राजस्थान विद्यापीठ में विश्व शांति में बौद्ध धर्म की भूमिका विषयक व्याख्यान
उदयपुर। राजस्थान विद्यापीठ के संस्थापक पं. जनार्दनराय नागर की स्मृति को चिरस्मृति बनाये रखने के उद्देश्य से गुरूवार को दिल्ली विधानसभा के पूर्व स्पीकर एवं पुरातत्व विज्ञान के ज्ञाता डॉ. योगानन्द शास्त्री को तृतीय जनार्दनराय नागर संस्कृति रत्न अवार्ड से नवाजा गया।
यह पुरस्कार उन्हें भारतीय कला, संस्कृति व भाषा को संरक्षित करने एवं विरासत को बचाने में योगदान के लिए दिया गया। इसमें उन्हे प्रतिक चिन्ह, उपरणा, पगडी, प्रशस्ति पत्र व एक लाख नकद प्रदान किए गए। कुलपति प्रो. एसएस सारंगदेवोत ने बताया कि समारोह के मुख्य अतिथि भारतीय सांस्कृतिक सम्बंध परिषद् (आईसीसीआर) के अध्यक्ष प्रो. लोकेश चन्द्र ने विश्व शांति में बोध धर्म की भूमिका विषयक पर कहा कि भगवान बुद्ध के उपदेश एवं उनके बताये रास्ते को आज के परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिक बताया। उन्होंने कहा कि विश्व में शांति एवं भाईचारा लाने में बौद्ध धर्म अपनी भूमिका निभाए है। बुद्ध ने विश्व में शांति एवं भाई चारा फैलाने का कार्य किया। विशिष्ठ अतिथि प्रख्यात इतिहासविद् तथा राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली की प्रो. निर्मला शर्मा ने कहा कि हमारी सभ्यता व संस्कृति धरोहर इतिहास एवं धर्म ग्रंथ को आज की युवा पीढ़ी ज्ञान अर्जित कर उसके आज के संदर्भ में अनुसरण करें। उन्होने कहा कि विश्व में शांति बनाए रखने के लिए बौद्ध धर्म की शिक्षा को अपनाने की बात कही। भारतीय संस्कृति, शांति और परस्पर सद्भाव की प्रतीक है।
बौद्ध धर्म भी भारतीय संस्कृति की उत्पत्ति है।
संस्कृति रत्न अवार्ड से सम्मानित प्रो. योगानन्द शास्त्री ने कहा कि शिक्षा के कारण ही हमारा देश आज जगत गुरू कहलाता है। प्राचीन काल में नालंदा, तक्षशिला जैसे गुरूकुल हमारे देश में मौजूद थे जहां विश्व भर के विद्यार्थी शीक्षा दीक्षा ग्रहण करने आते थे। अतः आज पुनः गुरूकुल परम्परा को अपनाना हेागा। समाज और साहित्य की समर्पित भाव से सेवा करने वाले साहित्यकार पं. जनार्दनराय नागर जनुभाई बहुमुंखी प्रतिभा और विराट व्यक्तित्व के पर्याय थे। उन्होंने आम आदमी को षिक्षित करने के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किया। उनके ये दोनों रूप एक दूसरों के पूरक थे इसलिए ऐसा संभव हो सका कि जनुभाई ने समाज सेवा और साहित्य सृजन के क्षेत्र में एक साथ सक्रिय रहकर देश सेवा की। कुलाधिपति एचसी पारख, कुल अध्यक्ष प्रो. देवेन्द्र जौहर ने पं. नागर को याद करते हुए उनके बताये रास्ते पर चलने का आव्हान किया। प्रारंभ में कुलपति प्रो. एसएस सारंगदेवोत ने अतिथियों का स्वागत करते हुए डॉ. योगानन्द शास्त्री को दिये जाने वाले अलंकरण की जानकारी दी। संचालन डॉ. हिना खान ने किया जबकि धन्यवाद प्रो. सीपी अग्रवाल ने दिया।