गुणीजनों की दो दिवसीय कार्यशाला
Udaipur. राजीव गांधी जनजाति विश्वविद्यालय के कुलपति टी. सी. डामोर ने कहा कि बीमारी की जड़ को जडी़-बूटी के साथ जोडे़ं तो फायदा होगा। गुणीजन जडी़-बूटी मंगवाते हैं, उनकी परख करें। जो जडी़ बूटी स्वयं समझते है एवं जंगल से लाते है उस जडी़ बूटी के पेड़-पौधों की संरक्षा-सुरक्षा भी करें।
वे शनिवार को माणिक्यलाल वर्मा आदिम जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान तथा जागरण जन विकास समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यशाला के समापन समारोह को संबोधित कर रहे थे। संस्थान निदेशक अशोक यादव ने कहा कि गुणीजनों द्वारा जो भी ज्ञान अर्जित किया है वह समाज के सामने आना चाहिये व जो कुछ दवाई कर रहे हैं उसका सही प्रचार भी होना चाहिए। प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए डॉ. जी. पी. झाला ने बताया कि दो दिवसीय कार्यक्रमों में हुई परम्परागत जडी़-बूटियों से रोगोपचार की जानकारी प्रदान की। शिविर में कुल 55 गुणीजनों ने सहभागिता की जो विभिन्न क्षेत्रों एवं विभिन्न रोगों के उपचार के विशेषज्ञ थे। शिविर में कुल 153 रोगियों को परामर्श दिया गया। इसमें 18 जीर्ण बीमारियों वाले रोगियों को मालिश द्वारा उपचार भी किया गया।
सह आचार्य डॉ. राकेश दशोरा ने बताया कि गुणीजनों में ज्ञान का भण्डार है, जरूरत इसे समाज के सामने लाने की है। भाग लेने वाले गुणीजन भगवतीलाल ने अनुभव बताते हुए कहा कि गुणीजन देशी जडी़ बूटियों से तैयार की गयी दवाईयों का सदुपयोग करके लोगों को आराम प्रदान करें। गुणी अपने गांव में कम से कम 10-11 मौसमी बीमारियों का उपचार आसानी से कर सकता है। अन्त में गणेश पुरोहित निदेशक जागरण जन विकास समिति ने बताया कि गुणीजनों का एक मंच होना चाहिये। कार्यक्रम में बी. एल. कटारा, निदेशक (सांख्यिकी) उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन ज्योति मेहता उप निदेशक टीआरआई ने किया।