‘आयड़ से गंगा तक’ संवाद
उदयपुर। आयड़ नदी में शहर का गंदा पानी बहता है। इस गंदे पानी को प्राकृतिक तरीकों से सुधारने तथा नदी के किनारों को कटाव से बचाकर नदी को ठीक किया जा सकता है। नदी के जलग्रहण क्षेत्र को बचाना जरूरी है, खासकर पहाडिय़ों के कटाव को रोकना होगा।
विश्व पर्यावरण सप्ताह के तहत डॉ. मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट तथा झील संरक्षण समिति के संयुक्त तत्वाधान में आयड़ से गंगा तक विषयक संवाद में विद्या भवन पॉलिटेक्निक के प्राचार्य अनिल मेहता ने व्यक्त किए।
मेहता ने कहा कि वर्ष 2003-04 में केन्द्र सरकार ने राज्य सरकार ने आयड़ नदी सुधार का प्रस्ताव मांगा था, लेकिन राज्य सरकार प्रभावी कार्यवाही नहीं कर पाई। मेहता ने कहा कि अब संभागीय आयुक्त सुबोध अग्रवाल ने इसमें पहल की है। चांदपोल नागरिक समिति के सचिव तेज शंकर पालीवाल ने उतराखण्ड में गंगा नदी की स्थिति का वर्णन करते हुए कहा कि गंगा उदगम् स्थल से ही प्रदूषित हो रही है। आयड़ की भी यही स्थिति है। पालीवाल ने कहा कि सरकार मजबूत इच्छा शक्ति से आयड़ नदी के अतिक्रमण हटाए तथा इसका मूल पेटा कायम करवाए।
ट्रस्ट के सचिव नन्दकिशोर शर्मा ने कहा कि उदयपुर गंगा नदी बेसिन का एक हिस्सा है। केन्द्र सरकार को प्रेषित होने वाले प्रस्ताव में इस जुझाव को व्यक्त करने से लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा कि ग्रीन ब्रिज योजना के माध्यम से कम लागत में आयड़ नदी के प्रदूषण से निपटा जा सकता है। आयड़ नदी में बहता गन्दा पानी भूजल को भी प्रदूषित कर रहा है, वहीं इससे सिंचित सब्जियां भी कमोबेश जहरीली है।
केन्द्रीय भूजल बोर्ड के पूर्व निवेदक ओ.पी. माथूर तथा पूर्व अभियन्ता सोहनलाल तम्बोली ने कहा कि आयड़ नदी कठोर चट्टानों वाले भूभाग में बहती है। नदी सुधार योजना में भूजल विज्ञानीय तथ्यों को ध्यान में रखना जरूरी है। धन्यवाद नितेशसिंह कच्छावा ने दिया।