पेसिफिक डेंटल कॉलेज सभागार में संगोष्ठी व कार्यशाला
Udaipur. मस्तिष्क, चेहरे, जबड़े के विकारों में काम आने वाली दर्द निवारक की विभिन्न तकनीकों की न केवल जानकारी दी गई बल्कि उसका सजीव प्रदर्शन भी दिखाया गया।
यह सब रविवार को हुआ देबारी स्थित पेसिफिक डेंटल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल के सभागार में जहां ओरल मेडिसिन एण्ड रेडियोलोजी विभाग द्वारा’एवेन्यूस इन द मेनेजमेंट ऑफ ओरोफेशियल पेन‘ विषय पर संगोष्ठी व कार्यशाला करवाई गई थी। इसमें राजस्थान, गुजरात सहित अन्य प्रदेशों के करीब 170 दंत चिकित्सकों, स्नातकोत्तर व स्नातक छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया।
मुख्य अतिथि पाहेर विश्वविद्यालय के कुलपति व पेसिफिक डेन्टल कॉलेज के प्राचार्य प्रो. ए. भगवानदास राय ने कहा कि क्षेत्र में प्रतिदिन हो रही नवीन तकनीकों की जानकारी के लिए ऐस कार्यशाला नि:संदेह चिकित्सकों व डेन्टल छात्रों के लिए काफी उपयोगी साबित होती है। उन्होंने कहा कि ओरोफेशियल पेन का सफल निदान उसके कारणों के सही डायग्नोसिस व इलाज की तकनीक पर निर्भर करता है। जिसमें मेडीसिन व शल्य चिकित्सा के साथ-साथ फिजियोथेरेपी व एक्यूपंक्चर पद्धति भी कारगर होती है।
मुख्य वक्ता दर्शन डेन्टल कॉलेज के ओरल मेडीसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एस. वाई. राजन, न्यूरोफिजिशियन डॉ. ए. के. वत्स, एक्यूपंक्चर विशेषज्ञ डॉ. बी.एल. सिरोया तथा फिजियोथेरपिस्ट डॉ. गौरव पाईवाल ने पत्रवाचन से ओरोफेशियल पेन में काम में लायी जाने वाली तकनीकों की जानकारी दी।
ओरोफेशियल पेन का कारण व निवारण : डॉ. प्रशान्त नाहर ने बताया कि जबड़े व चेहरे से संबंधित नस तंत्रिका के विकार, वेस्कुलर डिसऑर्डर, जैसे साईनाटाईटिस, दंत व जबड़े से संबंधित विकार, माईग्रेन टीएमजी यानि टेम्पोरोमेन्टीबुलर जॉईन्ट से संबधित विकारों के कारण ओरोफेशियल पेन होता है। उन्होंने बताया कि अन्य विधाओं के अलावा एक्यूपंक्चर तथा फिजियोथैरेपी की तकनीकों में लेजर, टेन्स, डायथर्मी तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। पिछले कुछ समय से इसमें फिजियोथेरेपी में इस बीमारी में उम्र की सीमा कोई निर्धारित नहीं होती है लेकिन प्राय: यह 16-17 वर्ष से लेकर ओल्ड एज में हो सकती है। डॉ. नाहर ने बताया कि ये पद्धतियां उन मरीजों के लिए कारगर है जो मेडिसिन व शल्य चिकित्सा कराने के बावजूद ओरोफशियल पेन में लाभ नहीं पा रहे है।
कार्यशाला के आयोजन अध्यक्ष डॅा. मोहितपालसिंह ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यशाला में मोहितपालसिंह के अलावा डॅा. हेमन्त माथुर, डॅा. सौरभ गोयल, डॅा. एस. भुवनेश्वरी व डॅा. प्रियंका परनामी का भी सहयोग रहा। कार्यशाला में ओरोफेशियल पेन से ग्रस्त रोगियों पर फिजियोथोरेपी व एक्यूपंक्चर पद्धति के जरिये दर्द का निवारण किया गया। अंत में आयोजन सचिव डॉ. प्रशान्त नाहर ने धन्यवाद ज्ञापित किया।