कला मेले में 8 संस्कृतिकर्मियों का सम्मान
Udaipur. राजस्थान साहित्य अकादमी और कला, साहित्य, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के संयुक्त तत्वावधान में उदयपुर संभाग स्तरीय ’कला मेले‘ का शुभारम्भ एस.आई.ई.आर.टी. के मुख्य सभागार में शुक्रवार को मोहनलाल सुखाडि़या विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. इन्द्रवर्धन त्रिवेदी तथा अकादमी अध्यक्ष श्री वेद व्यास की अध्यक्षता में हुआ।
उदयपुर संभाग की कला, साहित्य व संगीत के क्षेत्र की विभूतियों मांगी बाई आर्य (गायन), प्रो. नंद चतुर्वेदी (साहित्य), शकुन्तला पंवार (लोक नृत्य), डॉ. महेन्द्र भाणावत (लोक संस्कृति), श्याम माली (कठपुतली), डॉ. पूनम जोशी (कत्थक नृत्य-सितार वादन), श्री शैल चोयल (चित्रकला), प्रकाश कुमावत (पखावज) को मोहनलाल सुखाडि़या विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. आई. वी. त्रिवेदी तथा राजस्थान साहित्य अकादमी अध्यक्ष वेद व्यास द्वारा सम्मान राशि 2100 रु., शॉल, प्रशस्ति पत्र आदि भेंट कर संस्कृति सम्मान प्रदान किया गया।
मुख्य अतिथि प्रो. आई. वी. त्रिवेदी ने कहा कि आज हम ऐसे चौराहे पर खडे़ हैं जहां मूल्यों में गिरावट हो रही है। मूल्यों की गिरावट को रोकने में साहित्यकार की महती भूमिका है। यह सत्य है कि जिस समाज व देश में साहित्यकार व कलाकारों की पूजा होती है, सम्मान होता है, उस देश का भविष्य उज्ज्वल होता है। त्रिवेदी ने कहा कि विश्वविद्यालय भी फरवरी, 2013 में स्वर्ण जयन्ती समारोह के तहत ’साहित्य व समाज‘ विषय पर दक्षिण राजस्थान के रचनाकारों को आमंत्रित कर संगोष्ठी का आयोजन करेगी।
अध्यक्षता करते हुए राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष वेद व्यास ने कहा कि राजस्थान का सांस्कृतिक पुनर्जागरण इस अर्थ में महत्वपूर्ण है क्योंकि राजस्थान के समक्ष सामाजिक, आर्थिक विकास की भरपूर चुनौतियां है तथा जातिवाद एवं साम्प्रदायिकता जैसे अनेक प्रश्न समाज में विघटन और अलगाव को बढावा दे रहे हैं। हमारे राजस्थान में मीरा, दादूदयाल, महाकवि बिहारी, स्वतंत्रता सेनानी विजय सिंह पथिक, जयनारायण व्यास व अजमेर के ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती जैसे अनेक सन्त व समाज सुधारकों ने समाज को संघर्ष के बीच बुनियादी भाईचारे व प्रेम का संदेश दिया है। व्यास ने कहा कि साहित्य राजनीति के आगे चलने वाली मशाल है। व्यास ने कहा कि आज विचारों हेतु समर्पित लोगों की आवश्यकता है, प्रतिबद्घता से कलमबद्घ लोग जरूरी है। हमारी परम्परा, विचार शैली, विचार ज्ञान को हस्तान्तरित करने में संस्कृति, समाज सुधारकों, सन्तों, रचनाकारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। साहित्य व शिक्षा के जरिए बाजारवाद व आपराधिक राजनीति के खतरों को हमें दूर करना होगा। सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक विकास से समाज का विकास नहीं होता, जब तक संस्कृति का ज्ञान नयी पी$ढी को नहीं होगा, तब तक विकास सम्भव नहीं है।
उद्घाटन सत्र के पश्चात् ’आंचलिक रचनाकार सम्मेलन‘ का आयोजन किया गया , जिसमें डूंगरपुर, बांसवाडा, राजसमंद, प्रतापगढ, चित्तौडगढ और उदयपुर जिलों के 100 से अधिक रचनाकारों ने ’राजस्थान के सांस्कृतिक पुनर्जागरण‘ मुख्य विषय के अन्तर्गत अंचल की सांस्कृतिक, साहित्यिक विशेषताओं पर चर्चा और विचार-विमर्श किया। प्रमुख वक्ता डॉ. सत्यनारायण व्यास (चित्तौड़गढ़), डॉ. महेन्द्र भाणावत, अम्बालाल दमानी (उदयपुर) व डॉ. रेणु शाह (जोधपुर) ने विचार व्यक्त किए।
सत्यनारायण व्यास ने कहा कि लोक का नवनीत है, संस्कृति। अगर लोक विरुद्घ बात कभी भी होगी तो वह खरीज कर दी जाएगी। साहित्य संस्कृति का अंग है व जीवन में सम्पूर्ण अभिव्यक्ति का नाम संस्कृति है। इस अवसर पर डॉ. महेन्द्र भाणावत ने लोक संस्कृति के संरक्षण की चिन्ताओं को सार्थकता व अनुभवों के साथ प्रकट करते हुए कहा कि परम्परा व प्रयोगधर्मिता में अन्तर है। हमारी परम्परा व आदतें ही संस्कारणीय हैं। डॉ. रेणु शाह जोधपुर ने कहा कि आज राजनीति, सामाजिक, गैरबराबरी, जाति, धर्म व सम्प्रदाय को लेकर कई चुनौतियां है। इन चुनौतियों को हराकर 21वीं सदी में हमारी संस्कृति कैसी हो, उसे देखने की जरूरत है। वेद व्यास ने बताया कि 29 और 30 दिसम्बर को आयोजित संगोष्ठियों में राजस्थान के सांस्कृतिक पुनर्जागरण विषय पर राजस्थान स्थित विभिन्न विश्व विद्यालयों के कुलपति, विभिन्न सांस्कृतिक संस्थानों के प्रमुख, संस्कृतिकर्मी और साहित्यकार चर्चा-विमर्श करेंगे। धन्यवाद अकादमी सचिव डॉ. प्रमोद भट्ट ने दिया। डॉ. रवीन्द्र उपाध्याय, निम्बाहेडा़ की प्रथम कविता संग्रह ’ आकांक्षाएं‘ का लोकार्पण भी किया गया।