पाठक मंच संगोष्ठी
उदयपुर। नाटक एक ऐसी विधा है जिसमें रचनाकार द्वारा निबद्ध पात्र ही हमारे सम्मुख आते हैं और उन्हीं से हम रचनाकार की प्रतिक्रिया जान पाते हैं। ये विचार हिन्दी विभाग, मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय एवं राजस्थान साहित्य अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित पाठक मंच संगोष्ठी में केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा के पूर्व प्रोफेसर के. के. शर्मा ने व्यक्त किए।
प्रो. शर्मा ने कहा कि ‘रंग छवियां‘ नामक पुस्तक अपने आप में इस बात में अनूठी है कि इसमें चयनित नाटकों की विषय वस्तु प्राचीन से नवीन तक का चित्रण करती हैं। इसमें परम्परा से जुड़ी बातें लोक नाट्य के साथ आज के युग में प्रारम्भ हो चुकी मानवीय संवेदनाओं की खरीद-फरोख्त का भी वर्णन है। उन्होंने पुस्तक में संकलित ‘डॅालर अण्डा‘ एवं ‘साक्षात्कार‘ नामक नाटकों की विशेष प्रशंसा करते हुए बताया कि ये नाटक समय के साथ समाज में आए बदलाव का यथार्थ वर्णन करते हैं।
कार्यक्रम संयोजक डॉ. नवीन कुमार नंदवाना ने अतिथियों का स्वागत करते हुए हिन्दी नाट्य परम्परा एवं ‘रंग छवियां‘ पुस्तक में संकलित विभिन्न नाटकों पर विचार व्यक्त किये। उन्होंने इन नाटकों में वर्णित सामाजिक संवेदना पर प्रकाश डाला।
अध्यक्षता कर रहे हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. माधव हाड़ा ने बताया कि अकादमी की इस योजना से हमारे प्रदेश के रचनाकारों को एक नई पहचान मिलती है। यह पुस्तक हमारा पड़ोस है जिसमें कुम्भलगढ़ भी है तो पन्नाधाय का बलिदान भी। शुद्ध नाटक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। वर्तमान में नाटक दूर दर्शन के धारावाहिकों एवं फिल्मों के रूप में भी हमारे सामने प्रभावशाली रूप से उपस्थित है।
राजस्थान विद्यापीठ के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मलय पानेरी ने ‘रंग छवियां‘ नामक पुस्तक पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत करते हुए बताया कि इसमें इतिहास के संदर्भ वर्णित है। किन्तु केवल उनकी पुनरावृत्ति नहीं है। मनोहर प्रभाकर का गीति नाट्य पन्ना के बलिदान को दर्शाता है। वहीं लईक हुसैन का ‘रूपमती‘ हमें हमारी लोक नाट्य परम्परा से जोड़ता है।
हिन्दी विभाग सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय की सहायक आचार्य डॉ. नीता त्रिवेदी ने बताया कि ‘डॉलर अण्डा‘ नामक नाटक जीवन में मीडिया की भूमिका एवं नारी सशक्तीकरण को दर्शाते हैं। ‘रंग छवियां‘ के नाटकों में जीवन के विभिन्न रंग बिखरे हुए हैं। अन्त में ये एक छवि में समायोजित हो जाते हैं। जो राजस्थान की छवि का आइना है।
इस समारोह में उर्दू विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. मोहम्मद फारूख, डॉ. हदीश अंसारी, डॉ. रईस अहमद, डॉ. एल.एस.राव, डॉ. सुरेश सालवी, डॉ. आशीष सीसोदिया एवं विभिन्न शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे। संचालन शोधार्थी निर्मल माली ने किया एवं आभार डॉ. राजकुमार व्यास ने व्यक्त किया।