उदयपुर। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के हवाला गांव स्थित कला परिसर शिल्पग्राम में आयोज्य शिल्पग्राम उत्सव के दौरान एक ओर जहां देश के विभिन्न राज्यों के लोक कलाकार अपनी कला दिखायेंगे वहीं दूसरी ओर कला परिसर में धातु की बनी प्रतिमाओं से भी लोक नृत्यों की मुद्राएं प्रस्फुटित होंगी।
केन्द्र निदेशक फुरकान खान ने शिल्पग्राम उत्सव में नवाकर्षण के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि केन्द्र द्वारा राजस्थान विश्वविद्यालय के दृश्य कला विभाग के सहयोग से सृजित तथा शिल्पग्राम में चौपाल पर सजाई धातु की प्रतिमाओं से केन्द्र के सदस्य राज्य राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा तथा केन्द्र शासित प्रदेश दमण-दीव की नृत्य शैलियों को दर्शाने का प्रयास किया गया है।
उन्होंने बताया कि जयपुर में पिछले दिनों आयोजित कार्यशाला में इन प्रतिमाओं का सृजन किया गया। तकरीबन 6 फीट की ऊँचाई वाली इन प्रतिमाओं में राजस्थान की कालबेलिया जाति की नृत्य मुद्रा को मोहक अंदाज में दर्शाया गया है। इन प्रतिमाओं में गुजरात से वहां का लोकप्रिय डांडिया रास की मुद्रा को धातु पर तराशा गया, जिसमें दैहिक लोच व भाव भंगिमा के साथ डांडियों की रिदम पर थिरकता हुआ दर्शाया गया।
इन प्रतिमाओं में महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व लावणी नृत्य से किया गया है। महाराष्ट्र की यह लोकप्रिय नृत्य शैली लावणी हमारी शास्त्रीय और लोक कला का समवेत स्वरूप है जिसमें विभिन्न मुद्राओं को रोचक व अनूठे अंदाज में दर्शाया जाता है। शिल्पग्राम की चौपाल पर प्रदर्शित प्रतिमा में हस्तमुद्रा के साथ नर्तकी को मोहक अंदाज में प्रस्तुत किया गया है। अरब सागर के किनारे बसे गोवा प्रदेश में समई (दीप स्तम्भ) वहां का सांस्कृतिक प्रतीक है। इसी स्तम्भ को शीश पर धारण कर समई नृत्य किया जाता है। शिल्पग्राम में प्रदर्शित मूर्ति में गोवा की नर्तकी को सिर पर समई संतुलित करते हुए नृत्यरत दिखाया गया है।
केन्द्र शासित प्रदेश दमण दीव मछुआरा समुदाय संस्कृति को दर्शाने वाला प्रमुख केन्द्र है। यहां बसर करने वाली मछुआरा जाति द्वारा मछुआरा नृत्य किया जाता है जिसमें मत्स्य आखेट के बाद स्त्री व पुरूष एक साथ मिल कर उत्सव मानते हैं। शिल्पग्राम में प्रदर्शित मछुआरा जाति की मूर्ति में पद संयोजन के साथ सिर पर मछली की टोकरी लिये मछुआरिन के दृश्य को प्रस्तुत किया गया है।