इंजीनियर्स डे पर विशेष
सर्वोच्च इंजीनियरिंग संस्थानों आईआईटी व एनआईटी में लगभग पचास प्रतिशत तक प्राध्यापकों की कमी है, वही राज्यों के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों में इससे भी ज्यादा कमी है। सरकारी पॉलिटेक्निकों में भी 60 से 70 प्रतिशत प्राध्यापकों के पद रिक्त पड़े हैं। आईआईटी में भी ऐसे विद्यार्थी जा रहे है जो कोचिंग संस्थानों में प्रवेश की “ट्रिक” सीखते है लेकिन उनमें विज्ञान व गणित विषयों की मूल समझ व ज्ञान आधा अधूरा व अपूर्ण है।
कुछेक अपवादों को छोड़कर लगभग सभी निजी इंजीनियरिंग कॉलेजो व निजी पॉलिटेक्निकों में योग्य शिक्षक व गुणवत्तापूर्ण प्रयोगशालाएं तक नहीं है। ऐसे संस्थानों में दैनिक व मासिक अनुबंध पर कार्य करने वाले इंजीनियरिंग के अधिकतर प्राध्यापक स्वयं भी उन संस्थानों से निकले है जहां नियमित कक्षाएं व प्रयोग हुए ही नही। आश्चर्यजनक हैं कि दो-चार कमरों में तकनीकी शिक्षा के संस्थान संचालित हो रहे हैं। नियामक संस्था एआईसीटीई व राज्य सरकारें आंखे मूंदकर इन तकनीकी शिक्षा दुकानों को अनापत्ति प्रमाण पत्र, मान्यता व संबद्धता दे रहे है। कई निजी संस्थानों ने यह सोचकर विशाल भवन बनाए हैं कि यदि तकनीकी संस्थान नहीं चला तो होटल अथवा अन्य किसी व्यवसाय के लिए भवन का उपयोग किया जा सके।
इससे भी घोर आश्चर्च हैं कि ऐसी दुकानों से विद्यार्थी बिना कक्षाओं में जाए, बिना प्रयोगों को किए, बिना पढ़े साठ से अस्सी प्रतिशत तक प्राप्तांक प्राप्त कर रहे है। स्पष्ट है कि खुलेआम व संगठित, व्यवस्थित तरीके से परीक्षाओं में नकल कराई जाती है। कुछ समय पूर्व राज्य सरकार ने परिपत्र जारी कर तकनीकी संस्थानों में खुले आम होने वाली नकल पर चिन्ता व्यक्त की थी, लेकिन राज्य सरकार ने केवल इतना ही कर इतिश्री कर ली।
इस दुष्चक्र का एक अहम हिस्सा अभिभावक भी है, जो यह चाहते हैं कि उनकी संतान बिना मेहनत किए, बिना कक्षाएं व प्रयोग किए प्रथम डिवीजन से इंजीनियरिंग डिप्लोमा/डिग्री प्राप्त कर ले। इस वर्ष इंजीनियरिंग डिग्री व डिप्लोमा में पचास से साठ प्रतिशत सीटे खाली रही, सरकार ने बिना रोजगार उपलब्धता का आंकलन किए अंधाधुंध इंजीनियरिंग डिग्री/डिप्लोमा की दूकानों को मान्यता, संबद्धता दे दी। पाठ्यक्रम भी उद्यमी बनने व स्वरोजगार करने की ओर प्रवृत नहीं करते। परिणाम सामने है, उद्योग जगत ऐसे जुगाड़ी डिग्री/डिप्लोमा प्राप्त इंजीनियरों को गेट में ही नहीं घुसने दे रहे। आधा पाव फिसदी ऐसे फिसड्डी इंजीनियर जोड-तोड व रिश्वत से सरकारी विभागों में येनकेन पहुंच भी जाए तो शून्य अभियांत्रिकी ज्ञान से कहर ही ढाएंगे।
रूपये व अर्थव्यवस्था के अवमूल्यन के इस दौर में उत्पादकता बढ़ाने के लिए तकनीकी ज्ञान से दक्ष, ईमानदार एवं कुशल इंजीनियरों की आवश्यकता है। जो इंजीनियरिंग शिक्षा की जुगाड़ी दूकानों में निर्मित नहीं हो सकते है। इंजीनियर्स डे पर इन मुद्दों पर सरकार, समाज, एआईसीटीई व अभिभावकों-विद्यार्थियों को गहन चिन्तन करना जरूरी है। आखिर देश कितने अर्द्धकुशल, जुगाड़ी अभियंताआं को पचा सकता है एवं इनसे जूझ सकता है।
अनिल मेहता
(लेखक विद्याभवन पॉलिटेक्निक महाविद्यालय के प्राचार्य हैं। साथ ही इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स एवं इण्डियन वाटर वर्क्स एसोसिएशन के सदस्य भी हैं)