अन्य राज्यों से आधी दरों पर सुविधा उपलब्ध
कीमोथैरेपी से हाथों में होने वाले कुप्रभाव से बचाव का तरीका
Udaipur. गीतांजली मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में उदयपुर जिले की निवासी मंजू के शरीर में कैंसर की गांठ के उपचार के लिए किमोपोर्ट का उपयोग किया गया। मरीज को कैंसर के इलाज के लिए किमोथैरेपी करना जरूरी था, लेकिन मरीज के हाथों की नसें पतली होने से किमोथैरेपी नहीं लग पा रही थी। कीमोपोर्ट लगाकर कैंसर के इलाज की सुविधा उदयपुर संभाग में कहीं भी उपलब्ध नहीं है।
बाहर राज्यों से कीमोपोर्ट लगवाने में काफी खर्च आता है, लेकिन गीतांजली हॉस्पिटल में इस तरह की सुविधा अन्य राज्यों से लगभग आधी दरों पर उपलब्ध है। हॉस्पिटल के कैंसर रोग विषेशज्ञ डॉ. प्रशांत शर्मा ने बताया कि कैंसर के मरीजों को कीमोथैरेपी के माध्यम से हाथों की नसों में बोतल चढ़ाकर भारी खुराक वाली दवाईयां दी जाती है। यह दवा हृदय की शिराओं के माध्यम से खून में पहुंचती है। इस दवा से कैसर के मरीजों को काफी राहत मिलती है। कीमोथैरेपी की प्रकिया से होने वाले कुप्रभावों से मरीज के हाथों की नसें सुन्न हो जाती है, बाहर की तरफ नजर आती हैं, हाथ में सूजन भी आ जाती है। ऐसी स्थिति में नसों को सामान्य होने में चार से आठ माह तक लग जाते हैं। साथ ही अधिक पतले या अधिक मोटे शरीर के मरीजों की कई बार कीमोथैरेपी नहीं हो पाती, क्योंकि उनके हाथों की नसें काफी पतली होती है व कई बार नहीं मिल पाती हैं।
उन्होंने बताया कि मरीज को कैंसर की गांठ से काफी परेशानी हो रही थी। ऐसे में मरीज की स्थिति में सुधार के लिए कीमोथैरेपी करना आवश्येक था। मरीज की हाथों की नसें काफी पतली थी। इस वजह से इसकी कीमोथैरेपी नहीं हो पा रही थी। मरीज को दवा देने के लिए कीमोपोर्ट पद्धति का इस्तेमाल किया गया। मरीज की कॉलर बोन (कंधे की हड्डी) के पास एक छोटा से चीरा लगा कर स्टील या प्लास्टिक पोर्ट रखा गया व सिलीकोन की नली द्वारा इसे हृदय के पास बड़ी शिरा (सुपीरियर विनाकाना) में खोला गया। इस पोर्ट के माध्यम से मरीज को कैंसर की दवाईयां दी गई। प्रकिया में मरीज के हाथों में किसी भी प्रकार का कुप्रभाव नहीं हुआ। इस मरीज को बिना बेहोश किए की गई इस प्रक्रिया में मरीज को दर्द भी नहीं हुआ। कीमोपोर्ट के बाद मरीज स्वस्थ है।