आज अनूठा प्रयोग किया है कि आठ या अधिक उपवास करने वाले 25 वर्ष से कम युवाओं का आज अभिनंदन किया जा रहा है। सशक्त बनें, स्वधर्मी भाई को एक जाजम पर ला सकें।
तपस्वी अभिनंदन: कार्यक्रम में 8 या अधिक तप करने वाले 25 वर्ष से कम 24 युवाओं का अभिनंदन किया गया। इनमें चिराग जैन, दीक्षांत जैन, रानू मेहता, जया फत्तावत, दिव्या पोरवाल, शानू मेहता, साक्षी डागलिया, हीरेन्द्र चोपड़ा, वैभव लोढ़ा, जय चैधरी, प्रिया जैन, ध्रुवी नागौरी, इशिता भंडारी, हर्षि खिमावत, सृष्टि मेहता, जतिन डागरिया, अभिजीत पोरवाल, लक्षजित सिंघटवाड़िया, लक्ष्य पोरवाल, दिव्य दोशी, यश जैन, आयुषी बया, अर्पित बाबेल, वीरेंद्र टोड़ावत शामिल हैं।
समारोह में अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर ने कहा कि क्षमावाणी पर्व जैन समाज की परंपरा है जो विश्व के एकमात्र जैन धर्म में है। यह महावीर का सूत्र भी याद दिलाती है कि जीयो और जीने दो। जो अपनी गलती को स्वीकार करता है, उसके पापों का क्षरण उसी समय हो जाता है। क्षमा मांगना सबसे कठिन काम है। मांगना यानी उन्होंने गलती स्वीकार की है। जिसने स्वीकार कर लिया, उसे सुधारने में भी समय नही लगता। एक दूसरे की भावनाओं, दुख, कर्म को समझने का पर्व भी है। क्षमा जीवन का सबसे बड़ा धर्म है। इंसानियत जागृत करने का पर्व है। क्षमावाणी पर्व बस यही है।
तेरापंथ धर्मसंघ के मुनि प्रसन्न कुमार ने कहा कि क्षमा की यथार्थता क्या है। यह केवल जैन समाज ही नहीं मनाता। सिर्फ एक दिन मनाना औपचारिकता नही करना है। इसे हर समय दिल में रखना चाहिए। दृष्टिध्ग्रंथि शोधन जरूरी है। भाई, भाई को नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं। आज एक जगह बैठने का श्रेय गणाधिपति आचार्य तुलसी को है। जिन्होंने आगे आकर ऐसे मंच पर बैठने को प्राथमिकता दी। आज शरीर नम जाता है लेकिन मन नहीं नम पाता। बड़े बड़े आचार्यों को एक मंच पर बिठाने का प्रयास आचार्य तुलसी ने किया और सफल रहे।
आचार्य शिव मुनि के सुशिष्य राष्ट्रसंत कमल मुनि कमलेश ने मैत्री के दीप जलाएंगे गीत से शुरुआत करते हुए कहा कि दिलों में मैत्री का तार फ्यूज हुआ, उसके दिल में नफरत पैदा हुई। मैत्री नहीं तो धर्म नहीं है। मैत्री अहंकार, भ्रम की है। एक घर के दो दामाद कलक्टर और किसान हैं तो फर्क अपने आप आ जायेगा। यह मैत्री भाव नही है। अपनी नीचे व्यक्ति के साथ मैत्री करें। नफरत करने वाले से मैत्री करने वाले कौन। दोहरे कानून खतरनाक हैं। पकड़ना प्लास्टिक की थैली वाले को है लेकिन पकड़ेंगे ठेला गाड़ी वाले को। आज बातें करते हैं लेकिन पेड़ किसने कितने लगाए। अगर नही लगाए तो आपको ऑक्सीजन लेने का भी कोई हक नही है। भाषा में परिवर्तन आना चाहिए। कट्टरता नफरत पैदा करती है।
आचार्य श्री चन्द्रप्रभ सागर ने कहा कि क्षमावाणी पर्व को मोक्ष प्राप्ति पर्व कहा जाए तो भी अतिशयोक्ति नहीं। एक करोड़ स्रोत का जप और एक माला फेरने का लाभ बराबर है। यही एक व्यक्ति को माफ करना इन सबके बराबर है। क्षमावाणी सिर्फ मुंह से कहना नहीं बल्कि मन से मांगने और करने का पर्व है। क्षमा तो वीर ही मांग सकता है। क्षमा करने वाला उससे बड़ा वीर है। जिन्होंने क्षमा नहीं मांगी, उनके लिए नरक के रास्ते तैयार हैं।
संस्थान की युवा विंग को सरंक्षक राजकुमार फत्तावत, अध्यक्ष महेंद्र तलेसरा, मंत्री सुनील मारू आदि ने शपथ दिलाई। युवा विंग के अध्यक्ष चिराग कोठारी ने सदस्यों के साथ शपथ ली। सभी का उपरना ओढ़ाकर स्वागत किया गया।
संस्थान के अध्यक्ष महेंद्र तलेसरा ने स्वागत उदबोधन में कहा कि 32 वर्षों से संस्थान प्रतिवर्ष सामूहिक क्षमापना समारोह का आयोजन करता आ रहा है। संस्थान के महिला प्रकोष्ठ की सदस्याओं ने क्षमापना गीत प्रस्तुत किया। पंकज भंडारी ने क्षमा गीत की प्रस्तुति दी। संचालन विजयलक्ष्मी गलुण्डिया ने किया। नवकार महामंत्र का जप सोनल सिंघवी ने करवाया।