तीसरे दिन सामायिक दिवस पर तैले के प्रत्याख्यान
उदयपुर। शासन श्री मुनि राकेश कुमार ने कहा कि सामायिक का लाभ उठाने के लिए विषमताओं से बचने का प्रयास करें। बारह व्रतों में सामायिक का नवां व्रत है। विषमता के कई रूप् क्रोध, मोह, आग्रह, रूप आदि हैं।
वे जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा की ओर से अणुव्रत चौक स्थित तेरापंथ भवन में पर्वाधिराज पर्यूषण के तीसरे दिन सामायिक दिवस पर धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जिसकी जैसी दृष्टि, उसकी वैसी सृष्टि। उन्होंने अषोक वाटिका का उदाहरण देते हुए बताया कि हनुमानजी और सीता को वहां लगे फूलों के रंग अलग अलग दिखे। सीता को सफेद फूल दिखे तो हनुमानजी को लाल। भगवान राम ने इसका अर्थ समझाया कि हनुमानजी की आंखों में रावण के प्रति भयंकर क्रोध था जिससे उनकी आंखें लाल हो गई थीं। इसलिए उन्हें फूल लाल दिखे। किसी के प्रति आग्रह मत रखो। एक व्यक्ति किसी का मामा है तो वही किसी का भाणेज भी है। ऐसी विषमताएं जहां होंगी, वहां शुद्ध सामायिक मुष्किल है। सामायिक का शुद्ध पाठ सबको याद होना चाहिए। उन्होंने राजा श्रेणिक की कहानी सुनाते हुए कहा कि श्रेणिक ने अपनी नरक गति टालने का आग्रह किया तो प्रभु ने उनसे पुण्या श्रावक की एक सामायिक लाने को कहा लेकिन राजा श्रेणिक पुण्या श्रावक की एक सामायिक नहीं ला पाया और नरक गति भोगी।
मुनि दीप कुमार ने गीतिका सुनाते हुए कहा कि सामायिक दो प्रकार की होती है। गृहस्थ और साधु। साधु की सामायिक जीवन भर की होती है वहीं गृहस्थ की 48 मिनट की। जिसके पुण्य का योग होता है और मनोबल मजबूत होता है वही साधु जीवन अपनाता है। 18 पापों का त्याग करना ही सामायिक है। निषेधात्मक-नकारात्मक भावों का त्याग ही सामायिक है। अगर जागरूकता और एकाग्रता नहीं हो तो सामायिक का फल नहीं मिलता। जितनी भी सामायिक करें लेकिन शुद्ध करें। आस्था-जागरूकता के साथ सामायिक करें। सामायिक किया है तो समता की साधना होनी चाहिए और उसकी प्रभावना तभी मिलेगी जब वह शुद्ध होगी। अगर टीवी इंटरनेट के लिए समय मिलता है तो फिर निश्चय ही सामायिक के लिए भी समय निकाला जा सकता है। एक सामायिक तो प्रतिदिन करनी ही चाहिए।
मुनि सुधाकर ने कहा कि भगवान महावीर ने कहा कि आत्मा ही सामायिक है। आत्मा को ही सामायिक कहा जाता है। चार गतियां नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देवगति होती है। जीव क्यों इन गतियों में आता-जाता है। जब तक कर्म लगे रहते हैं, तब तक यह क्रम चलता रहेगा। यष-अपयष से उपर कैसे उठें। इसके लिए जीवन में मध्यस्थ का भाव लाएं। ज्ञाता दृष्टि का विकास होना चाहिए। सुख आएगा तो सुखी और दुख आया तो दुखी, ऐसा नहीं होना चाहिए। दोनों में समान स्थितियों में रहना चाहिए। परिवार में टकराव-बिखराव बढ़ रहे हैं। स्वार्थवाद-व्यक्तिवाद ने सोच को संकुचित कर दिया है। सामायिक ऐसा माध्यम बन सकती है जो समाधान की ओर ले जा सकती है। अभ्यास और वैराग्य का विकास होना चाहिए। सामायिक में व्यक्ति विषमता से समता की ओर जाता है। सामायिक का व्यावहारिक पहलू पहचानना चाहिए।
तेरापंथ सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने संघ के आगामी कार्यक्रमों की जानकारी दी। संचालन मंत्री सूर्यप्रकाष मेहता ने किया। इससे पूर्व 9 से 9.30 बजे तक संगीता पोरवाल ने प्रेक्षाध्यान के प्रयोग एवं जप कराए। प्रारंभ में सरिता कोठारी एवं बहिनों ने मंगलाचरण किया।
तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष दीपक सिंघवी ने बताया कि आध्यात्मिक रात्रिकालीन प्रतियोगिता के तहत एकल संगीत प्रतियोगिता हुई। आचार्य श्री भिक्षु पर रचित गीतों का संगान विषयक इस प्रतियोगिता में कनिष्ठ वर्ग में हर्षिल बोहरा, जया फत्तावत एवं आर्ची चण्डालिया-प्रेक्षा बोहरा तथा वरिष्ठ वर्ग में रिची सिंघवी, मोनिका कोठारी-किरण कच्छारा-सीमा कच्छारा तथा पारूल पोरवाल- सुनीता नंदावत-स्वाति मेहता क्रमषः प्रथम, द्वितीय व तृतीय रहे। विजयसिंह अषोक डोसी द्वारा प्रायोजित इस प्रतियोगिता के निर्णायक मधुसूदन वैषव एवं शकुंतला सरूपरिया थे। संयोजन राकेश चपलोत एवं शुभम भोलावत ने किया।