अंतिम दिन बताई माता-पिता की महिमा आचार्य शांतिसागर ने
उदयपुर। दुनिया के रंगमंच की सबसे बड़ी कलाकार अगर कोई है तो वह है माँ। जिसने मां-बाप का दिल जीत लिया, समझो उसने दुनिया में सब कुछ जीत लिया। जिसने मां-बाप का दिल तोड़ दिया समझो वह दुनिया में सब कुछ जीत कर भी हार गया।
बेटे की हजार ठोकर खाकर भी उसका पेट भरने वाली दुनिया में अगर कोई होती है तो वह मां होती हैं। इसीलिए कहते हैं अगर कहीं जन्नत है, स्वर्ग हैं तो वहां माँ-बाप के चरणों में हैं भगवान तो दुनिया में न दिखने वाले हमारे माता-पिता हैं, लेकिन हमारे माता-पिता तो दुनिया मे साक्षात दिखने वाले भगवान है। जिसके पास माता-पिता हैं वह गरीब होते हुए भी दुनिया का सबसे बड़ा अमीर हैं और जिसके पास माता-पिता नहीं है वह अमीर होते हुए भी दुनिया का सबसे बड़ा गरीब हैं।
ये विचार आचार्य शान्तिसागर ने नगर निगम प्रांगण में आयोजित मीठे प्रवचन की श्रृंखला के अन्तिम आठवें दिन माता-पिता की महिमा का बखान करते हुए व्यक्त किए। आचार्य ने माता-पिता की महिमा का ज्यों-ज्यों बखान किया उपस्थित श्रोताओं की आँखों से आंसुओं की बूंदें टपकने लगी। मां वो होती है जो औलाद के सारे दु:खों को अपने हृदय में छुपा लेती हैं। माँ वह होती है जो अपनी औलाद के सारे गुनाहों को दबाकर फिर से जीने की कला सिखाती हैं। माँ वो होती हैं जो खुद भूखा रहकर औलाद का पेट भरती हैं। माँ वो होती है जो खुद गीले में सोकर औलाद का सुखे में सुलाती हैं। रोटी एक है, उसके चार टुकड़े किए, लेकिन खाने वाले पांच हैं लेकिन वो माँ ही होती हैं। जो यह कहती हैं कि आप चारों खाली, मुझकों भूख नहीं हैं।
आचार्य ने कहा कि मां-बाप को कभी अपने ऊपर भार मत समझना, बल्कि अपना सौभाग्य मानना और उनका आभार मानना कि आपको उनकी सेवा करने का सुअवसर मिला हैं। मां-बाप बूढ़े हो जाएं उनकी सेवा करना, उन्हें अपनी उंगुली पकड़ा कर चलाना, क्योंकि जब तक दुनिया में आए थे, उन्हीं ने तुम्हें चलना सिखाया था और जब बुढ़ापे में वो चल नहीं सकते तो औलाद का फर्ज और कर्तव्य होता है कि वह उन्हें चलने में मदद करें। ऐसा कभी मत सोचना कि मां बाप तो बूढ़े हो गए है, पुराने हो गए है, अब किसी काम के नहीं बचे हैं, इन्हें वृद्धाश्रम छोड़ आते हैं। लेकिन पानी कितना भी उबल जाएं, पुराना हो जाए, गन्दा हीं क्यों नहीं जाए, अगर वो तुम्हारी प्यास नहीं बुझा सकता है वो कहीं पर लगी आग को तो बुझा ही सकता है।
आचार्यश्री ने कहा कि जिन माता-पिता के तुम्हारे जीवन में उजाला किया है, उनके जीवन में कभी भी अन्धेरा मत होने देना। एक बार शिक्षक ने बच्चों से कहा, कल सभी बच्चे स्कूल आओ तब जन्नत की मिट्टी लेकर आना। दूसरे दिन सारे बच्चे खाली हाथ आ गए, लेकिन एक बच्चा मिट्टी लेकर आया, शिक्षक ने पूछा, तुम ये मिट्टी कहां से लाए हैं। बच्चे ने कहा कि जन्नत से। शिक्षक ने कहा तुम्हें क्या पता कि जन्नत कहां हैं, बच्चे ने कहा माता-पिता के चरणों में। यह शाश्वत सत्य है कि दुनिया में अगर कहीं जन्नत हैं तो वह माता-पिता के चरणों में ही हैं।
आचार्यश्री ने कहा कि पिता यह कहता है कि मेरा बेटा तब तक मेरा है, जब तक उसकी शादी कहां हो, अगर माँ कहती है कि मेरी बेटी जब तक मेरी है जब तक मेरी मुक्ति नहीं हैं। जो माँ अपने बेटे को इन्सान बनाने में 20 साल लगा देती है, पत्नी उसी बेटे को मात्र 20 दिन में बेवकूफ बना देती है। दुनिया में सब कुछ करना, सभी को चाहे याद मत करना, लेकिन माता-पिता को कभी मत भूलना।
आज दुनिया में परिस्थितियां बदलती जा रही है। माता-पिता के लिए औलादों के पास, समय नहीं है। बचपन में बच्चे आपस में झगड़ते थे, माँ मेरी है, माँ मेरी है, लेकिन जब माता-पिता बूढ़े और औलादें जवान हो जाती है तो भी वह झगड़ते हैं तब परिस्थितियां अलग होती हैं। बच्चे कहते हैं कि माँ तेरी है, माँ तेरी है। बचपन में माँ औलादों को रोटी खिलाने के लिए रोती थी, माँ आज भी रोती है, रोटी खाने के लिए क्योंकि औलादें बुढ़ापे में उसे रोटी नहीं देती है। यह गलत है यह दुनिया का सबसे बड़ा पाप हैं जो औलाद माता-पिता की सेवा नहीं करता है वह दुनिया का सबसे बड़ा पापी है उसका कभी मोक्ष नहीं हो सकता, उसकी दुर्गति ही होती है, इस जन्म में तो हैं ही अगले जन्म में भी।
अन्तिम दिन की धर्मसभा के पुण्यार्जक पुष्पा देवी, महेन्द्र जी लखावला, कनक कुमार लखावला, चन्द्रपाल, प्रभुलाल कारवा, भंवरलाल टीमरवा थे। मुख्य अतिथि एडीएम सिटी मोहम्मद यासीन खान पठान, झमकलाल टाया समाजसेवी, पारस सिंघवी थे। समाज के श्रेष्ठीजनों में सेठ शांतिलाल नागदा, नाथुलाल खलुडिय़ा, चन्दनलाल झापियां, जनकलाल सोनी, अशोक शाह, सुमतिलाल दुदावत और जयंतिलाल डागरिया मौजूद थे।