हो सकेगा प्रसंस्करण भी
Udaipur. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वगविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पहली बार सीताफल के गुदे को प्रसंस्करण करने की तकनीक का विकास किया है। सीताफल राजस्थान के काफी क्षेत्रों का प्रचलित फल है। यह तकनीक बागवानी विभाग ने राष्ट्रीय कृषि नवोन्मेषी परियोजना के अंन्तर्गत विकसित की गई है।
अनुसंधान निदेशालय मे आयोजित पत्रकार वार्ता में कुलपति प्रो. ओ. पी. गिल ने बताया कि क्षेत्र में परियोजना वर्ष 2009 में प्ररम्भ की गई थी और यह विश्वष बैंक पोषित परियोजना भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत कार्यरत है। पंरम्परागत गुदा निकालने का तरीका शुद्ध नहीं होता और उसमें जीवाणु पनपने का खतरा रहता है। उसकी शेल्फ लाइफ और गुणवत्तान भी कम रहती है। यह तरीका ज्यादा महंगा भी है। उसकी तुलना में सीताफल से गुदा निकालने की यह तकनीक काफी उपयोगी है और इससे गुणवत्तायुक्त गुदा भी प्राप्त किया जा सकता है। सीताफल उगाने वाले आदिवासी जनजातीय लोगों के अलावा ट्रान्सपोर्टर, खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों (आईस्क्रीम सहित डेयरी, रबडी़), पेय उद्योग, ज्यूस और मिल्क शेक, इवेन्ट आयोजक (शादी, बर्थ डे, किटी पार्टीयॉ और कैफे, परम्परागत भारतीय डेयरी उत्पाद जैसे बरफी, पेडा़ आदि बनाने वाले क्षेत्रों में यह तकनीक उपयोगी हो सकती है। इस अवसर पर अनुसंधान निदेशक सहित सभी महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, उद्यानिकी विभागाध्यक्ष, परियोजना अधिकारी, कृषि सूचना के प्रसार हेतु कार्यरत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की मास मीड़िया इकाई आणन्द, गुजरात के अधिकारी ड़ा. नागराज रेड्डी आदि भी मौजूद थे। सीताफल का गुदा एंजाईम रिएक्शून के कारण भूरा हो जाता है और भूरे गुदे की बाजार में ज्यादा किमत नहीं मिलती। सीताफल का गुदा आईसक्रीम, रबडी़ और पेय पदार्थ बनाने के काम आता है।
यह तकनीक बागवानी विभाग के प्रोफेसर एण्ड हेड डॉ. आर. ए. कौशिक और विभाग के असिस्टेन्ट प्रोफेसर डॉ. सुनिल पारीक ने विकसित की। इस तकनीक के दो भाग हैं। एक भाग में फल से बीज के साथ गुदा बाहर निकालती है और दूसरे भाग में गुदे से बीज अलग होता है जो एक वर्ष तक सुरक्षित रखा जा सकता है। आईस्क्रीम कंपनियों में सीताफल का उपयोग काफी कम पैमाने पर होता है क्योंकि सीताफल का गुदा निकालने का मेन्युअल तरीका काफी कठिन है। इस तकनीक के आगमन से यह काफी आसान हो गया है। अब सीताफल के गुदे की ज्यादा उपज, गुणवत्ता, वसूली व स्वच्छता के साथ गुदा निकाल सकते हैं। विश्वीविद्यालय द्वारा विकसित यह तकनीक आदिवासी जनजाति लोगों को आजीविका सुरक्षा प्रदान करती है और इससे सीताफल उत्पाद में वृद्धि के साथ ही किसानों की आय में भी वृद्धि होगी। दूरदराज के लोग इस तकनीक का लाभ ले सके इस हेतु हाल ही में एमपीयूएटी ने गुजरात की दो कम्पनियों सतराज आईस्क्रीम और स्नेक्स आजात, गुजरात और दी फ्रैश फ्रोजन प्रोडक्टस, आनंद से बिजनेस प्लानिंग एन्ड डेवलपमेंट यूनिट द्वारा सार्वजनिक एवं निजी भागीदारी मोड के अन्तर्गत व्यवसायीकरण किया गया है।