पांच दिवसीय शिविर में पारम्परिक चिकित्सक गुणी करेंगे इलाज
उदयपुर। अश्वगंधा की बलवर्द्धक खीर और जड़ी-बूटियों से बनी गुलाबी हर्बल टी के साथ शहर में ग्रामीण पारम्परिक चिकित्सा पद्धति साकार होगी। आदिवासी क्षेत्रों के पारम्परिक ग्राम्य चिकित्सक (गुणीजन) 11 से 15 सितम्बर तक शहरी रोगियों की बीमारियों का उपचार किया जाएगा।
राष्ट्रीय गुणी मिशन द्वारा पांच दिवसीय पारम्परिक मेगा चिकित्सा शिविर का आयोजन किया जा रहा है जिसमें चर्म रोग, गठिया, दमा, शुगर, पथरी, स्पोंडिलाइटिस, सायटिका, कमर दर्द, कान-नाक-गला दर्द आदि रोगों का इलाज किया जाएगा। फतहपुरा स्थित मंगल श्री वाटिका में होने वाले शिविर में शहर के रोगी देशी लाभार्थ शुल्क पर जड़ी-बूटियों से उपचार करा सकेंगे। मिशन की संयोजिका भंवर धाभाई ने बताया कि शिविर में भीम, कुम्भलगढ़, बड़गांव, झाड़ोल, बिछिवाडा आदि गांवों के गुणी आए हैं जो वर्षों से पारम्परिक चिकित्सा से उपचार करते हुऐ काफी नाम कमा चुके हैं। उनका कहना है कि स्थानीय जड़ी-बूटियों और अन्य साधनों से विभिन्न बीमारियों का उपचार करने वाले सिद्धहस्त परम्परागत चिकित्सकों को मिशन की और से गुणी नाम दिया गया है। मिशन के सचिव वैद्य जियालाल ने बताया कि ये पारम्परिक चिकित्सक हड्डी बैठाने, मोच ठीक करने, चर्मरोग, दमा, सर्पदंश, गठिया, पुराने दर्द आदि का उपचार करने की आश्चर्यजनक क्षमता रखते हैं।
पारम्परिक जड़ी-बूटियों की खेती के जानकार लोग भी शिविर में बुलाए गए है। भीम काछबली के गुणी काश्तकार हेमसिंह, हजारीसिंह सफदे मुसली आदि अन्य वनौषधियों की खेती के गुर सिखाएंगे। धाबाई ने बताया कि पूर्व में लगाए गए गुणी प्रशिक्षण शिविर के दौरान रोगियों की उमडी़ भीड़ और मांग पर यह शिविर आयोजित किया जा रहा है, जो हर महिने की 1-5 तारीख को भी आयोजित किए जाएंगे।
राष्ट्रीय गुणी मिशन (आरजीएम) 15 वर्षों से पारम्परिक चिकित्सा पद्धति एवं ज्ञान के क्षैत्र मे उत्तर भारत के 9 राज्यों में कार्य कर रहा है। आर.जी.एम से जुड़े सभी साथी पारम्परिक स्वास्थ्य एवं ज्ञान संरक्षण और संवर्द्धन के लिए सक्रिय है। मिशन का उद्धेश्य परम्परागत चिकित्सा पद्धति का संरक्षण एवं संर्वद्धन कर समुदाय को सस्ती-सुलभ एवं प्रभावकारी चिकित्सा उपलब्ध कराना है। मिशन राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार उत्तरांचल, हिमाचल एवं उडीसा आदि राज्यों में परम्परागत चिकित्सा पद्धति पर गुणियों के साथ काम कर रही है।