udaipur. महात्मा गांधी के सानिध्य मे रहकर शिक्षा प्रारम्भ करने वाले वर्धा आश्रम के तत्कालीन बालक, स्वतंत्रता सेनानी इंजीनियर एम. पी. बया का मानना है कि आजादी के बाद उनके संभावित सपने टूट गए।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान व देश आजाद होने के समय जिस समृद्ध, स्वावलम्बी, गरीब मुक्त, हिंसा मुक्त, अभाव मुक्त भारत का संजोया गया सपना चूर-चूर हो गया। यह सब गांधी को विस्मृत करने से हुआ। वे स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित वार्ता में बोल रहे थे।
इन्सटीट्यूशन ऑफ इन्जीनियर्स के पूर्व अध्यक्ष एस. एन. गोदावत ने कहा कि चीन युद्व से पूर्व सरकारें गांवों के विकास पर केन्द्रित थी लेकिन युद्व के बाद प्राथमिकताए बदल गई। सामाजिक चिंतक शांति निकेतन के पूर्व छात्र रवि भण्डारी तथा वरिष्ठा नागरिक के. एल. बाफना ने कहा कि गांधी के मूल्य तथा नेहरू की वैज्ञानिक विचारधारा का सही समन्वय होता तो भारत की तस्वीर कुछ और होती।
संयोजन करते हुए ट्रस्ट के सचिव नन्दकिशोर शर्मा तथा विद्याभवन पोलिटेक्निक के अनिल मेहता ने कहा कि यह कहना गलत होगा कि गांधी तकनीक के विरोधी थे। मशीनों का आविष्का र, संचालन यदि मूल्य विहीन, नैतिकता विहिन व श्रम विहिन आधार पर होगा तो देश का विकास कभी नहीं हो सकता। यही कारण है की इतनी वैज्ञानिक प्रगति के बावजूद देश राज्य व उदयपुर संभाग में पीने का स्वच्छ पानी, शौचालय सुविधा, रोजगार, पौष्टिक आहार, स्वास्थ्य सुविधाए पूर्णतया अपर्याप्त है। परिचर्चा में अभियंता एस. एल. तम्बोली, गांधीवादी सुशील दशोरा, नितेश सिंह, गोपाल सिंह राजावत, बी.एल.कूकडा ने भी विचार व्यक्त किये। शायर मुश्तावक चंचल ने ’ये आवाज ना थी बर्तन की, ये आवाज ना थी बुलबुल की, ये आवाज ना थी भारत की आजादी की‘ नज्म पेश कर आजादी के आंदोलन से रूबरू करवाया। अध्यक्षता वास्तुविद बी. एल. मंत्री ने की।