उदयपुर। भारत तिल के क्षेत्रफल व उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान रखता है । सोयाबीन और मूंगफली के बाद तिल, खरीफ की एक मुख्य तेलीय फसल है। जिसका कृषि क्षेत्र दक्षिणी पश्चिमी मानसून पर आधारित है।
वर्तमान में राष्ट्रीय स्तर पर इस फसल का अनुमानित उत्पादन घटकर 7.31 लाख टन रह गया है जबकि इसका उत्पादन पिछले वर्ष 8.93 लाख टन था। राजस्थान में तिल की घरेलू खपत कम है लेकिन तिल का उत्पादन दूसरे देशों में निर्यात के उद्देश्यं से किया जाता है। राजस्थान सरकार ने जुलाई के प्रथम सप्ताह तक तिल की बुवाई 12.8 हजार हैक्टेयर में होने का अनुमान लगाया है जो पिछले वर्ष की तुलना में 92.04 प्रतिशत कम है।
राजस्थान में तिल का उत्पादन पाली, जालौर, सिरोही, टोंक, कोटा व अजमेर जिलों में होता है। किसान समुदाय तक बुवाई संबधित निर्णय लेने हेतु जानकारी पहुंचाने के लिए महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्यौगिकी विश्वेविद्यालय की राष्ट्रीाय कृषि नवोन्मेषी परियोजना कृषि अर्थशास्त्र एवं प्रबन्धन विभाग के कार्यरत है। कृषकों तक मूल्य पूर्वानुमान पहुंचाने के लिए किये गये शोध में आगामी तिल फसल की संभावित कीमत का पूर्वानुमान लगाया गया है। कृषि अर्थशास्त्र एवं प्रबंध विभाग की ऐमिक टीम ने गत बारह वर्षों के बाजार भाव के आंकडों को एकत्रित करके अर्थमितिय विश्ले षण के द्वारा यह अनुमान लगाया है कि सफेद तिल की कीमत अक्टूबर-नवम्बर 2012 (कटाई उपरान्त) में रूपये 6500 से 7000 प्रति क्विंटल रहने की संभावना है।
कटाई के समय तिल की आयात-निर्यात नीति भी बाजार भाव को प्रभावित कर सकती है। किसानों को सलाह है कि उपरोक्त सूचनाओं व राजस्थान में मानसून को ध्यान में रखते हुए तिल के अन्तर्गत क्षेत्रफल का निर्धारण कर सकते है।