udaipur. इस संसार में सुखी कौन, इस यक्ष प्रश्र का समाधान हर कोई सोचता रहता है लेकिन कोई इसके मूल में जाकर हकीकत में समाधान नहीं खोजता। दरअसल इस प्रश्र का सीधा समाधान यही है कि इस संसार में जो जितना त्याग करता है वो उतना ही सुखी कहलाता है और जो जितना ग्रहण करता है वो उतना ही दुखी हो जाता है। सभी झंझटों से दूर परिग्रह रहित व्यक्ति साधु ही इस संसार में सुखी है।
उक्त विचार आचार्य सुकुमालनन्दी ने सेक्टर 11 स्थित आदिनाथ भवन में आयोजित प्रात:कालीन चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किये। आचार्यश्री ने कहा कि दुख का निवारण सुख कहलाता है। दुख का कारण राग, द्वेष, मोह- माया है जिसने इनको जीत लिया वो ही संसार में सुखी है। संसार दुखों का सागर है, जिसने इसमें डूबना नहीं तैरना सीख लिया वो ही सुखी रह सकता है।
चातुर्मास समिति के भंवलाल मुण्डलिया ने बताया कि शनिवार को सौभाग्य दशमी, सुहाग दशमी का 50 से अधिक महिलाओं ने आचार्यश्री को श्रीफल चढ़ाकर उपवास व्रत ग्रहण किया।
आचार्य सुकुमालनन्दी का कैशलोचन आज
सेक्टर 11 स्थित आदिनाथ भवन में रविवार 29 जुलाई को प्रात: आचार्य सुकुमालनन्दी महाराज का केशलोचन समारोह होगा। दिगम्बर जैन साधु हाथों से ही सिर तथा दाढ़ी- मूछों के कैशलोचन करते हैं। इस कलिकाल में यह बहुत दुर्लभ तप है। ऐसे तपस्वी बाल यति आचार्य सुकुमालनंदी 21 वर्षों से केशलोचन कर रहे हैं। साल में तीन या चार बार यह केशलोचन किया जाता है। केशलोचन के बाद आचार्यश्री का मार्मिक उद्बोधन भी होगा। इसी दिन रात्रि को जैन भक्ति ग्रुप द्वारा भजन, भक्ति व स्तुति कराये जाएंगे। उदयपुर के साथ ही हैदराबाद, चैन्नई, जोधपुर, गुवाहाटी, सागवाड़ा आदि जगह से सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित रहेंगे।