दोनों आंखों में जन्मजात था मोतियाबंद
उदयपुर। ठीक से दुनिया को अपनी नजरों से निहार भी नहीं पाया था कि पता चला उसके दोनों आंखों में मोतियाबिंद है, और ऐसे ही 4 साल के बच्चें की ऑखों की निःशुल्क सर्जरी कर उसको रोशनी के साथ साथ जीनें की नई दिशा दी पेसिफिक मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल ने। इस सफल सर्जरी में नेत्र रोग सर्जन डॉ.राजेन्द्र चौधरी, एनेस्थिशिया विभाग के डॉ, प्रकाश औदिच्य, डॉ. समीर गोयल, डॉ. सलोनी सिंह, हरीश प्रजापत एवं हीरालाल का सहयोग रहा।
सिरोही जिले की पिण्डवाडा के गांव कोजारी के रहने वाले 4 वर्षीय हिमांशू को जन्म से ही दिखाई देना कम होता जा रहा था परिजनों ने स्थानीय चिकित्सको को दिखाया तो मोतियाबिंद की बीमारी का पता चला। परिजन उसे भीलों का बेदला स्थित पेसिफिक हॉस्पिटल लेकर आए जहॉ उसे नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेन्द्र चौधरी को बताया तो जांच करने पर जन्मजात मोतियाबिंद का पता चला। बच्चें की कम उम्र को देखते हुए ऑपरेशन करना जोखिम भरा था। लेकिन पीएमसीएच में उपलब्ध उच्च स्तरीय बुनियादी सुविधाए एवं विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम के चलते यह सम्भव हो पाया।
नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेन्द्र चौधरी ने बताया कि बच्चे की मोतियाबिंद सर्जरी कई मायनों में अडल्ट से अलग होती है। अडल्ट में आईड्रॉप के जरिए ही आंख को सुन्न किया जाता है और सर्जरी कर दी जाती है। लेकिन इतने छोटे बच्चे में यह संभव नहीं होता। इसलिए जनरल एनेस्थीसिया देना पड़ता है। इसके अलावा बच्चों में भी लेंस का साइज बड़ों की तरह ही होता है, लेकिन बच्चों की पावर अलग होती है। इसके लिए एक विशेष कैलकुलेशन करना होता है और उसके आधार पर पावर सेट किया जाता है। यही नहीं, बच्चों की सर्जरी का प्रोसेस भी अलग होता है। यही वजह है कि अडल्ट में मोतियाबिंद की सर्जरी करने वाले डॉक्टरों में से 90 पर्सेंट डॉक्टर्स बच्चे की कैटरेक्ट सर्जरी नहीं करना चाहते हैं। जहां अडल्ट में 15 मिनट में सर्जरी होती है, बच्चों में इसमें लगभग 45 मिनट लग जाता है। उन्होंने कहा कि बच्चे में मोनोफोकल लेंस डाला गया और उसे बाद में चश्मा पहनना पड़ेगा।
डॉ.चौधरी ने बताया कि बच्चे को जन्मजात मोतियाबिंद था। आमतौर पर अगर एक आंख में मोतियाबिंद होता है तो बच्चा दूसरी आंख से देख रहा होता है, जिससे उसकी बीमारी देर से पता चलती है। लेकिन इस मामले में बच्चे की दोनों आंखों में मोतियाबिंद हो गया था। इसलिए माता-पिता को जल्दी पता चल गया। उसकी दोनों आंखों के ऊपर सफेद बन गया था। शुरू में उन्होंने स्थानीय चिकित्सक को दिखाया, उसने मोतियाबिंद बताया, लेकिन कहा कि सर्जरी जब बच्चा बडा हो जाएगा तब होगी। लेकिन इतना इंतजार सही नहीं है। क्योंकि बच्चे की कम उम्र हो तो आई का ब्रेन से कनेक्शन होता है और विजन डिवेलप होता है। लेकिन अगर बच्चा मोतियाबिंद का शिकार है तो आई और ब्रेन का कनेक्शन नहीं होगा, इसका इस्तेमाल नहीं होगा तो यह कनेक्शन कम होता चला जाएगा और बाद में सर्जरी के बाद भी उतना अच्छा विजन नहीं आता है।
कम आते हैं ऐसे मामले
डॉ. राजेन्द्र ने कहा कि यह बहुत रेयर नहीं है और ऐसे मामले आते हैं, लेकिन कम आते हैं। यहां सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि माता-पिता को अपने बच्चे की इस बीमारी को समझना चाहिए, नवजात बच्चे की शुरुआत में स्क्रीनिंग होनी चाहिए, जो नहीं होती है और अगर कैटरेक्ट जैसी बीमारी का पता चलता है तो समय पर इलाज कराना चाहिए, ताकि सही समय पर सर्जरी हो और विजन पूरा वापस आ जाए।