उदयपुर। शिक्षा का अभिप्राय सीखना एवं सिखाना तक सीमित होकर केवल ज्ञान प्राप्त कर लेने तक नहीं है। सा विद्या या विमुक्ते वाक्य को हम सुनते हैं पढ़ते हैं पर क्या इस वाक्य के भाव के अनुरूप विद्या जो मुक्ति प्रदान करें के चरम पर हम पहुंच पाये हैं। शिक्षा का ध्येय ज्ञान देना है, परन्तु वह ज्ञान व्यवहार में परिलक्षित नहीं होता तो शिक्षा के ध्येय की पूर्ति नहीं हुई है। ज्ञान प्राप्ति एवं चरित्र निर्माण से आदर्श व्यक्तित्व बनता है।
ये विचार सेवानिवृत्त प्रोफेसर वनस्थली विद्यापीठ प्रोफेसर गोपीनाथ शर्मा ने विद्या भवन गो.से. शिक्षक महाविालय के सेवा प्रसार में शिक्षक शिक्षा: विगत, वर्तमान और भविष्य विषय पर वार्ता में व्यक्त किया। प्रो. शर्मा ने वैदिक, जैन, बौद्ध, मुस्लिम, ब्रिटिश एवं वर्तमान शिक्षा प्रणाली शिक्षक शिक्षा का विश्लेषण प्रस्तुत कर भविष्य में शिक्षक शिक्षा की स्थिति पर चर्चा की। चर्चा में एमरेटस प्रो. एमपी शर्मा, प्रो. सुषमा तलेसरा, महाविद्यालय संकाय सदस्य एमएड एवं बीएड के सभी प्रशिक्षणार्थियों ने सक्रिय भागीदारी निभाते हुए शिक्षक शिक्षा के भविष्य पर चर्चा की। वर्तमान समय में सभी क्षेत्रों में परिवर्तन की गति के अनुसार भविष्य में शिक्षा व्यवस्था कैसी होगी, विद्यार्थी कैसा होगा तथा उन परिवर्तित परिस्थितियों में शिक्षक को कैसा होना पड़ेगा। इन सभी परिस्थितियों का विश्लेषण कर शिक्षक को वर्तमान के लिए नहीं भविष्य के लिए तैयार होना होगा। विद्याभवन एमरेटस प्रो. एमपी शर्मा ने बताया कि लर्निंग टू लर्न, लर्निंग टू लिव टूगेदर शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया है, शिक्षा एक सर्जनात्मक कार्य है, इन सभी संदर्भों में एक परिपूर्ण शिक्षक के रूप में भावी शिक्षक तैयार करना होगा।