मक्का उन्नयन पर 57 वीं वार्षिक कार्यशाला
उदयपुर। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उपमहानिदेशक (फसल विज्ञान) डॉ. एस.के. दत्ता ने कहा कि वर्तमान में देश में औसत मक्का उत्पादन 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है जो कि विश्व की औसत उत्पादकता का आधार ही है। गत 10 वर्षों में भारत में मक्का उत्पादन की विकास दर 5.5 प्रतिशत ही जबकि विश्व में यह दर सिर्फ 3 प्रतिशत ही रही।
वे महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय के सानिध्य में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की मक्का उन्नयन पर 57 वीं अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना पर तीन दिवसीय वार्षिक कार्यशाला के उदघाटन समारोह को मुख्यय अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे।
डॉ. दत्ता ने मक्का उत्पादन की विभिन्न चुनौतियों पर चर्चा करते हुए कहा कि कटाई उपरान्त प्रसंस्करण तकनीकियों, उचित भण्डारण, गुणवत्तापूर्ण बीज एवं मृदा की घटती उत्पादकता व सिंचाई की कमी मुख्य चुनौतियां हैं जिनमें सुधार करके मक्का की उत्पादकता आसानी से बढ़ाई जा सकती है। उन्होंने सीजीआईएआर, एफएओ, सीमिट, बहुराष्ट्रीय कम्पनियां एवं पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के द्वारा मक्का उत्पादन एवं प्रसंस्करण को बढ़ावा देने की आवश्यकता बताई। डॉ. दत्ता ने मक्का अनुसंधान निदेशालय द्वारा जनजाति क्षेत्रीय उपयोजना क्षेत्र में किए जा रहे मक्का उन्नयन कार्यों की सराहना भी की।
विशिष्ट अतिथि आईसीएआर के सहायक उपमहानिदेशक डॉ. आर.पी. दुआ ने मक्का के विविधता पूर्ण उत्पाद पर आधारित अनुसंधान एवं मक्का विकास की योजनाओं पर प्रकाश डाला। साथ ही उन्होंने मक्का के पारम्परिक बीज की अपेक्षा संकर किस्मों के अधिकाधिक उपयोग एवं रबी में सिंचाई प्रबन्धन द्वारा मक्का के क्षेत्र को बढ़ाने की आवश्यकता जताई। उन्होंने कहा कि गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल में मक्का उत्पादन को बढ़ाने की असीम सम्भावनाएं है।
अध्यक्षता करते हुए डॉ. ओ.पी. गिल, कुलपति, मप्रकृप्रौविवि उदयपुर ने बताया कि मेवाड़ एवं मक्का का गहरा नाता है। मेवाड़ में यह कहावत प्रचलित है कि ‘‘गेहूँ छोड़ मक्का खाना, मेवाड़ छोड़ कही नहीं जाना’’। प्रो. गिल ने कहा कि एमपीयूएटी परिक्षेत्र में उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा एवं प्रतापगढ़ जिलोंमेंमक्का के विकास की असीम सम्भावनाएं छिपी है। उन्होंने बताया कि बांसवाड़ा की जलवायु मक्का उत्पादन एवं मक्का की संकर किस्म के बीज तैयार करने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। इस क्षेत्र के कई किसान 50 से 80 क्विंटल प्रति हैक्टेयर मक्का का उत्पादन ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि उचित तकनीकों व किसानों के द्वार तक खेती में नवाचार पहुंचाने की आवश्यकता है। इससे आगामी 4-5 वर्षों में क्षेत्र का मक्का उत्पादन औसतन 40 से 50 क्विंटल पहुंच सकता है।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में कार्यशाला आयोजन समिति के अध्यक्ष एवं अनुसंधान निदेशक डॉ. पी. एल. मालीवाल ने स्वागत उदबोधन प्रस्तुत किया। डॉ. मालीवाल ने बाताया कि इस तीन दिवसीय कार्यशाला में विभिन्न 35 अनुसंधान केन्द्रों से जुडे़ 166 ख्यातनाम कृषि वैज्ञानिक भाग ले रहे है जो कि इस वर्ष 2013-14 में किये गये अनुसंधान कार्यों के अपने अनुभव यहाँ साझा करेंगें एवं आगामी वर्ष की कार्ययोजना पर मंथन एवं चर्चा करेंगे।
मक्का उन्नयन परियोजना के निदेशक डॉ. ओ. पी. यादव ने विगत वर्ष का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। डॉ. यादव ने बताया कि इस वर्ष भारत के इतिहास में सर्वाधिक 22.23 मिलियन टन मक्का उत्पादन हुआ। उन्होंने कहा कि रबी में मक्का का क्षेत्र बढ़ने एवं बिहार, झारखंड, बंगाल, मध्यप्रदेश, कर्नाटक एवं उत्तरप्रदेश के कुछ भागों में मक्का के अधिक उत्पादन से यह सम्भव हो पाया है। साथ ही डॉ. यादव ने बताया कि मक्का उत्पादन में देश के विभिन्न क्षेत्रों के लिए 17 किस्मों का अनुमोदन किया गया जिसमें प्रताप मक्का चरी एवं क्यूपीएम-1, एमपीयूएटी द्वारा तैयार की गयी है।
कार्यक्रम में डॉ. के.एल. कोठारी, सेवानिवृत अनुसंधान आचार्य (मक्का) ने मक्का पर एक कविता ‘मक्का की महिमा‘ प्रस्तुत की जिसकोसभीवैज्ञानिकों ने सराहा। इस कार्यक्रम में विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा लिखित पुस्तकें मक्का उत्पादन की उन्नत प्रौद्योगिकी, मक्का उत्पादन की तकनीक, पिन्नेकलऑफ एग्रोटेक्नोलोजिज एण्ड प्रोटोटाइपडेवलप्ड एट एमपीयूएटी, औषधीय पौधों की खेती आदि का विमोचन भी किया गया तथा मक्का अनुसंधान निदेशालय, नई दिल्ली द्वारा तैयार की गयी वार्षिक प्रगति प्रतिवेदन एवं सीडी का भी विमोचन किया गया। संचालन डॉ. गायत्री तिवारी एवं धन्यवाद की रस्म सहनिदेशक अनुसंधान व कार्यालय के आयोजन सचिव डॉ. एस. के. शर्मा ने अदा की।