उदयपुर। श्री जैन श्वेतामबर मूर्तिपूजक संघ जिनालय द्वारा हिरण मगरी से. 4 स्थित शांतिनाथ सोमचन्द्रसुरी आराधना भवन में आत्मरति विजय व हितरति विजय की निश्रा में सरस भक्ति संध्या का आयोजन हुआ।
इसमें पं. रामकृष्ण बोस ने शास्त्रीय संगीत पर आधारित भजनों से कार्यक्रम की शुरूआत की। इस अवसर पर पं. बोस ने रवीन्द्र संगीत, राग मिया मल्हार, देश, वसंत मुखारी, भैरवी की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम में धर्मप्रेमियों ने महाराज की निश्रा में नवकार मत्र का जाप किया। मीनाक्षी, ज्योति एवं रतनबाई ने प्रभु की भव्य अंगरचना की।
जनता को सिखाएंगे स्वाध्याय
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ द्वारा आयोजित चार दिवसीय स्वाध्याय शिविर का समापन कल पंचायती नोहरे में होगा। संघ के अध्यक्ष वीरेन्द्र डांगी ने बताया कि शिविर में भाग लेकर स्वाध्याय का पाठ सीखने वाले सौ स्वाध्यायी उन क्षेत्रों में जाकर जनता को प्रवचन देंगे एवं धर्म की पालना करने को अभिप्रेरित करेंगे जहां संत, मुनि के प्रवचन नहीं हो पाते है।
आचार्य का जन्मोत्सव
जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ मालदास स्ट्रीट के तत्वावधान में आराधना भवन में चतुर्विद संघ की उपस्थिति में आग्मोधारक आचार्य सगरानंद सूरिश्वर का 140 वां जन्मोत्सव भक्ति भाव से मनाया गया। चातुर्मास सहसंयोजक अरुण कुमार बडाला के अनुसार आदिनाथ भक्ति मंडल के नवकार मंत्र मंगलाचरण द्वारा किया गया। तत्पश्चात आचार्य को दीप प्रज्वलन एवं माल्यार्पण किया गया। गुरु भक्ति गीत पद्मावती मंडल, उषा सुराना, अनीता बडा़ला ने प्रस्तुत किया। मुख्य अतिथि भोपालसिंह दलाल थे। उन्होंलने लकी कूपन से 40 जनों को पुरस्कार दिए। मुख्य वक्ता के रूप में आगम धारक संपादक डॉ. सुभाष जैन ने आचार्य के जीवन का गुणानुवाद किया जिसमें कई विस्मयकारी घटनाओं का वर्णन किया। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकश डाला। मुनि रत्न सागर ने भी विचार व्य क्तए किए।
सुविज्ञसागर
जैसे नक्शे में नदी, पर्वत, ग्राम, नगर, आबादी नहीं होती उसी तरह अक्षरिक शिक्षा में वस्तु स्वरूप, सत्य स्वरूप या यथार्थ नहीं होता है, लेकिन वास्तविकता जानने का यह एकमात्र माध्यम है। मार्गों के बिना लक्ष्यों को प्राप्त किया नहीं किया जा सकता और मार्गों पर चले बिना भी लक्ष्यों की प्राप्ति सम्भव नहीं होती। ये विचार सेक्टर 11 में श्रमण मुनि सुविज्ञसागर ने शिक्षा मनोवैज्ञानिक धर्माचार्य कनकनंदी गुरुदेव की बहुचर्चित कृति सर्वोदय शिक्षा मनोविज्ञान के वाचन के दौरान विवेचना करते हुए व्यक्त किये।
उदयमुनि
प्रज्ञामहर्षि उदय मुनि ने सेक्टर 4 में धर्मसभा को संबोधित करते हुये कहा कि जो स्व और पर का भेद जान जाए, आत्मा-शरीर की भिन्नता का भेद जान जाए, ज्ञायक आत्मा के अतिरिक्त सभी पराए हैं। पराये को पराया जानें। अनुकूल हो या प्रतिकूल, न प्रीति और न अप्रीति, यही मोक्ष मार्ग और फिर मुक्ति।