udaipur. देश भक्ति और स्वाभिमान के प्रतीक राष्ट्रनायक महाराणा प्रताप के जीवन की घटनाओं और दृष्टान्तों को विविध रूपों में संजो कर ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण का एक अनूठा प्रयास है उदयपुर और राजसमन्द जिले की सीमा पर पहाडी़ पर स्थित हल्दीघाटी संग्रहालय।
वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जीवन वृतांत देखकर यहां न केवल ऐतिहासिक पलों की अनुभूति होती है वहीं ऐतिहासिक व सांस्कतिक धरोहर से भी साक्षात होता है। महाराणा प्रताप और मानसिंह के बीच हुए युद्घ की साक्षी रही हल्दीघाटी पहुंचने वाले सैलानियों के देखने के लिए यह संग्रहालय एक अध्यापक मोहनलाल श्रीमाली के जीवन के संघर्षो के बीच उनकी कल्पना और उनके जुनून का जीवंत उदाहरण है। सैलानियों को ही नहीं वरन आने वाली पीढि़यों को यह धरोहर देशभक्ति का संदेश और प्रेरणा देती है।
मेवाड़ का राज्यचिन्ह, पन्नाधाय का बलिदान, गुफाओं में महाराणा प्रताप की अपने मंत्रियों से गुप्त मंत्रणा, शेर से युद्घ करते हुए प्रताप, भारतीय संसद में स्थापित महाराणा प्रताप की झांकी की प्रतिमूर्ति, मानसिंह से युद्घ करते महाराणा प्रताप, महाराणा प्रताप एवं घायल चेतक घो$डे का मिलन, महाराणा प्रताप का वनवासी जीवन के साथ-साथ उनसे जु$डे अन्य प्रसंगों को यहां आकर्षक मॉडल, चित्र एवं झांकी के रूप में प्रदर्शित किया गया है ।
कृष्ण भक्ति को समर्पित मीरा बाई, महाराणा अमर सिंह, महाराणा उदय सिंह, महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा),महाराणा कुम्भा एवं महाराण बप्पा रावल के पोरट्रेट भी यहां प्रदर्शित किए गए हैं। इस ऐतिहासिक विरासत का सजीव प्रस्तुतिकरण तथा चित्रण, कलाकृतियों,मूर्तिकला, के रूप में तो प्रदर्शित किया ही गया है साथ ही लाइट एवं साऊण्ड आधारित झांकीयां भी मनोरंजक रूप से बनाई गई हंै। परिसर में एक छोटा सा फिल्म थियेटर भी बना है जहां आगन्तुकों को प्रताप के जीवन से सम्बन्धित लघु फिल्म भी देखने को मिलती है।
संगहालय के साथ-साथ यहां लुप्त हो रही संस्कृति के संरक्षण की दृष्टि से प्राचीन काल में कुएं से पानी बाहर निकालने के लिए रहट, कोल्हू, चड़स, तेल की घाणी, रथ, बैलगाडी़, कृषि यंत्र, वाद्य यंत्र, वेशभूषा, बर्तन, ताले, आदि का वृहत संकलन कर उन्हें आकर्षक रूप में प्रदर्शित किया गया है। यहां आने वालों के मनोरंजन के लिए एक कृत्रिम झील बनाई गई है जिसमें बोटिंग की सुविधा भी है।
थर्मोपॉली ऑफ इण्डिया के नाम से विख्यात हल्दीघाटी युद्घ स्थली को देखने के लिए पहले जब सैलानी यहां आते थे तो उन्हें महाराणा प्रताप के घोडे़ चेतक के स्मारक के रूप में बनी एक साधारण सी छतरी देखने को मिलती थी। यहां की पीली माटी जिसके लिए कहा जाता है कि युद्घ जो माटी को चंदन बना गया के प्रति प्रगाढ़ श्रद्घा रहती थी। कई लोग इस पवित्र माटी को अपने मस्तक पर लगा कर धन्य महसूस करते थे और स्मरण स्वरूप कुछ माटी अपने साथ ले जाते थे। यहां का पहाडि़यों से घिरा प्राकृतिक परिवेश और हल्दीघाटी का संकरा मार्ग भी दर्शनीय होता था। विकास के साथ हल्दीघाटी का दर्रा का स्वरूप बदल गया और अब यहां एक पक्की सड़क बन गई है। एक पहाडी़ पर महाराणा प्रताप स्मारक भी दर्शनीय है।
आज आने वालों के लिए हल्दीघाटी का संग्रहालय इस ऐतिहासिक और प्राकृतिक परिवेश के साथ आकर्षण का एक ओर अनन्य केन्द्र बन गया है। इस संग्रहालय के विकास के पीछे मोहनलाल श्रीमाली के संघर्षों की गाथा छुपी है, जिन्होंने अपनी विषम आर्थिक परिस्थितियोंं को पार कर बीएड किया, अध्यापक बने और इस संग्रहालय की स्थापना के लिए प्रधानाध्यापक से स्वैच्छिक सेवानिवृति लेकर अपनी गाढी़ कमाई का बचत व वीआरएस का एक-एक पैसा, पुश्तैचनी जमीन, जेवर व मकान बेच कर पूरा पैसा इसमें लगा दिया। धीरे-धीरे जब परिस्थितियों ने साथ दिया, कई वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों का सहयोग मिला तो बैंकों ने भी ऋण उपलब्ध कराया । संग्रहालय स्थापना के लिए जमीन भी उन्होंने अपने पास से खरीदी।
संग्रहालय निर्माण से पूर्व जहां हल्दीघाटी में वर्ष में करीब पच्चीस हजार पर्यटक आते थे अब यहां इनकी तादाद बढ़कर चार लाख से अधिक प्रतिवर्ष हो गई है, जिससे यहां लोगों को रोजगार भी मिला है। करीब 16 वर्ष की यात्रा तय करने वाले इस संग्रहालय का उदघाटन 19 जनवरी 2003 को राज्य के राज्यपाल अंशुमान सिंह ने किया। संग्रहालय की लोकप्रियता इसी से आंकी जा सकती है कि कई प्रदेशों के राज्यपाल, सांसद के रूप मे देश के वर्तमान प्रधानमंत्री सहित पचास से अधिक केन्द्र एवं राज्य सरकार के मंत्रीगण तथा सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय तथा भारतीय प्रशासनिक सेवा के दो सौ से अधिक न्यायाधिपति एवं अधिकारी संग्रहालय का अवलोकन कर चुके हैं। आज विभिन्न प्रान्तों से बसों में स्कूली बच्चे भी इस संग्रहालय को देखने के लिए आने लगे हैं।
अनेक ऐसे स्थल हैं जहां बडे़ पैमाने पर धन खर्च करने के बाद भी सैलानी नहीं पहुंचते हैं परन्तु यहां एक व्यक्ति के प्रयास का ही परिणाम है कि न केवल सैलानियों की संख्या में आशातीत वृद्घि हुई वरन इनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्डल रिकॉर्ड में शामिल हो गया है।
हल्दीघाटी संग्रहालय की स्थापना कर ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखने के लिए किए गए अप्रतिम प्रयासों के लिए मोहनलाल श्रीमाली को राष्ट्रपति सम्मान के साथ-साथ तीन बार राज्य स्तरीय सम्मान से नवाजा गया है। इन्हें महाराणा मेवाड़ अलंकरण सम्मान, रानी पदमिनी पुरस्कार, राणा राजसिंह अवार्ड, महात्मा ज्योति बा फुले लाईफ टाईम अचीवमेंट अवार्ड, यूनेस्को अवार्ड, पांच बार जिलास्तरीय पुरस्कार भी मिले और साथ ही अन्य पचास से अधिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया। इनका संकल्प है कि भारत देश की आजादी का संग्रहालय का निर्माण करें।