udaipur. एलोविरा (ग्वारपाठा) की खेती अब मुनाफे का व्यवसाय बनने लगी हैं। उदयपुर जिले की पंचायत समिति झा$डोल के छोटे से गांव नकोडिया के आदिवासी किसानों की तकदीर बदलने का सबब बनी है एलोविरा की खेती। जब यहां के किसानों को एलोविरा की उपयोगिता का पता चला तो किसान इसके लिए पहल कर आगे आए और गांव में 12 लाख एलोविरा लगाए गए। एलोविरा लगा तो सहायता के लिए राजस्थान कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने आगे आकर 3 स्वयं सहायता समूहों को एलोविरा का ज्यूस निकालने का विधिवत प्रशिक्षण दिया.
ओगणा गांव में ग्वारपाठा ज्यूस प्रसंस्करण इकाई की स्थापना की गई। यहाँ तैयार किया जाने वाला एलोविरा ज्यूस अन्तर्राष्ट्रीय मानक को ध्यान में रखकर तैयार किया जा रहा हैं। इस ज्यूस के औषधीय गुणों के कारण देश-विदेश में इसकी काफी मांग भी हैं।
ओगणा में एलोविरा ज्यूस से आदिवासी कृषकों को वर्ष 2009-10 में जहां 2 लाख 48 हजार रुपये की आय हुई थी वह वर्ष 2010-11 में ब$ढकर 5 लाख 72 हजार रुपये हो गई। इस वर्ष 4 हजार 400 लीटर एलोविरा का ज्यूस निकाला गया। मशीनी उपयोग से ज्यूस निकालने की क्षमता में निरन्तर वृद्घि हो रही है और वर्ष 2011-12 में अब तक 1950 लीटर ज्यूस से 2 लाख 50 हजार रुपये की आय हो चुकी है.
यही नही, मशीनीकरण के युग में जहां इन आदिवासी कृषकों के घरों में एलोविरा के ज्यूस से समृद्घि आई है वहीं गुजरात से अगरबत्ती स्टिक बनाने की मशीन लगने से भी इनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होने में सहायता मिली हैं। पहले जहां आदिवासी कथौ$डी परिवार पूरे दिन की मेहनत कर हाथ से 50 से 100 रुपये की आमदनी करते थे अब वे मशीन आने पर प्रतिदिन 400 रुपये तक की कमाई करने लगे हैं। वन विभाग द्वारा कथौडी परिवारों एवं वन सुरक्षा समितियों को यह मशीनें नि:शुल्क उपलब्ध कराई गई हैं। हाल ही में इनके द्वारा तैयार की गई 9 टन अगरबत्ती स्टिक के 2 ट्रक अहमदाबाद भेजे गए हैं। आज यहां के आदिवासी निश्चित ही एलोविरा की खेती और अन्य साधनों से आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर हुए हैं।
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