अध्यात्म और विज्ञान विषयक आचार्य महाप्रज्ञ व्याख्यानमाला
उदयपुर। अध्यात्म और विज्ञान दो ऐसे तथ्य हैं जिन्हें अलग नहीं किया जा सकता। दोनों के साथ रहने पर विकास होगा लेकिन दोनों को अलग अलग ढंग से सोचने पर यह विनाश की ओर ले जाएगा। विज्ञान आपको चलना सिखाएगा लेकिन सही और गलत का फर्क अध्यात्म बताएगा।
कुछ ऐसे ही विचारवान तथ्य आज उभरकर आए पांचवीं आचार्य महाप्रज्ञ व्याख्यानमाला में जिसका आयोजन श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा और सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में रविवार को महाप्रज्ञ विहार में किया गया था।
मुख्य वक्ता भौतिक विज्ञान के विद्वान काफी वर्षों तक विदेशों में अध्ययन कराने के बाद अब उदयपुर में ही निवासरत प्रो. पी. एम. अग्रवाल ने कहा कि जैन धर्म में छह द्रव्य जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल का समावेश है। विज्ञान जीव को छोडक़र बाकी सभी की खोज करता है। चप्पे-चप्पे में विज्ञान है। पांच द्रव्यों की विशेषता अध्यात्म है लेकिन विज्ञान भी इन पांचों की महत्ता को मानता है। अध्यात्म ने विज्ञान को ये पांच द्रव्य दिए कि इनकी खोज करो। दोनों के उद्देश्य और उद्देश्य पूर्ति में फर्क है। जैन धर्म में श्लोक से जैसे आदिनाथ भगवान का स्मरण करते हुए तीन जन्मों को हरते हैं वैसे ही विज्ञान में एनासिन, पेरासिटामोल तात्कालिक सिरदर्द, बुखार को हरता है। दोनों में पीड़ा का हरण होता है। यह तर्क बिल्कुल गलत है कि जो दिखे- वह सही और जो न दिखे वह नहीं। दूज का चन्द्रमा कटा हुआ दिखता है तो इसका अर्थ यह नहीं कि वह कट गया बल्कि उस पर बादलों का आवरण है जो पूर्णिमा तक हट जाता है। कहीं सूर्य लाल है तो कहीं पीला, यह ऐसा क्यों है, विज्ञान यह बताता है। ऊर्जा न तो पैदा की जा सकती है और न ही नष्ट की जा सकती है। वह सिर्फ रूपांतरित हो सकती है। उन्होंने महत्वपूर्ण रूप से तीन चीजें कर्तृत्व का अहंकार छोड़ें, सृष्टि नियमों के अनुसार ही चलती है और जो दिखे- वही सही नहीं है।
सुविवि के प्रतिनिधित्व के रूप में संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. नीरज शर्मा ने व्याख्यानमाला की अध्यक्षता करते हुए कहा कि अगर प्रयोजन पूर्ण न हो तो ऐसे विज्ञान-अध्यात्म की आवश्यकता नहीं है। तपस्वियों, ऋषि मुनियों का हमारा देश है। जो अनुभूत किया गया, वह ज्ञान है। पारंपरिक, सार्वभौमिक, सर्वकालिक ज्ञान ही विज्ञान है। ज्ञाता, ज्ञान और ज्ञेय तीनों अलग अलग हैं। पारिभाषिक सत्य है। जो अनुभूत हो सके, उसे अंगीकार करना चाहिए। भूखे को भोजन मिले, यही प्राथमिकता है। किस तरह की थाली, पत्तल में मिले, यह नहीं।
साध्वी कनकश्रीजी ने मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि अध्यात्म और विज्ञान विषय इतना बड़ा है कि दो घंटे का सेमिनार इस पर बहुत कम लगता है। इस पर तो पूरे पूरे दिन का सेमिनार हो सकता है। ऐसे विशेषज्ञों को सुनने का अवसर सभी को मिलना चाहिए। आचार्य महाप्रज्ञ का नाम चर्चित है जिन्होंने अध्यात्म को विज्ञान के साथ जोड़ा। दोनों एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। मानवीय, संवेदनशील समस्याओं को खोलने के लिए दोनों का समावेश जरूरी है। इस वैज्ञानिक युग में विज्ञान खोज कर ही रहा है। सत्य की खोज करो, अन्वेषण करो। जानना करना और होना तीन अलग अलग चीजें हैं। सुख सुविधाएं अब आम आदमी तक पहुंच गई है लेकिन इस पर अध्यात्म का अंकुश रहे, यह भी जरूरी है।
इससे पूर्व साध्वी मधुलता ने कहा कि आचार्य तुलसी से अगर यह पूछा जाता कि उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है तो निश्चय ही वे आचार्य महाप्रज्ञ को सामने रख देते कि यही है मेरी उपलब्धि। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने अपना जन्मदिन आचार्य महाप्रज्ञ के चरणों में मनाया। आचार्य ने उनसे कहा कि आप मिसाइलमैन हैं लेकिन ऐसी मिसाइल बनाएं कि विश्व में शांति और सद्भावना हो। गत दिनों आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में श्री कलाम ने कहा कि मैं अब भी शांति की मिसाइल की तलाश कर रहा हूं।
साध्वीवृंदों मधुलता, समितिप्रभा, वीणाकुमारी, मधुलेखा ने यही प्रेक्षा जीवन विज्ञान, यही है अणुव्रत का अभियान.. मधुर गीतिका प्रस्तुत की। सॉफ्टवेयर इंजीनियर के बाद वैरागï्य धारण करने वाली साध्वी समितिप्रभा ने कहा कि ऋषि-मुनियों ने अतीन्द्रिय चेतनाओं से जो ज्ञान उजागर किया, जो भीतर का ज्ञान है, वह अध्यात्म है। सुख-सुविधाओं की उपलब्धता आज विज्ञान के कारण है। दोनों की अवस्थिति को नकारा नहीं जा सकता। आध्यात्मिकता और वैज्ञानिकता का समन्वय जरूरी है। दोनों साथ चलेंगे समन्वय करेंगे तो निश्चय ही बहुत कुछ नया आएगा।
सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने बताया कि सुविवि के विवेकानंद सभागार से आरंभ हुई व्याख्यानमाला का यह सतत चरण जारी है। उस वैज्ञानिक महामानव को श्रद्धांजलि अर्पित करने का सभा का उद्देश्य है जिसके क्रम में यह व्याख्यानमालाएं हो रही हैं। आचार्य महाप्रज्ञ की शिक्षा दीक्षा किसी विश्वविद्यालय में नहीं बल्कि आचार्य तुलसी के सान्निध्य में ही हुई। विश्व भर के विद्वान आचार्य महाप्रज्ञ की विद्वता से अचंभित थे। विज्ञान महाविद्यालय में हुए कार्यक्रम में वहां के न सिर्फ छात्र बल्कि फेकल्टी मेंबर्स तक चकित थे। उन्होंने बताया कि मर्यादा महोत्सव के तहत 25 जनवरी को अणुव्रत चौक स्थित तेरापंथ भवन में विशाल आयोजन होगा। इसमें मुनि श्री पृथ्वीराजजी, साध्वी कनकश्रीजी का सान्निध्य मिलेगा। आभार सभा के उपाध्यक्ष सुबोध दुग्गड़ ने व्यक्त किया। इससे पूर्व सभा के मार्गदर्शक छगनलाल बोहरा, तेरापंथ युवक परिषद अध्यक्ष अभिषेक पोखरना, अजीत छाजेड़, कपिल इंटोदिया आदि ने अतिथियों का उपरणा, साहित्य व स्मृति चिह्न भेंटकर अभिनंदन किया।