विद्यापीठ में 21 दिवसीय कोर्स वर्क का उद्घाटन
उदयपुर। क्रमबद्ध ज्ञान का नवीन तकनीकी के साथ प्रयोग ही नवाचार है। नवाचार में आईटी के प्रयोग करके शिक्षण व्यवस्था को अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है। कक्षाओं में छात्र छात्राओं को किताबी ज्ञान ही नहीं व्यावहारिक ज्ञान से भी अवगत करना चाहिए।
ये विचार गुरूवार को प्राध्यापकों के अध्यापन में गुणवत्ता बढ़ोतरी एवं कुशल प्राध्यापक बनाने के उद्देश्य से जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, एमडीएस विवि, यूजीसी एवं मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तत्वावधान में प्रतापनगर स्थित कम्प्यूटर एंड आईटी विभाग के सभागार में आयोजित 21 दिवसीय कोर्स के उद्घाटन पर अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रो. एसएस सारंगदेवोत ने कही।
उन्होंने कहा कि आज का युवा पढ़ाई के साथ साथ यदि किसी क्षेत्र में अपने हुनर में महारथ हासिल कर लेता है तो उसकी सफलता का प्रतिशत बढ़ जाता है। महज अपने शौक को तौर पर शुरू किये गये कार्य आगे चल वह उसका हुनर एवं करियर बन जाता है। प्रारंभ में कोर्स समन्वयक प्रो. प्रदीप पंजाबी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए 21 दिन तक चलने वाले कोर्स वर्क जानकारी देते हुए कहा कि कोर्स वर्क विभिन्न महाविद्यालयों के 60 प्रतिभागी हिस्सा ले रहे जो अपने ज्ञान की गुणवत्ता में बढोतरी करेंगे। मुख्य अतिथि एमपीयूएटी के कुलपति प्रो. उमाशंकर शर्मा ने खेतों में दिये जाने वाले यूरिया एवं रासायनिक खादों को बंद उसके स्थान पर वर्मी एवं कम्पोज खादों के अधिक से अधिक प्रयोग करने पर बल दिया। उन्होने कहा कि डेरी फार्म में गायों के द्वारा दिये जाने वाले दूध एवं अन्य जैसे गौमूत्र, गोबर सभी का किसी न किसी प्रकार से पुनः प्रयोग अवश्य ही होता है। रासायनिक खाद एवं अन्य दवाओं से मानव के जीवन पर अनेक दुष्परिणाम पड़ते है। विशिष्टह अतिथि दिल्ली विश्वविद्यालय डीसीआरसी नई दिल्ली के निदेशक प्रो. सुनिल के. चौधरी ने कहा कि एकेडमिक इंस्टीट्यूट में दी शिक्षा मिलती है, वह नौकरी एवं जीवनयापन के लिए ठीक है लेकिन सफल व्यक्ति बनने के लिए सामुहिक कार्यक्रमों में भाग लेना आवश्यक है। शिक्षा का उद्देश्य केवल एक अच्छा इंसान बनाना है। एक-दूसरे से बातचीत एवं एक साथ कार्य करने से अपनी कमजोरी का पता चलता है और बुद्धि का विकास होता है। ज्ञान सिर्फ किताबों से ही प्राप्त नहीं किया जा सकता है। संचालन डॉ. धीरज प्रकाश जोशी ने किया जबकि धन्यवाद सहसमन्वयक डॉ. युवराजसिंह राठौड़ ने दिया। दूसरे सत्र में राजस्थान विश्वविद्यालय के प्रो. बतरा ने विश्व की वर्तमान स्थिति के बारे में जानकारी दी।